ब्लॉग: अविश्वास प्रस्ताव पर कांग्रेस-भाजपा की नूराकुश्ती से जनता हुई निराश, न माया मिली न राम

By राजेश मूणत | Published: August 11, 2023 03:24 PM2023-08-11T15:24:18+5:302023-08-11T15:31:14+5:30

संसद की लोकसभा में बीते दिवस सत्तापक्ष और विपक्ष के रणबांकुरों में हुए संबोधन रण को देशभर के लोगों ने सुना लेकिन सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच यह रण कोई पहली बार नहीं हुआ।

Blog: Congress-BJP's Noorakushti public disappointed, neither Maya found nor Ram | ब्लॉग: अविश्वास प्रस्ताव पर कांग्रेस-भाजपा की नूराकुश्ती से जनता हुई निराश, न माया मिली न राम

फाइल फोटो

Highlightsसंसद की लोकसभा में बीते दिवस सत्तापक्ष और विपक्ष के रणबांकुरों में हुआ संबोधन रणवैसे अविश्वास प्रस्ताव पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच यह रण कोई पहली बार नहीं हुआ हैदेश के संसदीय इतिहास में 28 बार अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से सरकारों को चुनौती मिल चुकी है

बीते दिवस देश की संसद में सत्तापक्ष और विपक्ष के रणबांकुरों में हुए संबोधन रण को देशभर के लोगों ने सुना। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच यह रण कोई पहली बार नहीं हुआ। देश के संसदीय इतिहास में 28 बार अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से सरकारों को बहुमत साबित करने का मौका मिला। इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में सर्वाधिक 15 बार इस तरह के मौके आए थे।

सरकार के कामकाज और खामियों पर चर्चा होती थी।  मोरारजी देसाई और अटलजी बिहारी वाजपेयी की सरकार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने के पहले इस्तीफा देकर हट गई थी। किसी भी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव अमूमन तब लाया जाता है। जब उस सरकार के अल्पमत में होने की आशंका हो।

सत्ता पक्ष संख्याबल से मजबूत है। इस कारण से वर्तमान में ऐसी कोई स्थिति नहीं थी। लोगों ने भी विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को बहुत ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया।  राहुल गांधी बेहद गंभीरता से कुछ खास नहीं कर पाये, सदन की चर्चा में हिस्सा लेते ऐसा प्रतीत हुआ। उन्होंने सदन में दिये अपने भाषण से फिर साबित कर दिया कि इन्हीं बातों के कारण भारत की जनता ने कांग्रेस से दूरी बना ली है।

जब तक कांग्रेस अपने होनहार नेता राहुल गांधी के आधिपत्य से बाहर नहीं निकलेगी तब तक कुछ नहीं होगा। विपक्ष ने पहले बोलने के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए प्रधानमंत्री मोदी पर लगातार व्यक्तिगत हमले किए। व्यंग्य के आवेग में बहते हुए राहुल ने पीएम को रावण तक कह दिया। सरकार को मुद्दों पर घेरने की बजाय व्यक्तिगत आक्रमण से उन्होंने विपक्ष के हमले की धार भोथरी कर दी।

नेता प्रतिपक्ष अधिर रंजन चौधरी हर बार की तरह इस बार भी अतिरेक में आ गए और बीजेपी की रणनीति की चपेट में आ गए। विपक्ष में लगभग सभी वक्ता ज़रूरत से ज़्यादा आत्मविश्वासी थे इसलिए वो ख़ुद की नाव में हुए छेद को नहीं देख पाए। कहावत है की ख़ाली बर्तन और ढ़ोल ज़्यादा शोर करते हैं। विपक्ष के हमले में वही हुआ। सामान्य ज्ञान रखने वाला व्यक्ति यह जानता है की चिल्लाने से ज्यादा प्रभाव ठोस आधार पर रखी बात का होता है। लेकिन दुर्भाग्य से हर कोई चीखकर अपनी बात कर रहा था। सभी को पता था कि सरकार के पास पूर्ण बहुमत है।

इन्ही सारी बातों से साबित होता है की विपक्ष गंभीर नहीं था। शोर करने से सच बदलता तब क्या था। कांग्रेस के परमप्रिय नेता राहुल गांधी ने अपने आपको नेतृत्व के योग्य प्रदर्शित करने की बहुत कोशिश की। लेकिन हर बार की तरह अपने ही गोलबार में गोल कर गए। ऐसा लगा जैसे अविश्वास  सरकार के बजाए विपक्ष का एक दूसरे पर ज्यादा था और सभी अपनी एकजूटता टटोलने के लिए इकठ्ठे हुए थे।

बीजेपी के लिए यह अच्छा मौका था लेकिन विपक्ष की बी टीम के सामने उसने भी अपनी बी टीम को बोलने का मौका दिया। इसलिए आम लोग जो स्तरीय बहस सुनने की इच्छा रखते थे। वे निराश हुए। प्रधानमंत्री मोदीजी ने भी विपक्ष को पकाने के चक्कर में अपनी शैली बदली जो किसी भी स्तर पर अच्छी नहीं कही जा सकती है।

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