ब्लॉग: छोटे दल निभाएंगे बड़ी चुनावी भूमिका
By राजकुमार सिंह | Published: April 1, 2024 11:01 AM2024-04-01T11:01:27+5:302024-04-01T11:05:39+5:30
चुनाव से पहले जिस तरह सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने छोटे-छोटे दलों को इकट्ठा कर व्यापक गठबंधन बनाए, वह तो इन दलों के महत्व का प्रमाण है ही, चुनावी मुकाबले में भी ये दल बड़ी भूमिका निभाते दिख रहे हैं।
केंद्रीय सत्ता के लिए हो रहे लोकसभा चुनाव में छोटे और क्षेत्रीय दल ज्यादा बड़ी भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं। चुनाव से पहले जिस तरह सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने छोटे-छोटे दलों को इकट्ठा कर व्यापक गठबंधन बनाए, वह तो इन दलों के महत्व का प्रमाण है ही, चुनावी मुकाबले में भी ये दल बड़ी भूमिका निभाते दिख रहे हैं। खासकर सत्तारूढ़ दल भाजपा और उसके नेतृत्व वाले एनडीए की बात करें तो कड़ी चुनौती ये दल ही पेश करेंगे।
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल भी है, लेकिन जमीनी राजनीतिक हकीकत अलग है। 2014 के लोकसभा चुनाव में मात्र 44 और फिर 2019 के चुनाव में 52 सीटों पर सिमट गई कांग्रेस बमुश्किल दर्जन भर राज्यों में ही अपने दम पर चुनाव लड़ने की हालत में है। जीत की संभावना उनमें से भी आधे से कम राज्यों में है। फिलहाल कांग्रेस की सिर्फ तीन राज्यों: हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में सरकार है।
इसके अलावा वह तमिलनाडु और झारखंड में सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है। ऐसे में अपने लिए 370 और एनडीए के लिए 400 लोकसभा सीटों का नारा दे रही भाजपा को चुनौती दे पाना कांग्रेस के वश की बात नहीं लगती। कर्नाटक और तेलंगाना में अब कांग्रेस की सरकार होने के चलते समीकरण बदल सकते हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत की ‘हैट्रिक’ रोकने की जिम्मेदारी मुख्यत: छोटे और क्षेत्रीय दलों पर होगी।
दिल्ली की सात लोकसभा सीटों पर आप और कांग्रेस मिल कर भाजपा की जीत की ‘हैट्रिक’ रोकने की कोशिश करेंगे, लेकिन उसी मकसद के साथ पंजाब में दोनों अलग-अलग लड़ेंगे. जाहिर है, दिल्ली के अलावा गुजरात और गोवा में भी भाजपा का ग्राफ नीचे लाने की कवायद में आप की भूमिका महत्वपूर्ण होनेवाली है। राष्ट्रीय दल का दर्जा मिल जाने के बावजूद आप है तो छोटा दल ही, जिसके एकमात्र लोकसभा सांसद ने भी कमल थाम लिया।
आप से आगे चलें तो लोकसभा चुनाव में भाजपा का मुकाबला क्षेत्रीय दलों पर ही निर्भर करेगा। 80 लोकसभा सीटोंवाला उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है। भाजपा पिछली बार वहां से अकेले 62 और सहयोगियों के साथ 64 सीटें जीतने में सफल रही थी। तब सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन था और उसने 15 सीटें जीती थीं। इस बार सपा-कांग्रेस गठबंधन है।
सपा 63 और कांग्रेस 17 सीटों पर लड़ रही है। बड़ा सवाल यही है कि क्या यह गठबंधन भाजपा को पिछली जितनी सीटों पर भी रोक पाएगा? इसका जवाब भी मुख्य रूप से सपा पर निर्भर करेगा। अतीत का अनुभव बताता है कि कांग्रेस के मुकाबले क्षेत्रीय और छोटे दल भाजपा को ज्यादा जोरदार टक्कर देते रहे हैं। छोटे दलों की बड़ी चुनौती से भाजपा कैसे पार पाएगी- ‘हैट्रिक’ उस पर ज्यादा निर्भर करेगी।