ब्लॉग: अपनी धुन के बहुत धनी थे दादाभाई नौरोजी

By कृष्ण प्रताप सिंह | Updated: September 4, 2023 07:42 IST2023-09-04T07:38:14+5:302023-09-04T07:42:44+5:30

कभी भारत के ‘ग्रैंड ओल्ड मैन’ और ‘अनऑफीशियल एम्बेसेडर’ कहलाने वाले दादाभाई नौरोजी को (जिनकी आज जयंती है) अब अपवादस्वरूप ही याद किया जाता है। हालांकि उनकी देशसेवा इतनी नगण्य नहीं थी।

Blog: Dadabhai Naoroji was very rich in his music | ब्लॉग: अपनी धुन के बहुत धनी थे दादाभाई नौरोजी

फाइल फोटो

Highlightsदादाभाई नौरोजी भारत के ‘ग्रैंड ओल्ड मैन’ और ‘अनऑफीशियल एम्बेसेडर’ कहे जाते थे दादाभाई नौरोजी का जन्म 4 सितंबर 1825 को तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी के नवसारी में हुआ थाबहुआयामी व्यक्तित्व के धनी दादाभाई नौरोजी का निधन 30 जून 1917 को बॉम्बे में हुआ था

कभी भारत के ‘ग्रैंड ओल्ड मैन’ और ‘अनऑफीशियल एम्बेसेडर’ कहलाने वाले दादाभाई नौरोजी को (जिनकी आज जयंती है) अब अपवादस्वरूप ही याद किया जाता है। हालांकि उनकी देशसेवा इतनी नगण्य नहीं थी।

इसके विपरीत 1825 में चार सितंबर को यानी आज के ही दिन तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी के नवसारी में एक गरीब पारसी परिवार में जन्म लेने वाले दादाभाई का व्यक्तित्व इतना बहुआयामी और सक्रियताएं इतनी विविधताओं से भरी थीं कि 1917 में 30 जून को बॉम्बे में इस संसार को अलविदा कहने से पहले ही उन्होंने देशवासियों का वह सहज स्नेह अपने नाम कर लिया था, जो जीते जी बहुत कम नायकों को ही मयस्सर हो पाता है।

कारण यह कि इस दौरान उन्होंने देशहित में दो ऐसे बड़े योगदान दिए थे, जो आगे चलकर उसकी स्वतंत्रता के संघर्ष में न सिर्फ उसके नायकों के बहुत काम आए बल्कि प्रकाश स्तंभ या कि मील के पत्थर भी सिद्ध हुए। इनमें पहला योगदान यह था कि अपने गंभीर अर्थशास्त्रीय अध्ययनों के बल पर उन्होंने ‘वेल्थ ड्रेन’ (धन का बहिर्गमन) का सिद्धांत प्रतिपादित करके ब्रिटिश साम्राज्यवाद द्वारा भारत के संसाधनों की भीषण लूट की पोल खोली और दूसरा यह कि उन्होंने भारतीयों के स्वराज के पक्ष में ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ कॉमन्स तक में आवाज उठाई।

उसके बाद में इसी को आधार बनाकर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ जैसा नारा दिया। दादाभाई के व्यक्तित्व की इन सबसे भी बड़ी बात यह थी कि उनमें राजनीतिक व सामाजिक संघर्षों में अपनी विफलताओं को पहचानकर उन्हें स्वीकार कर लेने और इनके बावजूद निराश न होने की क्षमता थी।

उन्होंने भारतीयों की राजनीतिक दासता और दयनीय स्थिति की ओर दुनिया का ध्यान आकृष्ट करने के लिए ‘पावर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया’ नाम से एक पुस्तक भी लिखी, जिसमें ‘वांट्स एंड मीन्स ऑफ इंडिया’ शीर्षक उनका बहुचर्चित पत्र भी संकलित किया गया।

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