ब्लॉग: आधुनिक विकास के कारण हिमालय में बढ़ रही हैं आपदाएं
By प्रमोद भार्गव | Published: August 18, 2023 10:10 AM2023-08-18T10:10:21+5:302023-08-18T10:19:38+5:30
आज विकास के बहाने भोग की जल्दबाजी में समूचे हिमालय को दरकाने का सिलसिला अत्यंत तेज गति से जारी है। केदारनाथ की आपदा से लेकर वर्तमान में हिमाचल और उत्तराखंड में हुई तबाही से कोई सबक नीति-नियंताओं ने नहीं लिया।
भारतीय दर्शन के अनुसार मानव सभ्यता का विकास हिमालय और उसकी नदी-घाटियों से माना जाता है। ऋषि-कश्यप और उनकी दिति-अदिति नाम की पत्नियों से मनुष्य की उत्पत्ति हुई और सभ्यता के क्रम की शुरुआत हुई। एक बड़ी आबादी को शुद्ध और पौष्टिक पानी देने के लिए भगीरथ गंगा को नीचे उतार लाए।
यह विकास धीमा था और विकास को आगे बढ़ाने के लिए हिमालय में कोई हलचल नहीं की गई थी लेकिन आज विकास के बहाने भोग की जल्दबाजी में समूचे हिमालय को दरकाने का सिलसिला अत्यंत तेज गति से जारी है। केदारनाथ की आपदा से लेकर वर्तमान में हिमाचल और उत्तराखंड में हुई तबाही से कोई सबक नीति-नियंताओं ने नहीं लिया। नतीजतन चार दिन की बारिश, 112 बार हुए भूस्खलन और पांच बार फटे बादलों से जो बर्बादी हुई उसमें 71 लोग मारे गए।
इस मानसून में अब तक हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में 327 लोगों को आपदाओं ने लील लिया, 1442 घर जल धाराओं में विलीन हो गए और 7170 करोड़ रुपए की अचल संपत्तियां धराशायी हो गईं। हिमाचल में एक साथ करीब 950 सड़कों पर आवाजाही बंद पड़ी है. बद्री-केदारनाथ राजमार्ग भी बंद पड़ा है।
मौसम विज्ञानी बता रहे हैं कि मानसून में लंबी बाधा के चलते देश के कई हिस्सों में सूखे के हालात निर्मित हो गए हैं और हिमाचल व उत्तराखंड में भीषण बारिश ने तबाही का तांडव रच दिया है। मानसून में रुकावट आ जाने से बादल पहाड़ों पर इकट्ठे हो जाते हैं और यही मूसलाधार बारिश के कारण बनते हैं।
यह तबाही इसी का परिणाम है लेकिन तबाही का कारण मानसून पर डालकर जिम्मेदार लोग अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकते हैं। केदारनाथ में बिना मानसून के रुकावट के ही तबाही आ गई थी। अतएव यह कहना बेमानी है कि मानसून की रुकावट तबाही में बदली।
हकीकत में तबाही के असली कारण समूचे हिमालय क्षेत्र में बीते एक दशक से पर्यटकों के लिए सुविधाएं जुटाने के परिप्रेक्ष्य में जल विद्युत संयंत्र और रेल परियोजनाओं की जो बाढ़ आई हुई है, वह हैं। इन योजनाओं के लिए हिमालय क्षेत्र में रेल गुजारने और कई हिमालयी छोटी नदियों को बड़ी नदियों में डालने के लिए सुरंगें निर्मित की जा रही हैं। बिजली परियोजनाओं के लिए भी जो संयंत्र लग रहे हैं, उनके लिए हिमालय को खोखला किया जा रहा है।
इस आधुनिक औद्योगिक और प्रौद्योगिकी विकास का ही परिणाम है कि आज हिमालय ही नहीं, हिमालय के शिखरों पर स्थित पहाड़ भी दरकने लगे हैं, जिनपर हजारों साल से मानव अपनी ज्ञान-परंपरा के बूते जीवन-यापन करने के साथ हिमालय और वहां रहने वाले अन्य जीव-जगत की भी रक्षा करते चले आ रहे हैं।