ब्लॉग: गणतंत्र दिवस के बाद भी याद रखना होगा बालवीरों को
By आरके सिन्हा | Published: January 20, 2024 10:08 AM2024-01-20T10:08:00+5:302024-01-20T10:38:07+5:30
गणतंत्र दिवस परेड का 1959 से हिस्सा हैं बालवीर पुरस्कार विजेता। यह कुछ साल से खुली जीप में निकलने लगे हैं। हालांकि लंबे समय तक यह हाथियों पर सवार होते थे। पर मेनका गांधी के विरोध के बाद हाथियों पर बैठाने की परंपरा रुक गई।
हर साल जनवरी का महीना आते ही देश में गणतंत्र दिवस की तैयारियां अपने चरम पर पहुंच जाती हैं। राजधानी दिल्ली में तो गणतंत्र दिवस की तैयारियां बाकी जगहों से अधिक बड़े स्तर पर होती हैं क्योंकि राजधानी दिल्ली में ही गणतंत्र दिवस परेड निकलती है। उस परेड का हिस्सा वे बालवीर भी होते हैं, जिन्हें देश उनके साहस, सूझबूझ और शौर्य के लिए सम्मानित कर रहा होता है। वे जब राष्ट्रपति को सलामी देते हुए आगे बढ़ते हैं, तो कर्तव्यपथ (पहले राजपथ) में उपस्थित जनसमूह उनका हर्षध्वनि से स्वागत करता है।
गणतंत्र दिवस परेड का 1959 से हिस्सा हैं बालवीर पुरस्कार विजेता। यह कुछ साल से खुली जीप में निकलने लगे हैं। हालांकि लंबे समय तक यह हाथियों पर सवार होते थे। पर मेनका गांधी के विरोध के बाद हाथियों पर बैठाने की परंपरा रुक गई। गणतंत्र दिवस से कुछ दिन पहले तक तो यह बालवीर खबरों में रहते हैं। यह अपने इंटरव्यू देते हैं और फिर ओझल हो जाते हैं। कोशिश तो ऐसी होनी चाहिए कि जिन्हें बालवीर पुरस्कार मिला, उन्हें उनके राज्यों की सरकारें जीवन में आगे बढ़ने के हर संभव अवसर दें। ईमानदार कोशिश होनी चाहिए कि बालवीरों को बेहतर शिक्षा के अवसर मिलें। आमतौर पर इनका संबंध देश के सुदूर इलाकों में रहने वाले निर्धन परिवारों से होता है. इन्हें प्रोत्साहन की दरकार होती है।
अब तक विभिन्न राज्यों से करीब एक हजार से भी अधिक बच्चों को राष्ट्रीय बाल वीरता पुरस्कार प्रदान किया जा चुका है. वर्ष 2018 के बाद से भारत सरकार का बाल विकास मंत्रालय स्वयं इन बच्चों का चयन करता है। अब यह राष्ट्रीय पुरस्कार वीरता श्रेणी के अतिरिक्त खेल, मनोरंजन, विज्ञान अनुसंधान आदि अन्य अनेक श्रेणियों में भी बाल प्रतिभाओं को दिए जाने लगे हैं।
देश में कितने लोगों को याद है कि पहला बालवीर पुरस्कार हरीश मेहरा नाम के बालक को मिला था। अब हरीश मेहरा 80 साल के हो गए हैं। उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को एक बड़े हादसे का शिकार होने से बचाया था। सम्मान मिलने के बाद उन्हें किसी ने याद नहीं रखा. वे सारी उम्र एक सरकारी विभाग में क्लर्की करते रहे।
हरीश मेहरा के बाद राजधानी के दीन दयाल उपाध्याय मार्ग( राउज एवेन्यू) पर स्थित सर्वोदय स्कूल के सातवीं कक्षा के छात्र फकीरचंद गुप्ता को भी बालवीर पुरस्कार मिला। उनकी सूझबूझ के चलते एक बड़ा रेल हादसा टला था। उन्हें भी राष्ट्रीय बाल वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया. पर उनके बारे में किसी को कोई खबर नहीं है। मेहरा और फकीरचंद के मामले तो पुराने हो गए, संबंधित विभागों के पास कुछ दशक पहले जिन्हें बालवीर पुरस्कार मिले हैं, उनके संबंध में भी कोई जानकारी नहीं है।