ब्लॉग: विपक्षी दलों को आत्मचिंतन करने की जरूरत

By विवेकानंद शांडिल | Published: April 24, 2023 01:54 PM2023-04-24T13:54:29+5:302023-04-24T14:05:09+5:30

कर्नाटक के अलावा इस साल मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना जैसे कई अन्य राज्यों में चुनाव होने हैं, जिसे आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इन चुनावों से संकेत मिलेगा कि 2024 की तस्वीर क्या होगी।

Blog: Opposition parties need to introspect against BJP | ब्लॉग: विपक्षी दलों को आत्मचिंतन करने की जरूरत

ब्लॉग: विपक्षी दलों को आत्मचिंतन करने की जरूरत

हाल ही में भारतीय जनता पार्टी द्वारा कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर अपने स्टार प्रचारकों की सूची ज़ारी कर दी गई। इस सूची में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे कई कद्दावर नेताओं के नाम शामिल है। 

कर्नाटक के अलावा, इस वर्ष मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना जैसे कई अन्य राज्यों में भी चुनाव होने हैं, जिसे आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इन चुनावों से स्पष्ट रूप से हमें लोगों की सोच के बारे में पता चलेगा कि वे वर्ष 2024 में क्या चाहते हैं?

हालांकि, वर्तमान समय में विपक्ष की स्थिति को देखकर नहीं लगता है कि आने वाले कई दशकों में देश के केन्द्रीय सत्ता में कोई बदलाव होने वाला है। एक ओर, प्रधानमंत्री मोदी के सतत मार्गदर्शन में आज भारत आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक जैसे तमाम मोर्चों पर विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर है। 

तो, वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल विचारधारा से भटके हुए नज़र आ रहे हैं। स्थिति यह है कि उन्हें अपने अस्तित्व को बचाने के लिए कुछ भी गुरेज़ नहीं है। 

निःसंदेह किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। वे सत्ता पर नैतिक और राजनीतिक दबाव बनाते हैं, जिससे शासन में पारदर्शिता सुनिश्चित होती है और राष्ट्र के विकास को बढ़ावा मिलता है। इसी वजह से यह अपेक्षा की जाती है कि हमारा विपक्ष गंभीर, ज़िम्मेदार और परिपक्व हो। लेकिन, क्षेत्रीय दलों से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक, विपक्ष का व्यवहार हमें निराश ही करता है।

दिनभर प्रधानमंत्री मोदी पर अनावश्यक रूप से निशाना साधने वाले नेताओं को, यदि हम उनके ही पैमाने पर मूल्यांकन करें, तो आप पाएंगे कि जद (यू) या राजद जैसे समाजवादियों का जन्म जिस कांग्रेस और उसकी संस्कृति के विरुद्ध हुआ। आज ये उसी की दहलीज़ पर खड़े हैं और जिस भाजपा की मदद से लालू प्रसाद यादव को पहली बार 10 मार्च, 1990 को बिहार की सत्ता संभालने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आज उनका पूरा परिवार भाजपा की आलोचना करते नहीं थकता है। 

ख़ैर, राजद के वैचारिक पतन के बारे में तो हर किसी को पता है। यदि हम बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चर्चा करें, तो बिहार की जनता के साथ सबसे बड़ा विश्वासघात तो उन्होंने ही किया है।

गौरतलब है कि बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में नीतीश कुमार की छवि ने उस समय रंग भरना शुरू कर दिया था, जब उन्होंने वर्ष 1994 में कुर्मी चेतना मंच से लालू यादव के विरुद्ध हुंकार भरा था। 

आगे चलकर, उन्होंने लालू यादव के विरुद्ध भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ी। फलस्वरूप, भाजपा की मदद से वे बिहार के मुख्यमंत्री बने और लालू यादव जेल गये।  लेकिन, बीते एक दशकों में उन्होंने केवल अपने स्वार्थ के लिए बिहार के हितों का गला घोंट दिया और आज वह राजद के सहयोग से सत्ता में हैं। 

वहीं, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जिस भ्रष्ट सरकार और नेताओं के विरुद्ध आवाज़ उठाकर अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने। आज अपनी पार्टी को विस्तार देने के लिए उनके साथ ही गठबंधन करने जा रहे हैं। 

दूसरी ओर, कथित रूप से विपक्ष का एक बड़ा चेहरा माने जाने वाली ममता बनर्जी ने सदैव कांग्रेस के विरुद्ध आवाज़ उठाकर सत्ता में बने में सफलता हासिल की है और आज अपने प्रधानमंत्री बनने के ख़्बाव को पूरा करने के लिए, वह उसी से सहयोग पाना चाहती हैं। 

कुल मिलाकर, यह कहा जा सकता है कि देश के तमाम प्रमुख विपक्षी दल, भाजपा को हराना तो चाहते हैं, लेकिन बीते 9 वर्षों से अब तक उन्हें यह बोध नहीं हुआ है कि वे लोगों के बीच किन मुद्दों के साथ जाएं और संघर्ष करें। वे कभी मोदी सरकार को पूँजीपतियों की सरकार बता रहे हैं, तो कभी दलित और पिछड़ा विरोधी। लेकिन, उन्हें भी पता है कि प्रधानमंत्री मोदी के जन-कल्याणकारी नीतियों से देश के सवा सौ करोड़ लोगों में जो विश्वास पैदा हुआ है, उनके पास इसका कोई तोड़ नहीं है। 

यदि उन्हें आने वाले चुनावों में वास्तव में कुछ सार्थक करना है, तो धरना-प्रदर्शन वाली राजनीति से ऊपर उठना होगा। उन्हें देश के सामूहिक चेतना में आए बदलाव को समझने का प्रयास करना होगा। यह तभी संभव है कि जब वे स्थितियों का बेहद गहराई के साथ मूल्यांकन करें और उसके अनुसार अपने विचार, व्यवहार और नेतृत्व में बदलाव लाएं। इसके फलस्वरूप ही समीकरणों में कोई बदलाव आ सकता है।

 

Web Title: Blog: Opposition parties need to introspect against BJP

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