ब्लॉग: आपदा प्रबंधन की खामियां उजागर कर रहा है उत्तराखंड हादसा

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: November 28, 2023 01:11 PM2023-11-28T13:11:59+5:302023-11-28T13:14:22+5:30

मजदूर समाज के सबसे छोटे, कमजोर तथा गरीब तबके के समझे जाते हैं। इसीलिए राष्ट्र निर्माण के साथ-साथ हमारे दैनंदिन जीवन में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होने के बावजूद उनकी सुरक्षा को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता।

Blog Uttarakhand accident is exposing flaws in disaster management Uttarkashi tunnel rescue | ब्लॉग: आपदा प्रबंधन की खामियां उजागर कर रहा है उत्तराखंड हादसा

फाइल फोटो

Highlights41 श्रमिकों को बचाने के लिए आधुनिक मशीनें लगाई गई हैं श्रमिकों के परिजनों के साथ-साथ पूरा देश भी चिंतित है लाखों मजदूर आधुनिक भारत के निर्माण के शिल्पकारों में से एक हैं

नई दिल्ली:  उत्तराखंड की सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों के प्राण बचाने के लिए सरकार से जो संभव हो पा रहा है, वह कर रही है लेकिन एक सवाल जरूर मन में पैदा होता है कि हमारे पास ऐसी आधुनिक तकनीक क्यों नहीं है, जो भीषण प्राकृतिक या मानवीय आपदा के दौरान बेशकीमती मानव जीवन को बचा पाने में सक्षम हो। 12 नवंबर से इस सुरंग के मलबे में फंसकर जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे 41 श्रमिकों को बचाने के लिए आधुनिक मशीनें लगाई गई हैं लेकिन 16 दिन गुजर जाने के बाद भी यह कहा नहीं जा सकता कि ये मजदूर कब तक सुरक्षित बाहर निकल सकेंगे।

इंतजार की घड़ियां लंबी होती जा रही हैं और फंसे हुए श्रमिकों के परिजनों के साथ-साथ पूरा देश भी चिंतित है। तकनीक कितनी भी विकसित हो जाए लेकिन परंपरागत ज्ञान अभी भी अप्रासंगिक नहीं हुआ है। इस ज्ञान का उपयोग करने का विचार आपदा के 16 दिन बाद करने का विचार आया। अगर इस विचार को पहले से अमल में लाया जाता तो शायद श्रमिक आज सकुशल बाहर आ गए होते। इन श्रमिकों को बचाने के लिए रैट माइनर्स की सेवाएं लेने का फैसला किया गया है। रैट माइनर्स सुरंग के भीतर जाकर 3 से 4 फुट की छोटी-छोटी सुरंग खोदकर श्रमिकों के बाहर निकलने का रास्ता बनाएंगे। यह परंपरागत तकनीक अब तक मशीनी तकनीक से ज्यादा कारगर तथा सुरक्षित साबित हुई है।

 जैसे चूहे छोटे-छोटे बिल बनाते हैं, उसी तरीके को अपनाकर सुरंगें बनाने का यह काम सदियों से चला आ रहा है। इसके लिए दिल्ली और झांसी से रैट माइनिंग में कुशल एवं अनुभवी लोगों को बुलवाया गया है। देश में बड़ी-बड़ी परियोजनाएं चल रही हैं। दुर्गम स्थानों पर पहुंच मार्ग बनाने के लिए विशाल सुरंगें, पुल बन रहे हैं. ये परियोजनाएं देश के विकास के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। इनमें काम कर रहे लाखों मजदूर आधुनिक भारत के निर्माण के शिल्पकारों में से एक हैं। लेकिन अक्सर देखा जाता है कि देश के विकास के इन शिल्पकारों की सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था नहीं की जाती।

मजदूर समाज के सबसे छोटे, कमजोर तथा गरीब तबके के समझे जाते हैं। इसीलिए राष्ट्र निर्माण के साथ-साथ हमारे दैनंदिन जीवन में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होने के बावजूद उनकी सुरक्षा को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता। बड़ी परियोजनाओं में कार्यरत मजदूरों की सुरक्षा के लिए आधुनिक तकनीक विकसित हो गई है, उनका व्यापक उपयोग भी किया जाता है लेकिन हमारे देश में आपदा की स्थिति में आधुनिक उपकरण तत्काल उपलब्ध नहीं होते। आपदा घटित होने के बाद तकनीक के उपयोग पर विचार किया जाता है। 

पहले तो कामचलाऊ तकनीक का उपयोग होता है और जब उससे बात नहीं बनती तब आधुनिक मशीनें मंगवाई जाती हैं लेकिन स्थिति तब तक काबू से बाहर हो चुकी होती है। उत्तराखंड की सुरंग में हुए हादसे में भी ऐसा ही हुआ है। आधुनिक तथा परंपरागत तकनीक के समन्वित उपयोग का विचार भी विलंब से आया। उन 41 मजदूरों के मनोबल की प्रशंसा की जानी चाहिए जो संकट का बहादुरी के साथ सामना कर रहे हैं। उनका मनोबल ही उन्हें जीवित रखे हुए है। आम तौर पर आपदा में फंसे लोगों के मनोबल की ज्यादा चिंता होती है मगर यहां मौत के मुंह में फंसे कामगारों के फौलादी इरादे बचाव कार्य में जुटे लोगों के हौसलों को संजीवनी दे रहे हैं।

उत्तराखंड का सुरंग हादसा भारत में पहली दुर्घटना नहीं है। पहले हुए ऐसे हादसों में बड़ी संख्या में लोगों की जान गई है। उत्तराखंड में ही 2013 में अतिवृष्टि के कारण हजारों लोगों की मौत हुई. उस वक्त भी यह तथ्य सामने आया था कि बार-बार प्राकृतिक आपदाओं से जूझने वाले इस प्रदेश में आपदा प्रबंधन का आधुनिक ढांचा ही नहीं है। दस साल बाद उसी राज्य में फिर बड़ी आपदा सामने आई और आपदा प्रबंधन की कमजोरी से पूरा प्रशासन जूझता नजर आया। उत्तराखंड का सुरंग हादसा एक सबक भी है। देश में कहीं भी छोटी-बड़ी परियोजनाएं शुरू करने के पहले उसमें लगने वाले मानव बल की सुरक्षा का मजबूत ढांचा तैयार कर लिया जाना चाहिए।

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