ब्लॉग: लोकतंत्र की गरिमा गिराने वालों को माफ नहीं करेगी जनता

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: December 21, 2023 11:02 AM2023-12-21T11:02:16+5:302023-12-21T11:03:37+5:30

कल्याण बनर्जी का आचरण जितना निंदनीय था, उतना ही निंदनीय कृत्य उनका साथ देने वाले विपक्षी सदस्यों का भी रहा। धनखड़ पिछले एक हफ्ते से यह कोशिश कर रहे हैं कि राज्यसभा की कार्यवाही सुचारू ढंग से चले। लेकिन उनके प्रयासों को विपक्ष सफल नहीं होने दे रहा है।

Blog Public will not forgive those who bring down the dignity of democracy | ब्लॉग: लोकतंत्र की गरिमा गिराने वालों को माफ नहीं करेगी जनता

फाइल फोटो

Highlightsअध्यक्ष के किसी फैसले या किसी टिप्पणी से विपक्षी सदस्य असहमत हो सकते हैं लोकतांत्रिक तरीके से अपना विरोध दर्ज करवाने का उन्हें पूरा अधिकार भी हैमतभेद को मनभेद अथवा व्यक्तिगत द्वेष या शत्रुता में परिवर्तित नहीं होने देना चाहिए

नई दिल्ली: विपक्ष के अभूतपूर्व हंगामे के कारण तार-तार हो रही संसद की गरिमा पर एक और आघात मंगलवार को किया गया। संसद की सुरक्षा में चूक के खिलाफ 14 दिसंबर से संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही बाधित कर रहे विपक्षी दलों के एक सदस्य ने मंगलवार को उपराष्ट्रपति तथा राज्यसभा के सभापति जगदीश धनखड़ की मिमिक्री कर शालीनता एवं लोकतंत्र की गरिमा की सारी मर्यादाओं को तोड़ दिया। आजादी के बाद से देश में संसद, विधान मंडलों तथा स्थानीय निकायों में हंगामों तथा कभी-कभी अमर्यादित आचरणों की कई घटनाएं सामने आई हैं, मगर लोकतंत्र में सर्वोच्च एवं सबसे पवित्र संवैधानिक पदों में से एक पर आसीन व्यक्ति का अपमान कतई स्वीकार्य नहीं हो सकता। 

यह किसी व्यक्ति विशेष का नहीं बल्कि लोकतंत्र एवं संविधान का अपमान है। लोकसभा के अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति का काम संसद की  कार्यवाही का बिना किसी पक्षपात के सुचारु रूप से संचालन करना है। लोकसभा अध्यक्ष तथा राज्यसभा के सभापति नियमों के तहत सदन का संचालन करते हैं एवं यह सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि सदन में आम आदमी तथा देश के हितों से संबंधित मसलों पर गंभीर चर्चा हो, सार्थक फैसले  हों और देश  प्रगति पथ पर आगे बढ़े। सदन की कार्यवाही के सुचारु संचालन की जितनी जिम्मेदारी सभापति या अध्यक्ष की होती है, उतनी ही सत्ता एवं विपक्षी दलों की भी रहती है। एक-दूसरे के सहयोग से ही संसद, विधानसभा तथा स्थानीय निकायों में लोकतांत्रिक परंपराओं, सिद्धांतों तथा मूल्यों की रक्षा हो सकती है एवं राष्ट्र कल्याण के निर्धारित लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है। 

सभापति और अध्यक्ष के किसी फैसले या किसी टिप्पणी से विपक्षी सदस्य असहमत हो सकते हैं और लोकतांत्रिक तरीके से अपना विरोध दर्ज करवाने का उन्हें पूरा अधिकार भी है लेकिन मतभेद को मनभेद अथवा व्यक्तिगत द्वेष या शत्रुता में परिवर्तित नहीं होने देना चाहिए। लोकतंत्र में सत्तापक्ष तथा विपक्ष के बीच वैचारिक मतभेद हमेशा होते हैं। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए रचनात्मक मतभेद जरूरी भी हैं मगर पिछले लगभग एक सप्ताह से संसद के दोनों  सदनों में विपक्ष का आचरण लोकतंत्र की गरिमा के साथ-साथ पूरी दुनिया में देश की छवि को भी धूमिल करने वाला है। मंगलवार को तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने लोकसभा में हंगामे के दौरान राज्यसभा के सभापति जगदीश धनखड़, जो देश के उपराष्ट्रपति भी हैं, की बेहूदा ढंग से नकल उतारी। हंगामे में शामिल विपक्षी दलों के तमाम सदस्यों ने उस क्षण का आनंद इस प्रकार लिया मानो यह कोई हास्य कार्यक्रम देख रहे हों। 

कल्याण बनर्जी का आचरण जितना निंदनीय था, उतना ही निंदनीय कृत्य उनका साथ देने वाले विपक्षी सदस्यों का भी रहा। धनखड़ पिछले एक हफ्ते से यह कोशिश कर रहे हैं कि राज्यसभा की कार्यवाही सुचारू ढंग से चले। लेकिन उनके प्रयासों को विपक्ष सफल नहीं होने दे रहा है। हमारे संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी दी गई है लेकिन उसके लिए कुछ मर्यादाएं भी तय की गई हैं। आज तक निजी या सार्वजनिक मंचों पर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या लोकसभा अध्यक्ष का मखौल नहीं उड़ाया गया। उनकी आवाज की नकल जरूर की गई लेकिन उसमें इस बात का पूरा ध्यान रखा गया कि इन उच्च संवैधानिक पदों पर आसीन लोगों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपमान न हो। 

जब मिमिक्री करने वाला हास्य कलाकार संवैधानिक गरिमा का ध्यान रख सकता है तो जनप्रतिनिधि क्यों नहीं, जिन्हें लोकतंत्र एवं संविधान का रक्षक समझा जाता है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला तक कल्याण बनर्जी की इस हरकत से व्यथित हुए हैं। सरकार को हर मसले पर घेरने का प्रयास करनेवाले तमाम विपक्षी दलों के नेता तक बनर्जी के इस आचरण पर चुप्पी साधे हुए हैं क्योंकि वे इस कृत्य का समर्थन नहीं कर सकते। यही नहीं संसद की सुरक्षा में चूक को लेकर उनके विरोध के महत्व को भी कल्याण बनर्जी के आचरण ने खत्म कर दिया है। अस्सी के दशक में हरियाणा में बहुमत साबित करने के लिए दो राजनीतिक दलों के नेताओं ने तत्कालीन राज्यपाल जी.डी. तपासे के साथ अभद्र व्यवहार किया था, तमिलनाडु विधानसभा के भीतर विपक्ष की तत्कालीन नेता जयललिता की साड़ी खींची गई थी। इन शर्मनाक  घटनाओं की कड़ी में कल्याण बनर्जी का आचरण भी जुड़ गया है। 

विपक्ष अपने इस आचरण को कैसे जायज ठहराएगा, आम आदमी को क्या सफाई देगा. आम आदमी को कभी हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. वह जिन लोगों को अपना प्रतिनिधि निर्वाचित कर स्थानीय निकायों, विधानमंडलों और संसद में भेजता है तो उनके कार्यों एवं आचरण पर भी पैनी नजर रखता है। संसद की सुरक्षा में सेंध समूचे देश के लिए चिंता का विषय है तथा ऐसी घटना की पुनरावृत्ति रोकने के प्रयासों को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए. इस कार्य में विपक्ष को सरकार को पूरा सहयोग देना चाहिए लेकिन वह लोकतंत्र की गरिमा के साथ खिलवाड़ कर रहा है। देश उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।

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