ब्लॉग: सात्विक जीवन के कीर्तिस्तंभ थे महामना
By गिरीश्वर मिश्र | Published: December 25, 2023 10:34 AM2023-12-25T10:34:13+5:302023-12-25T10:42:42+5:30
मदन मोहन मालवीय को गांधीजी ने ‘महामना’ कहकर संबोधित किया था और वे असाधारण व्यक्तित्व की महिमा से सम्पन्न महामना सही अर्थों में जन-नायक थे। वे भारत में एक सामाजिक–सांस्कृतिक परिवर्तन के सूत्रधार बने।
आज राजनीति की बेतरतीब उठापटक में निहित स्वार्थ और छल-कपट केंद्रीय होता जा रहा है। उसके आगे मानव मूल्यों की रक्षा भारी चुनौती बनती जा रही है। इस तेजी से बदल रहे परिवेश में सच्चाई और चरित्र के सरोकार विचारणीय की सूची से खारिज होते जा रहे हैं। अब ऐसा कोई मुद्दा ही नहीं बच रहा क्योंकि सिद्धांत या विचारधारा गैर-प्रासंगिक हो रही है। उसका कोई प्रयोजन ही नहीं बच रहा।
ऐसी गंभीर परिस्थिति में उन स्रोतों को पहचानने एवं स्मरण करने की जरूरत और बढ़ जाती है जो इनकी उपयोगिता प्रमाणित करते हैं और दीप-स्तंभ की तरह हमें राह खोजने के लिए जरूरी आलोक देते हैं और भटकने से बचाते हैं। ऐसे ही एक दीपस्तंभ का नाम है महामना पंडित मदनमोहन मालवीय (1861-1946), जिन्होंने अंग्रेजी राज के औपनिवेशिक दौर में अखंड देश-भक्ति, आत्म-त्याग और उच्च मूल्यों के प्रति निष्ठा की अनोखी मिसाल कायम की।
बालक मालवीय ने परंपरागत संस्कृत का अध्ययन शुरू किया, फिर अंग्रेजी ढर्रे की शिक्षा प्राप्त की, वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की और एक वकील के रूप में ख्याति पाई पर उन्होंने समाज और राष्ट्र की सेवा को चुना और उसकी धुन में हाईकोर्ट की वकालत छोड़ दी। भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा को स्मरण कर अंग्रेजी शासन में भारत की शिक्षा की दुर्दशा देख उनको विशेष कष्ट होता था।
उन्होंने राष्ट्र के निवासियों के शरीर, मन और आत्मा को सशक्त बनाने के लिए हिंदू विश्वविद्यालय की परिकल्पना की और एक दशक के सतत प्रयास के पश्चात 1916 में काशी में उसकी स्थापना की। यह शिक्षा केंद्र मालवीय जी के अनेक विचारों का प्रत्यक्ष विग्रह है।
गांधीजी ने उनको ‘महामना’ कहकर संबोधित किया था और वे सच्चे अर्थों में महामना साबित हुए - एक अच्छे और उदार मन वाले सज्जन व्यक्ति। असाधारण व्यक्तित्व की महिमा से सम्पन्न महामना सही अर्थों में जन-नायक थे। वे भारत में एक सामाजिक–सांस्कृतिक परिवर्तन के सूत्रधार बने।
सात्विक आचरण की भी अपनी धार होती है, जो अपने प्रभाव का वृत्त रचती है और यह क्रम आगे भी चलता रहता है। महामना के सात्विक शौर्य की गाथा के निकट जाना एक उज्ज्वल शीतल नक्षत्र की छाया में रहने की तृप्ति का अनुभव देता है।