Blog-भविष्य-नगर की कानाफूसियां

By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Published: October 13, 2018 03:02 AM2018-10-13T03:02:00+5:302018-10-13T03:02:00+5:30

आओ, भविष्य-नगर के चौराहे पर, पार्को में, घरों में घुसो और उनकी खुसफुसों, विवादों, सैद्धांतिक प्रवचनों को सुनो। (यह भविष्य-नगर आज की मनोवृत्तियों, हरकतों और  भावनाओं पर आधारित है।) 

Blog-Future-town whispers | Blog-भविष्य-नगर की कानाफूसियां

डेमो पिक

(शरद जोशी)

 आओ, भविष्य-नगर के चौराहे पर, पार्को में, घरों में घुसो और उनकी खुसफुसों, विवादों, सैद्धांतिक प्रवचनों को सुनो। (यह भविष्य-नगर आज की मनोवृत्तियों, हरकतों और  भावनाओं पर आधारित है।) 
खुसफुस हो रही है : ‘हम ठहरे जात के प्रोफेसर, अपनी बेटी मास्टर; जो हमसे नीचा है, उसके बेटे को कैसे दें? इनकी पगार क्या है? जीवन-स्तर निम्न है। मनोवृत्ति  खराब है। हम अपनी बेटी किसी प्रोफेसर के बेटे को ही दे सकते हैं।’
‘ठीक बात, आप सही कहते हैं।’
सिनेमा का विज्ञापन है : ‘आज ही टॉकीज के पर्दे पर देखें - ‘तन की प्यास’, जिसकी हीरोइन रोज दर्शकों के सामने जीवित आकर भी मिलेगी, अभिनय करेगी! आपके द्वारा फेंकी गई मौसंबियों पर धन्यवाद देगी।’
पास एक चित्र टंगा है, जिसे वर्तमान में ‘अश्लील’ कहा जाता है।
नगरसेविका का निर्णय आज के पत्रों में है : ‘शाम को 5 से 8 तक पार्को-बाजारों में घूमने वालों को एक लाइसेंस लेना होगा। शाम को भटकने वालों का उद्देश्य चूंकि मनोरंजन है अत: सिद्धांतत: उस पर कर लगाना जरूरी है।’
‘सामने देखिए-भीड़ कम है, कैमरे ज्यादा हैं। सड़क विभाग के उपमंत्री योजना में होने वाले सड़क सुधरवाई के कार्यक्रम के अंतर्गत गांधी रोड पर थोड़ा-सा सड़क इंजन चला उद्घाटन कर रहे हैं। इस साल वे 300 सड़क सुधरवाई कार्यक्रम का उद्घाटन करेंगे।’
शाम को चाय पीते समय एक क्लर्क अपनी पत्नी से कह रहा है : ‘आज रास्ते में मेरे पिताजी मिले थे।’
‘कुछ बात हुई?’
‘नहीं, मैं जरा जल्दी में था।’
‘पिताजी ही थे, या कोई और?’
‘कह नहीं सकता, चेहरा मिलता-जुलता था!’
‘जनता में हर्ष है कि भाषा संबंधी मनमुटाव और कार्यालयों में होने वाली सदैव  की दुर्घटनाओं का हल खोजा गया और इस संबंध में शासन का फॉमरूला दोनों भाषाओं के नेताओं ने स्वीकार कर लिया। शासन ने यह फॉमरूला रखा था कि शासकीय विभागों में कुछ में केवल महाराष्ट्रीयन कर्मचारी रखे जाएं, कुछ में गुजराती और कुछ में सिर्फ हिंदी कर्मचारी ही रखे जाएं।’
‘भाषा आंदोलन के नेताओं ने यह प्रस्ताव स्वीकार किया है और अपनी-अपनी बोलियों के कर्मचारियों से अपील की है कि वे अलग-अलग रहकर राष्ट्रीय एकता बनाए रखें तथा मराठी-गुजराती कर्मचारियों में आपस में पेपरवेट फेंकने तथा रूल से सिर फोड़ने की घटनाएं भविष्य में न हों।’ ल्लल्ल 
‘जय हिन्द!’

Web Title: Blog-Future-town whispers

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