ब्लॉगः सनातन ‘ट्रिगर प्वाइंट’ बनेगा भाजपा का ?
By अभय कुमार दुबे | Published: September 19, 2023 09:59 AM2023-09-19T09:59:10+5:302023-09-19T09:59:46+5:30
लोकसभा में बहुमत 272 सीटें जीतने पर बनता है। भाजपा के पास इस जादुई आंकड़े से केवल 31 सीटें ज्यादा हैं। कहना न होगा कि अगर पहले नंबर के 11 राज्यों में 2019 की असाधारण सफलता हासिल करने में भाजपा जरा सी भी चूक गई तो वह लगातार तीसरी बार बहुमत की पार्टी नहीं बन पाएगी।

ब्लॉगः सनातन ‘ट्रिगर प्वाइंट’ बनेगा भाजपा का ?
सनातन धर्म वाले विवाद से आई।एन।डी।आई।ए। को समझ में आ जाएगा कि कभी-कभी बोलने से ज्यादा चुप रहना मुफीद होता है। इसे पहले आम आदमी पार्टी भी साबित कर चुकी है। पिछले विधानसभा चुनाव में इस पार्टी ने शाहीन बाग वाले मसले पर चुप्पी का रणनीतिक इस्तेमाल किया था। अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों को भाजपा, उसके समर्थक मीडिया और कमजोर राजनीतिक बुद्धि वाले सेक्युलर बुद्धिजीवियों ने काफी उकसाने की कोशिश की। लेकिन वे अपने रवैये से नहीं डिगे, और एक बार फिर अच्छी तरह से चुनाव की बाजी जीत ली। जाहिर है कि भाजपा इस मसले को आखिरी दम तक खींचेगी। अब यह विपक्ष की रणनीति पर निर्भर है कि वह अपना बचाव कितना कर पाता है। गैरभाजपा शक्तियों के गठबंधन ने तय किया है कि वह इस मसले पर चुप्पी साध लेगा। यानी, हमें जल्दी ही भाजपा के मुखर आक्रमण और विपक्ष की चुप्पी का दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है। देखना यह है कि विपक्षी मोर्चा यह कर पाता है या नहीं। साथ ही इस बचाव को कामयाब करने के लिए मोर्चे को अपने घटक संगठनों पर ऐसे विवादास्पद प्रश्नों पर संयमित और अनुशासित रहने की सीख भी देनी पड़ेगी।
चुनावी गणित की जानकारी रखने वालों को पता है कि भाजपा को 2024 में कौन सा ऐसा काम शर्तिया तौर पर दोबारा करना पड़ेगा जो उसने 2019 में किया था। उस चुनाव में पड़े प्रत्येक सौ वोटों में से तकरीबन सैंतीस से कुछ ज्यादा वोट भाजपा को मिले थे जिनके कारण 303 सीटें उसकी झोली में आ गई थीं। इनमें से 211 सीटें उसने सिर्फ 11 राज्यों से जीत ली थीं। ये राज्य थे- उ।प्र। (80 में से 62 सीटें), म।प्र। (29 में से 28), गुजरात (26 में से 26), कर्नाटक (28 में 25 सीटें), राजस्थान (25 में से 24 सीटें), छत्तीसगढ़ (11 में से नौ सीटें), हरियाणा (10 में से 10 सीटें), दिल्ली (सात में से सात सीटें), झारखंड (14 में से 11 सीटें), उत्तराखंड (5 में 5 सीटें) और हिमाचल प्रदेश (4 में 4 सीटें)। चुनावी दृष्टि से 239 में से 211 सीटें जितवाने के कारण इन्हें भाजपा के नंबर एक के राज्यों की संज्ञा दी जा सकती है। इनके मुकाबले नंबर दो के राज्यों की संख्या छह थी। इनकी कुल 182 सीटों में से भाजपा 84 जीतने में कामयाब रही थी। ये राज्य थे- पश्चिम बंगाल (42 में से 18 सीटें), बिहार (40 में से 17 सीटें), महाराष्ट्र (48 में से 23 सीटें), ओडिशा (21 में से 12 सीटें), तेलंगाना (17 में से 4 सीटें) और असम (14 में से 10 सीटें)। यानी 303 में से 295 सीटें इन्हीं राज्यों से प्राप्त हुई थीं। भाजपा को इन राज्यों में यह प्रदर्शन सौ फीसदी दोहराना ही है।
लोकसभा में बहुमत 272 सीटें जीतने पर बनता है। भाजपा के पास इस जादुई आंकड़े से केवल 31 सीटें ज्यादा हैं। कहना न होगा कि अगर पहले नंबर के 11 राज्यों में 2019 की असाधारण सफलता हासिल करने में भाजपा जरा सी भी चूक गई तो वह लगातार तीसरी बार बहुमत की पार्टी नहीं बन पाएगी। इसके लिए उसे इन राज्यों में बुरी तरह से हारने की जरूरत नहीं है। अगर वह इन राज्यों में केवल बहुत थोड़ा-थोड़ा ही लड़खड़ाई, तो भी उसकी जीत बेहतरीन कही जाएगी। मसलन, पिछली बार भाजपा ने इन 11 राज्यों में 88 फीसदी की अभूतपूर्व दर से सीटें जीती थीं। अगर वह इस बार यहां सत्तर फीसदी की दर से ही जीती (जो एक बार फिर बहुत अच्छी दर मानी जाएगी) तो भी वह 167 से ज्यादा सीटें जीत लेगी। लेकिन उस सूरत में उसे 44 सीटें खोनी पड़ जाएंगी, और वह गठजोड़ सरकार बनाने पर मजबूर हो जाएगी। इसी जगह दूसरे नंबर के राज्यों का भी भाजपा के लिए महत्व उभरता है। वहां इस पार्टी ने 46 फीसदी की दर से जीत हासिल की थी। यहां तो भाजपा को हर हालत में यह प्रदर्शन दोहराना ही है। यहां अगर उसकी जीत की दर बारह से पंद्रह फीसदी भी कम हो गई तो वह तीस फीसदी के इर्दगिर्द आ जाएगी, और यह प्रदर्शन उसके लिए प्रतिष्ठानुकूल नहीं कहा जाएगा। प्रदर्शन में केवल 12 फीसदी गिरावट होने पर उसे यहां भी 21 सीटें खोनी पड़ जाएंगी। चुनाव में एक बार फिर बढ़िय़ा प्रदर्शन करने के बावजूद मामूली सा दचका लगने पर भाजपा करीब 65 सीटें खोने के खतरे का सामना कर रही है।
पहले से ज्यादा हिंदू वोट प्राप्त करने का लक्ष्य वेधने के लिए भाजपा को हिंदू गोलबंदी का एक नया ‘ट्रिगर प्वाइंट’ चाहिए होगा। कुछ-कुछ वैसा ही ‘ट्रिगर प्वाइंट’ जो उसे 2019 में बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के राष्ट्रवादी प्रभाव के कारण मिल गया था। भाजपा इसकी खोज में लगी हुई है। मुझे लगता है कि ‘सनातन’ वाला मुद्दा एक ऐसा ही संभावित ‘ट्रिगर प्वाइंट’ है जिसे भाजपा के रणनीतिकार पहले के मुकाबले कुछ बेहतर हिंदू गोलबंदी के उपकरण के तौर पर देख रहे हैं। हिंदू वोट की गोलबंदी एक और समस्या का सामना कर रही है। ऐसा लगने लगा है कि भाजपा के प्रभावक्षेत्र में भी यह गोलबंदी अब फ्रीजिंग प्वाइंट पर पहुंच गई है। जब तक चुनाव की मुहिम में नई गर्मी नहीं आएगी, तब तक बर्फ पिघलेगी नहीं। क्या ‘सनातन’ का सवाल नई गर्मी पैदा करेगा?