ब्लॉगः लोकतांत्रिक राष्ट्र के सामने चुनौतियां
By अश्वनी कुमार | Updated: March 11, 2023 15:28 IST2023-03-11T15:27:05+5:302023-03-11T15:28:25+5:30
लोकतंत्र, अंततोगत्वा किसी तानाशाह के बारे में नहीं है जो अपनी इच्छा को सब पर थोपे। यह बीच का रास्ता खोजने पर आधारित है और चरम सीमाओं की अस्वीकृति है।

ब्लॉगः लोकतांत्रिक राष्ट्र के सामने चुनौतियां
इस साल की शुरुआत में मनोरम गणतंत्र दिवस परेड ने देश की सॉफ्ट और हार्ड पॉवर को प्रदर्शित किया, जो दुनिया को वैश्विक स्तर पर अपने दमखम का संदेश देती है। बजट सत्र के दौरान संसद में अपने पारंपरिक संबोधन में राष्ट्रपति मुर्मु ने सरकार के महत्वाकांक्षी एजेंडे का खुलासा किया और निकट भविष्य में विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में शामिल होने की राष्ट्रीय आकांक्षा को साझा किया। लेकिन उपलब्धियों की इस प्रभावशाली कहानी की चमक भारत के लोकतंत्र में आती गिरावट की सच्चाई से फीकी पड़ गई है।
संविधान के अतिक्रमण के बारे में समय-समय पर आने वाली खबरें हमारे लोकतांत्रिक जुड़ाव की गुणवत्ता और गहराई पर सवाल उठाती हैं। हाल के दिनों में, विपक्षी नेताओं के संसदीय बयानों को रिकॉर्ड से हटाने, राज्यसभा में प्रधानमंत्री के भाषण में व्यवधान, सदन की रिकॉर्डिंग के लिए एक विपक्षी सांसद पर निलंबन की कार्रवाई ने संसद की संस्थागत पवित्रता को क्षति पहुंचाई है। शैक्षणिक संस्थानों में कथित तौर पर जातिगत भेदभाव से उपजे असहनीय तनाव के कारण देश के एक प्रतिष्ठित संस्थान में अठारह वर्षीय दलित छात्र की आत्महत्या और ग्यारहवीं कक्षा के एक सोलह वर्षीय दलित छात्र की उनके बोतल से पानी पी लेने के कारण उसके प्राचार्य द्वारा कथित पिटाई की घटनाएं हमारे ऐतिहासिक और सामाजिक भेदभाव का एक दर्दनाक उदाहरण हैं।
उत्तर प्रदेश में विपक्षी दल के एक मौजूदा विधायक को अदालत द्वारा पंद्रह साल पुराने ट्रैफिक अवरुद्ध करने के मामले में दो साल की जेल की सजा अपराध के अनुपात को देखते हुए बहुत ज्यादा है और इसके कारण राज्य विधानसभा के एक निर्वाचित सदस्य पर अपनी सदस्यता से भी वंचित होने की नौबत आ गई। यह अभियोजन पक्ष की दमनकारी वास्तविकता को दर्शाता है। जैसे-जैसे न्याय मिलने में देरी होती है, वैसे-वैसे करियर नष्ट होता जाता है, प्रतिष्ठा बर्बाद होती है और अपूरणीय अपमान से आत्मा पर ऐसा घाव हो जाता है जिसे भरा नहीं जा सकता। लेकिन कहीं भी लोकतांत्रिक गिरावट इतनी स्पष्ट नहीं है जितनी हमारे राजनीतिक विमर्श की गुणवत्ता में है। हाल ही में दिल्ली एयरपोर्ट पर कांग्रेस पार्टी के एक पदाधिकारी की गिरफ्तारी इसका उदाहरण है। राजनीतिक विरोधियों द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ दिए जाने वाले जहरीले भाषण लोकतंत्र की दुर्दशा को दिखाते हैं। हमारे समय की राजनीतिक भाषा व्यक्तिगत दुश्मनी और हमारी राजनीति की संकीर्णता को दर्शाती है तथा संविधान के गरिमा के वादे का उल्लंघन करती है।
हम जानते हैं कि भाषा, संस्कृति, कल्पना और इतिहास एक-दूसरे से निकटता से जुड़े हुए हैं। बोले गए शब्दों को तेज आवाज नहीं बल्कि गरिमा वजनदार बनाती है और नेताओं को लोगों के साथ जुड़ने में सक्षम बनाती है। हमारे सम्मानित संविधान निर्माताओं ने अपने उच्च आदर्शों को भावनाओं के साथ गद्य और पद्य में पिरोया है जो हमें हमारे व्यापक उद्देश्यों के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी भाषा दिल और दिमाग के बीच पुल का काम करती थी। वास्तव में, अन्याय और कुशासन की सबसे कड़ी आलोचनाएं देश के पुनरुद्धार के लिए उत्कट आशा की सर्वोत्तम अभिव्यक्तियां भी हैं। लोकतंत्र उदार विचारों के बीच बसता है और यह भाषा की गहराई और गरिमा में परिलक्षित होता है। यह संवेदनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं बल्कि उनका सम्मान करना है और यह स्वीकार करना है कि राजनीतिक विरोधी व्यक्तिगत दुश्मन नहीं हैं जिनका उपहास किया जाए और कुचल दिया जाए।
लोकतंत्र, अंततोगत्वा किसी तानाशाह के बारे में नहीं है जो अपनी इच्छा को सब पर थोपे। यह बीच का रास्ता खोजने पर आधारित है और चरम सीमाओं की अस्वीकृति है। इसमें अपने उद्देश्य को विचार-विमर्श से हासिल किया जाता है। नेताओं के बोले गए शब्द और भाषण लोकतंत्र की कसौटी होते हैं। हमारे सार्वजनिक दिग्गज अपने कथनों से पहचाने जाते हैं और उनके कथन हमें यह भी बताते हैं कि हम कौन हैं। जाहिर है, इसलिए, भारत के क्षीण लोकतंत्र को केवल एक उदात्त राजनीति के माध्यम से पुनर्जीवित किया जा सकता है। गणतंत्र का उत्सव तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक हमारी राजनीति संकीर्ण पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण तक सीमित रहती है और उन लोगों द्वारा संचालित होती है, व्यापक अन्याय पर जिनकी अनुमानित चिंता काफी हद तक संदिग्ध है, और जिन पर सत्ता हासिल करने का ही जुनून सवार रहता है। हमारे गणतंत्र की बुनियाद सत्तारूढ़ शासकों द्वारा शक्ति के न्यायोचित प्रयोग और सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ विपक्ष के निर्भीक प्रतिकार पर आधारित है। यह उन लोगों के लिए चुनौती है जो इस महत्वपूर्ण समय में गरिमामय ढंग से राष्ट्र के नेतृत्व की इच्छा रखते हैं।