ब्लॉग: चुनाव-केंद्रित न रहे देश की राजनीति

By विश्वनाथ सचदेव | Published: September 5, 2023 11:40 AM2023-09-05T11:40:01+5:302023-09-05T11:47:56+5:30

चुनाव जनतंत्र का उत्सव होते हैं। इस उत्सव की गरिमा बनी रहनी चाहिए। सत्तारूढ़ पक्ष और विपक्ष दोनों को एक-दूसरे की आलोचना करने का पूरा अधिकार है और जरूरी भी है लेकिन पिछले कुछ चुनाव से यह आलोचना कई बार मर्यादाएं लांघ जाती है।

Blog: Country's politics should not remain election-centric | ब्लॉग: चुनाव-केंद्रित न रहे देश की राजनीति

ब्लॉग: चुनाव-केंद्रित न रहे देश की राजनीति

Highlightsचुनाव जनतंत्र का उत्सव होते हैं, इस उत्सव की गरिमा बनी रहनी चाहिएदेश की समूची राजनीति चुनाव-केंद्रित ही नहीं हो गई है और नेताओं के भाषण चुनावी लगने लगे हैंपक्ष और विपक्ष दोनों एक-दूसरे की आलोचना करते हैं और यह आलोचना कई बार मर्यादाएं लांघ जाती है

वर्ष 1952 में देश में पहला आम चुनाव हुआ था। इसके बाद चार-पांच चुनाव तो 5 साल के निर्धारित अंतराल पर हुए और चुनाव-प्रचार का काम भी इसी के अनुसार हुआ, पर इसके बाद सिलसिला बिगड़ने लगा। राज्यों में अलग-अलग समय पर चुनाव होने लगे, प्रचार-कार्य भी उसी के अनुसार हुआ और अब तो स्थिति यह बन गई है कि देश की समूची राजनीति चुनाव-केंद्रित ही नहीं हो गई है, बल्कि राजनीतिक दलों के नेताओं के सारे भाषण चुनावी लगने लगे हैं।

चुनाव जनतंत्र का उत्सव होते हैं। इस उत्सव की गरिमा बनी रहनी चाहिए। सत्तारूढ़ पक्ष और विपक्ष दोनों को एक-दूसरे की आलोचना करने का पूरा अधिकार है और जरूरी भी है यह आलोचना पर दुर्भाग्य की बात यह है कि पिछले एक अर्से से कहना चाहिए पिछले कुछ चुनाव से यह आलोचना कई बार मर्यादाएं लांघ जाती है।

विरोधियों की रीति-नीति पर हमला करना कतई गलत नहीं है और अपना बचाव करना भी उतना ही सही है लेकिन विरोधी पूरा गलत है और मैं पूरा सही हूं वाली यह रणनीति सहज गले नहीं उतरती। आत्मविश्वास और आत्मश्लाघा में एक अंतर हुआ करता है। बड़े नेताओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वे इनके बीच की सीमा-रेखा का ध्यान रखेंगे। जनतांत्रिक परंपराओं और मर्यादाओं का तकाजा है कि राजनीति छिछली आलोचनाओं से ऊपर उठकर हो।

इसी साल मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में चुनाव होने वाले हैं फिर उसके कुछ अर्सा बाद ही 2024 में आम-चुनाव होंगे जैसा कि स्पष्ट दिख रहा है। दोनों ही के लिए प्रचार-कार्य शुरू हो चुका है। संबंधित सरकारें अपनी उपलब्धियों के ढिंढोरे पीट रही हैं। ‘रेवड़ियां’ बांटने में कोई पीछे नहीं रहना चाह रहा। दावों और वादों के ढेर लग रहे हैं। आधारहीन गारंटियां दी जा रही हैं।

ज्यों-ज्यों चुनाव नजदीक आते जाएंगे, इन कथित गारंटियों की गति भी तेज होती जाएगी। एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप भी और तेजी से लगेंगे। इन सबसे क्या और कितना चुनावी लाभ होता है, यह तो आने वाला कल ही बताएगा पर इतना तय है कि प्रचार का स्तर पिछले चुनावों से और अधिक नीचे ही जाएगा।

जनतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास करने वालों को निश्चित रूप से यह सब पीड़ादायक ही लगता होगा। एक बात जो हमारे राजनेताओं और राजनीतिक दलों को समझनी होगी, वह यह है कि मतदाता को हमेशा नहीं बरगलाया जा सकता। ‘यह पब्लिक है सब जानती है’ नारे और दावे अच्छे लगते हैं पर यह कतई जरूरी नहीं है कि मतदाता इससे बहल ही जाए।

Web Title: Blog: Country's politics should not remain election-centric

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे