ब्लॉग: भाजपा के लिए मुश्किल होती दक्षिण की डगर

By राजकुमार सिंह | Published: October 17, 2023 10:07 AM2023-10-17T10:07:33+5:302023-10-17T10:13:20+5:30

भाजपा के लिए दक्षिण भारत की राजनीति की डगर लगातार मुश्किल होती दिख रही है। त्रिकोणीय मुकाबले के बावजूद कांग्रेस ने जिस प्रचंड बहुमत से कर्नाटक की सत्ता छीनी, वह भाजपा के चुनाव प्रबंधन महारत के आत्मविश्वास को हिलाने वाला रहा।

Blog: South road becomes difficult for BJP | ब्लॉग: भाजपा के लिए मुश्किल होती दक्षिण की डगर

फाइल फोटो

Highlightsभाजपा के लिए दक्षिण भारत की राजनीति की डगर लगातार मुश्किल होती दिख रही हैकर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस को सत्ता मिली, उससे साफ है कि कोई भी दांवपेंच काम नहीं आयाकर्नाटक की सत्ता गंवाने के साथ भाजपा की मुश्किलें समाप्त नहीं, शुरू होती हैं

भाजपा के लिए दक्षिण भारत की राजनीति की डगर लगातार मुश्किल होती दिख रही है। त्रिकोणीय मुकाबले के बावजूद कांग्रेस ने जिस प्रचंड बहुमत से कर्नाटक की सत्ता छीनी, वह भाजपा के चुनाव प्रबंधन महारत के आत्मविश्वास को हिलाने वाला रहा। वोट बंटवारे से लेकर कोई भी चुनावी दांवपेंच काम नहीं आया।

परिणामस्वरूप पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के उसी जनता दल सेक्युलर से अब हाथ मिलाना पड़ा है, विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान जिसे मिलनेवाले हर वोट से कांग्रेस के भ्रष्टाचार को ताकत मिलने की बात भाजपा के नेता कहते रहे।

दरअसल कर्नाटक की सत्ता गंवाने के साथ भाजपा की मुश्किलें समाप्त नहीं, शुरू होती हैं। उसका लिंगायत वोट बैंक टूट चुका है, जिसकी बदौलत वह कर्नाटक को दक्षिण में अपना दुर्ग बना पाई और राज्य की सत्ता के साथ-साथ लोकसभा की भी अधिसंख्यक सीटें जीतती रही।

कर्नाटक की सत्ता गंवाने और खासकर विपक्षी एकता के बाद भाजपा ने भी एनडीए को सक्रिय करते हुए रूठे हुए दोस्तों को मनाने के साथ ही नए दोस्तों की तलाश शुरू की। बेशक संख्या की दृष्टि से दर्जनों दल जुटे, पर जद सेक्युलर के अलावा शायद ही कोई ऐसा दल हो, जो अगले लोकसभा चुनाव में मददगार साबित हो सकता हो।

जद सेक्युलर से चुनावी गठबंधन की बात सिरे चढ़ जाने से भाजपा जितनी आश्वस्त हुई होगी, उससे ज्यादा उसकी चिंताएं अन्नाद्रमुक और जन सेना से दोस्ती टूट जाने से बढ़ गई हैं। सनातन धर्म पर विवाद के चलते तमिलनाडु के दूसरे बड़े दल अन्नाद्रमुक ने भाजपा से गठबंधन समाप्त करने का ऐलान कर दिया है।

आंध्र में फिलहाल जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी की सरकार है, जिसके केंद्र सरकार के साथ मधुर रिश्ते रहे हैं, पर वह भाजपा को राज्य की राजनीति में पैर क्यों जमाने देगी, जबकि उसे विधानसभा में अपने दम पर बहुमत के अलावा लोकसभा की 25 में से 22 सीटें हासिल हैं? शेष तीन सीटें टीडीपी के पास हैं और दोनों राष्ट्रीय दल भाजपा-कांग्रेस के हाथ खाली हैं। हां, आंध्र से ही अलग होकर पृथक राज्य बने तेलंगाना में अवश्य भाजपा 17 में से चार सीटें जीतने में सफल रही थी पिछली बार।

अब बीआरएस बन गई सत्तारूढ़ टीआरएस ने तब नौ सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के हिस्से एक-एक सीट आई थी। सहमति की अटकलें सही हों तो भी अपने चुनावी समीकरण के मद्देनजर केसीआर भाजपा से गठबंधन का जोखिम शायद ही उठाए। एक और दक्षिण भारतीय राज्य केरल से 20 लोकसभा सदस्य चुने जाते हैं और पिछली बार सत्तारूढ़ माकपा को एक सीट के अलावा शेष सभी 19 सीटें कांग्रेस के नेतृत्ववाले यूडीएफ ने जीती थीं। कांग्रेस को अकेले ही 15 सीटें मिली थीं।

Web Title: Blog: South road becomes difficult for BJP

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