ब्लॉग: लोकसभा चुनाव के झरोखे से सुकुमार सेन और टीएन शेषन की यादें
By आरके सिन्हा | Published: March 12, 2024 11:27 AM2024-03-12T11:27:12+5:302024-03-12T11:35:10+5:30
पहले चुनाव आयुक्त के रूप में जिस परंपरा को सुकुमार सेन ने शुरू किया था, उसे आगे लेकर जाने वाले कुशल चुनाव आयुक्तों में टीएन शेषन ने सबसे अग्रणी भूमिका निभाई थी।
एक बार फिर से देश लोकसभा चुनावों के लिए तैयार है। लोकसभा चुनावों को सफलतापूर्वक करवाने की जिम्मेदारी डेढ़ करोड़ सरकारी अफसरों पर होगी। करीब सवा करोड़ मतदान केंद्रों में जाकर मतदाता देश के 543 लोकसभा सांसदों का चुनाव करेंगे। बहरहाल, भारत में अब तक लोकसभा के 17 चुनाव हो चुके हैं। पहली लोकसभा के चुनाव 25 अक्तूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 के बीच कराए गए थे।
उस समय लोकसभा में कुल 489 सीटें थीं लेकिन संसदीय क्षेत्रों की संख्या 401 थी। लोकसभा की 314 संसदीय सीटें ऐसी थीं, जहां से सिर्फ एक-एक प्रतिनिधि चुने जाने थे। वहीं 86 संसदीय सीटें ऐसी थीं जिनमें दो-दो लोगों को सांसद चुना जाना था। वहीं नॉर्थ बंगाल संसदीय क्षेत्र से तीन सांसद चुने गए थे। किसी संसदीय क्षेत्र में एक से अधिक सदस्य चुनने की यह व्यवस्था 1957 तक जारी रही।
पहले आम चुनाव में 21 या उससे अधिक उम्र के करीब 18 करोड़ मतदाता थे पूरे देश में। इनमें से लगभग 85 प्रतिशत पढ़ या लिख नहीं सकते थे। प्रत्येक मतदाता की पहचान और पंजीकरण किया जाना था फिर मतदान केंद्रों को उचित दूरी पर बनाया जाना था और ईमानदार व कुशल मतदान अधिकारियों की भर्ती की जानी थी। यह सब काम सुकुमार सेन के नेतृत्व में चुनाव आयोग कर रहा था।
इस बीच, 24 फरवरी और 14 मार्च 1957 के बीच हुए दूसरे चुनाव के दौरान भी सुकुमार सेन मुख्य चुनाव आयुक्त बने रहे। यह मानना होगा कि पहले चुनाव आयुक्त के रूप में जिस परंपरा को सुकुमार सेन ने शुरू किया था, उसे आगे लेकर जाने वाले कुशल चुनाव आयुक्तों में टी.एन.शेषन ने सबसे अग्रणी भूमिका निभाई थी। उन्होंने 1990 के दशक में चुनाव आयोग के प्रमुख पद पर रहते हुए चुनाव सुधारों को सख्ती से लागू करने का अभियान शुरु किया।
शेषन ने अपने साथियों में यह विश्वास जगाया कि उन्हें चुनाव की सारी प्रक्रिया को ईमानदारी से अंजाम देना चाहिए। उनसे पहले के कुछ चुनाव आयुक्तों पर आरोप लगते रहते थे कि वे पूरी तरह से सरकार के इशारों पर ही चुनाव करवाते थे। शेषन ने साबित किया था कि सिस्टम में रहते हुए भी बहुत कुछ सकारात्मक किया जा सकता है। वे अपने दफ्तर में बैठकर काम करने वाले अफसर नहीं थे।
शेषन चाहते थे कि चुनाव सुधार करके भारत के लोकतंत्र को मजबूत किया जाए। शेषन ने अपने लिए एक कठिन और कठोर राह को पकड़ा। उन्होंने चुनाव सुधार का ऐतिहासिक कार्य करके विश्व भर में नाम कमाया। उन्होंने देश को जगाने के उद्देश्य से 1994 से 1996 के बीच चुनाव सुधारों पर देश भर में सैकड़ों जन सभाओं को भी संबोधित । अब जबकि देश आगामी लोकसभा चुनावों के लिए तैयार है तो सुकुमार सेन जी और टी.एन. शेषन का स्मरण जरूरी हो गया है।