ब्लॉग: ‘मोहन से महात्मा’ की यात्रा में ‘बा’ की थी महत्वपूर्ण भूमिका

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: February 22, 2024 11:04 AM2024-02-22T11:04:01+5:302024-02-22T11:10:09+5:30

महात्मा गांधी को 'बापू’ के रूप में लोकप्रिय बनाने के पीछे उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी का बहुत बड़ा योगदान था।

Blog: 'Ba' played an important role in the journey from 'Mohan to Mahatma' | ब्लॉग: ‘मोहन से महात्मा’ की यात्रा में ‘बा’ की थी महत्वपूर्ण भूमिका

फाइल फोटो

Highlights'बापू’ को लोकप्रिय बनाने के पीछे उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी का बहुत बड़ा योगदान थामात्र 13 वर्ष की आयु में कस्तूरबा का विवाह मोहनदास से हुआ था, वो बापू से आयु में छह माह बड़ी थींगांधीजी को इंग्लैंड जाने के लिए कस्तूरबा ने अपने गहने तक बेच दिये थे

2 अक्तूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में जन्मे मोहनदास करमचंद गांधी को दुनिया भर में ‘महात्मा गांधी’ एवं संपूर्ण भारत में ‘राष्ट्रपिता’ और ‘बापू’ के रूप में लोकप्रिय बनाने के पीछे उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी, जो बाद में ‘बा’ के रूप में जगत प्रसिद्ध हुईं, का बड़ा योगदान था।

कस्तूरबा गांधी का जन्म 11 अप्रैल 1869 में हुआ। वे गुजरात के काठियावाड़ की रहने वाली थीं। उनके पिता व्यापारी थे। बा और गांधीजी के पिता की आपस में गहरी मित्रता थी। बा जब सात वर्ष की थीं, तभी उनकी गांधीजी से सगाई कर दी गई और मात्र 13 वर्ष की आयु में उनका विवाह कर दिया गया था। गांधीजी आयु में बा से छह माह छोटे थे।

बा ने कभी भी गांधीजी से यह नहीं कहा कि वे एक पति एवं पिता के कर्तव्यों को पूरा करें, क्योंकि उन्हें मालूम था कि गांधीजी देश सेवा में जुटे हुए हैं। ऐसे में उन्हें पारिवारिक जिम्मेदारियों में उलझाना उचित नहीं होगा। जाहिर है कि बा का वैवाहिक जीवन हमेशा ही कठिन संघर्षों से भरा रहा। उनके चार बच्चे हुए- हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास गांधी।

विवाह के बाद कस्तूरबा की पढ़ाई-लिखाई बंद हो गई। वह दोबारा कभी स्कूल नहीं जा सकीं। हालांकि ऐसा कहा जाता है कि विदेश जाने से पहले तक गांधीजी घर पर ही पत्नी कस्तूरबा को पढ़ाया करते थे। जब वकालत की पढ़ाई के लिए गांधीजी को इंग्लैंड जाना था और रुपयों की व्यवस्था नहीं हो पा रही थी, तब बा ने पति की विदेश यात्रा में विघ्न न पड़े इसलिए अपने गहने तक देकर रुपए जुटाए थे।

भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान 9 अगस्त 1942 को गांधीजी के गिरफ्तार हो जाने पर बा ने शिवाजी पार्क मुंबई में, जहां गांधीजी स्वयं भाषण देने वाले थे, सभा को संबोधित करने का निश्चय किया, किंतु पार्क के द्वार पर पहुंचते ही वे गिरफ्तार कर ली गईं। दो दिन बाद उन्हें पुणे के आगा खां महल, जहां गांधीजी पहले से ही कैद में रखे गए थे, भेज दिया गया। उस समय बा अस्वस्थ थीं।

15 अगस्त 1942 को जब अचानक स्वतंत्रता सेनानी महादेव देसाई ने महाप्रयाण किया तब बा कह उठीं- ‘महादेव क्यों गया, मैं क्यों नहीं।’ बाद में महादेव देसाई का चिता-स्थल बा के लिए महादेव का मंदिर-सा बन गया था। वह प्रतिदिन वहां जातीं, दीप जलवातीं और समाधि की प्रदक्षिणा कर उसे प्रणाम करतीं।

दुर्भाग्य से गिरफ्तारी के वक्त बा का जो स्वास्थ्य बिगड़ा था, वह फिर कभी पूरी तरह से नहीं सुधरा और अंततः 22 फरवरी 1944 को उन्होंने अपना प्राण त्याग दिया। उनकी मृत्यु के उपरांत राष्ट्र ने ‘महिला कल्याण’ के निमित्त एक करोड़ रुपए एकत्र कर इंदौर में ‘कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट’ की स्थापना की।

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