ब्लॉग: राजनीति से आखिर कब खत्म होगा अपराध का रिश्ता? अतीक अहमद की चर्चा के साथ इस सवाल पर भी विचार जरूरी
By विश्वनाथ सचदेव | Published: April 20, 2023 02:48 PM2023-04-20T14:48:05+5:302023-04-20T14:50:08+5:30
अतीक अहमद जैसे व्यक्ति को चुनाव लड़ाना जहां हमारे राजनीतिक दलों पर सवालिया निशान है, वहीं मतदाता को भी स्वीकार करना होगा कि ऐसे लोगों को अपना नेता चुनकर वह जनतंत्र के प्रति अपने कर्तव्य को न निभाने का अपराध कर रहा है.
अतीक अहमद की अपराध-कथाओं से सारा देश परिचित है. लगभग आधी सदी लंबी कहानी है अतीक के परिचित-अपरिचित अपराधों की. हत्या, अपहरण जैसे गंभीर अपराधों से जुड़ा था अतीक. उसकी मौत पर आंसू बहाने का अथवा उसके प्रति किसी भी प्रकार की संवेदना जताने का कोई कारण नहीं बनता. लेकिन कुछ सवाल उठते ही हैं इस कांड को लेकर. अलग-अलग राजनीतिक दलों से अतीक के रिश्ते रहे, विभिन्न दलों ने उसे अपने साथ जोड़कर अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत बनाने की कोशिश की थी. इसलिए, यह अवसर राजनीति और अपराध के रिश्तों पर विचार करने का भी है.
चुनावों के समय उम्मीदवारों द्वारा दिए गए शपथपत्रों के अनुसार देश की कोई भी विधानसभा ऐसी नहीं है जिसमें अपराधों के आरोपियों की अच्छी-खासी संख्या न हो. एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) के अनुसार उत्तर प्रदेश की वर्तमान विधानसभा में आधे से अधिक विधायक आपराधिक पृष्ठभूमि वाले हैं. अन्य राज्यों की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है. यह सही है कि जब तक न्यायालय द्वारा प्रमाणित न हो जाए, किसी को भी अपराधी नहीं कहा जा सकता, पर बिना आग के तो कहीं धुआं उठता नहीं. ऐसे लोगों के आपराधिक मामले वर्षों तक अदालतों में चलते रहते हैं.
बहरहाल, अपराध और राजनीति के रिश्तों को लेकर पिछले 75 सालों में बहुत कुछ कहा गया है. इस बात पर अक्सर आश्चर्य व्यक्त किया जाता रहा है कि आखिर राजनीतिक दलों की ऐसी क्या मजबूरी होती है कि उन्हें आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को चुनाव लड़ने का टिकट देना पड़ता है. टिकटों के बंटवारे का सबसे बड़ा आधार उम्मीदवार के जीतने की संभावना होता है. सवाल उठता है कि बाहुबली या धनपति ही दलों को जीतने वाले क्यों लगते हैं? और सवाल यह उठता है कि मतदाता जानते-बूझते ऐसे व्यक्तियों को वोट क्यों देते हैं?
अतीक जैसे व्यक्ति को चुनाव लड़ाना जहां एक ओर हमारे राजनीतिक दलों पर सवालिया निशान है वहीं मतदाता को भी स्वीकार करना होगा कि ऐसे व्यक्तियों को अपना प्रतिनिधि या नेता चुनकर वह जनतंत्र के प्रति अपने कर्तव्य को न निभाने का अपराध करता है.
सत्ता की राजनीति में निमग्न राजनेताओं से हम किसी प्रकार के विवेक की आशा भले ही न करें लेकिन जागरूक मतदाता से यह अपेक्षा जरूर की जाती है कि वह अपराध और राजनीति के नापाक रिश्तों के षड्यंत्र को समझेगा और इस रिश्ते को तोड़ने के लिए अपने वोट का उपयोग कर लोकतंत्र को मजबूत बनाएगा.