ब्लॉग: सीएए को लेकर दूर करना होगा संदेह

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: March 15, 2024 11:45 AM2024-03-15T11:45:48+5:302024-03-15T11:51:07+5:30

लंबे इंतजार के बाद लेकिन अपने अनुकूल राजनीतिक वातावरण में भाजपा ने महत्वपूर्ण लोकसभा चुनावों के पहले विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) की अधिसूचना अचानक जारी करके एक बार फिर विपक्षी दलों को आश्चर्यचकित कर दिया है।

Blog: Doubts regarding CAA need to be removed | ब्लॉग: सीएए को लेकर दूर करना होगा संदेह

फाइल फोटो

Highlightsकेंद्र द्वारा अचानक सीएए अधिनियम की अधिसूचना को लागू करने से विपक्षी दल हैरान हैंसीएए तीन पड़ोसी देशों के ‘उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों’ को कानूनी अधिकारों की गारंटी देता हैसीएए लागू होने से बिना कानूनी दस्तावेज के भारत में रहने वाले निश्चित रूप से भाजपा को वोट देंगे

लंबे इंतजार के बाद लेकिन अपने अनुकूल राजनीतिक वातावरण में भाजपा ने महत्वपूर्ण लोकसभा चुनावों के पहले विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) की अधिसूचना अचानक जारी करके एक बार फिर विपक्षी दलों को आश्चर्यचकित कर दिया है। सीएए तीन पड़ोसी देशों के ‘उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों’ को आत्मसम्मान और कानूनी अधिकारों की गारंटी देता है।

इससे भाजपा को दोहरा लाभ हो सकता है क्योंकि भारतीय अल्पसंख्यक (मुसलमानों को छोड़कर) अपने भाइयों के कल्याण के उपायों को देखते हुए भाजपा के प्रति रुख नरम कर लेंगे और दूसरा, जो लोग बिना किसी कानूनी दस्तावेज के भारत में रह रहे थे वे निश्चित रूप से भगवा पार्टी को वोट देंगे, अगर ‘शरणार्थियों’ को किसी पार्टी को वोट देने की सुविधा प्रदान करने के लिए नागरिकता के बारे में सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली जाएं।

भाजपा से कांग्रेस जो सीख सकती है वह यह है कि स्पष्ट और आसान विजय नजर आने के बावजूद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव जीतने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। ‘मोदी की गारंटी’ अनुच्छेद 370 और अयोध्या राम मंदिर के भव्य उद्घाटन से कहीं आगे जा रही है।

मैं अभी यह नहीं कह सकता कि सीएए लागू करने के परिणाम भारत के लिए अच्छे होंगे या बुरे। कांग्रेस ने भी मनमोहन सिंह सरकार में इस मुद्दे पर थोड़ा काम किया था पर भाजपा को देखिये, उसने इसे अंतरराष्ट्रीय मसला बना दिया। इधर, कांग्रेस और इंडिया गठबंधन अभी भी मोदी-अमित शाह की जोड़ी और मोदी के अनुयायियों की प्रतिबद्ध टोली वाले मजबूत भाजपा संगठन के खिलाफ एक प्रमुख राष्ट्रीय चुनाव लड़ने के लिए मुद्दों की तलाश में है।

इस प्रकार सीएए एक और राजनीतिक वादा है जो आसन्न चुनावों में अगर सभी राज्यों में नहीं तो कुछ राज्यों में भाजपा के मतों को अवश्य बढ़ाएगा। यदि भाजपा प्रचंड बहुमत से जीतती है तो मोदी का कद जवाहरलाल नेहरू के बराबर हो जाएगा, जो लगातार तीन बार प्रधानमंत्री बने और 17 वर्षों तक देश के शीर्ष कार्यकारी पद पर रहे।

दरअसल, 40 और 50 के दशक के वे अलग और कठिन दिन थे जब नवोदित राष्ट्र की नींव रखी जा रही थी और भविष्य की दिशाएं सही ढंग से निर्धारित की जा रही थीं। यह बिल्कुल अलहदा बात है कि एक समय राष्ट्रीय नायक रहे पंडित नेहरू को अब उनकी नीतियों और निर्णयों के लिए भला-बुरा कहा जा रहा है और इस तथ्य को आसानी से नजरअंदाज किया जा रहा है कि उन्होंने भारत के लिए उन प्रारंभिक वर्षों में क्या-क्या किया था।

बंगाल, असम या तमिलनाडु जैसे राज्यों की सरकारों या अन्य राजनीतिक दलों की ओर से सीएए पर जो प्रतिक्रियाएं आ रही हैं और विरोध हो रहा है, वह अपेक्षित ही है। हालांकि यह भाजपा के लिए एक मास्टरस्ट्रोक हो सकता है, लेकिन इसने एक और भानुमती का पिटारा खोल दिया है और नई दरारें व तनाव को पैदा किया है।

निःसंदेह, भाजपा हमेशा ऐसे सांप्रदायिक तनावों और गहरे सामाजिक मतभेदों पर फलती-फूलती रही है। इस नए कानून के लिए नियमों को पहले ही अधिसूचित किया जा सकता था और संसद के अंदर और बाहर इस पर गहन चर्चा की जा सकती थी जिससे गतिरोध को कम किया जाता।

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 में संसद द्वारा पारित किया गया था लेकिन इसे लोकसभा चुनाव के मुहाने पर अधिसूचित किया गया है। सरकार की ऐसी क्या मजबूरियां थीं कि उसे चार साल तक इंतजार करना पड़ा? वैसे, सरकार बार-बार कह रही है कि सीएए किसी की नागरिकता नहीं छीनेगा लेकिन न्यायविदों और राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह कानून असंवैधानिक है और इससे सीमावर्ती राज्यों में उन लोगों को परेशानी हो सकती है जो शांति से अपना जीवन जी रहे हैं। इस संबंध में कई मामले पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं और अब और भी दायर होने की संभावना है क्योंकि कानून लागू कर दिया गया है।

ऐसे में सवाल यह है कि भाजपा इसे क्यों लेकर आई है? सिर्फ अपना एक वादा पूरा करने के लिए या कुछ और भी है जो नजर नहीं आता? क्या यह केवल उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए है या सिर्फ वोट बटोरने के लिए? यदि हां तो मुसलमानों को क्यों छोड़ दिया गया? क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि निश्चित रूप से पाकिस्तान या अफगानिस्तान में उन पर अत्याचार नहीं किया जा रहा है? कुछ राजनीतिक टिप्पणीकारों ने श्रीलंका में तमिलों या अन्य पड़ोसी देशों से भारत में शरण लेने का मुद्दा उठाया है।

नए कानून के नियमों में इसका कोई जवाब नहीं है. संक्षेप में, बढ़ते विरोध और भ्रम को देखते हुए भाजपा के इस सही समय पर उठाए गए कदम का उल्टा प्रभाव पड़ने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ‘सभी संदेहों’ को दूर करने की कोशिश की है, लेकिन जाति और धर्म के प्रति संवेदनशील इस देश में यह अपर्याप्त लगता है।

सीएए से चुनावी माहौल गंदला हो गया है। चुनाव से पहले सरकार को एक सौहार्द्रपूर्ण समाधान देना होगा जिससे नागरिकों और राजनीतिक दलों का विश्वास हासिल हो जो इससे हिल गए हैं। उन्हें लगता है कि भाजपा के पास चुनावी बाॅन्ड की तरह ही, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है, एक गुप्त एजेंडा है। सरकार की विश्वसनीयता एक बार फिर कसौटी पर है।

Web Title: Blog: Doubts regarding CAA need to be removed

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे