Assembly elections 2023: तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद सीएम के नामों की घोषणा में बीजेपी ने अपनी चौंकाने वाली परिपाटी को अंजाम दिया, भाजपा ने चौंकाया तो महाराष्ट्र में भी था!

By Amitabh Shrivastava | Published: December 16, 2023 05:06 PM2023-12-16T17:06:27+5:302023-12-16T17:07:48+5:30

Assembly elections 2023: अतीत में देखा जाए तो महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री का नाम भी अचानक ही सामने आया था और वह भी दूसरे दल तथा कम विधायकों के नेता होने के बावजूद उसे अधिक महत्व दिया गया.

bjp pm narendra modi jp nadda amit shah assembly elections 3 states, BJP followed its shocking tradition of announcing names of CMs, even in Maharashtra  | Assembly elections 2023: तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद सीएम के नामों की घोषणा में बीजेपी ने अपनी चौंकाने वाली परिपाटी को अंजाम दिया, भाजपा ने चौंकाया तो महाराष्ट्र में भी था!

file photo

Highlights जनआकांक्षाएं व्यक्ति से अधिक काम को महत्व देती हैं.महाराष्ट्र में पिछले साल शिवसेना के टूटे हुए गुट पर भाजपा ने अपना पासा फेंका और सरकार बनाई. पूर्व मुख्यमंत्री को उपमुख्यमंत्री के पद पर आसीन किया.

Assembly elections 2023: तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री के नामों की घोषणा में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी चौंकाने वाली परिपाटी को अंजाम दिया. हालांकि तीन राज्यों में बहुमत की सरकार का गठन होने जा रहा था, फिर भी किसी एक नाम को लेकर कयास लगाना गलत साबित हुआ और नया नाम ही सामने आया.

यदि अतीत में देखा जाए तो महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री का नाम भी अचानक ही सामने आया था और वह भी दूसरे दल तथा कम विधायकों के नेता होने के बावजूद उसे अधिक महत्व दिया गया. संभव है कि हर घोषणा के पीछे कोई राजनीति अवश्य रही है, लेकिन जनआकांक्षाएं व्यक्ति से अधिक काम को महत्व देती हैं.

भाजपा के विधानसभा चुनाव इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो कभी हिमाचल प्रदेश में चुनाव जीतने में निवर्तमान मुख्यमंत्री की पराजय हो जाती है. उन्हें एक और अवसर नहीं दिया जाता है. कभी उत्तरांचल में मुख्यमंत्री के चुनाव हारने के बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर उपचुनाव से दोबारा निर्वाचित किया जाता है.

इसी प्रकार छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में एक ही व्यक्ति को बार-बार मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया जाता है, तो गुजरात में कई मुख्यमंत्री बदल दिए जाते हैं और कोई मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं रहता है. स्पष्ट है कि भाजपा अपनी जरूरत के अनुसार अलग-अलग चेहरों पर दांव लगाती है. साथ ही उनसे परिणाम भी लेती है. गुजरात, उत्तर प्रदेश, असम और उत्तराखंड इस बात के उदाहरण हैं.

महाराष्ट्र में पिछले साल शिवसेना के टूटे हुए गुट पर भाजपा ने अपना पासा फेंका और सरकार बनाई. यहां तक कि अपनी पार्टी के पूर्व मुख्यमंत्री को उपमुख्यमंत्री के पद पर आसीन किया. अवश्य ही इसके पीछे पार्टी की अपनी रणनीति और सरकार चलाने का तरीका कहा जा सकता है.

मगर जनसरोकार के आगे यह अखबारों की चंद सुर्खियों से अधिक नहीं हो सकता है, क्योंकि इसके आगे अपेक्षाओं का लंबा सिलसिला होता है. करीब डेढ़ साल पहले जब शिंदे सरकार का गठन हुआ तो कोरोना महामारी के संकट से निकलकर राज्य को वापस अपनी ऊंचाई पर लाना था. उद्योग, व्यापार से लेकर रोजगार तक सभी को पटरी पर लाना था.

किंतु बीते दिनों में आंदोलनों की बढ़ती सूची और निवेश के कागजी आंकड़ों से अलग कुछ दिखाई नहीं दे रहा है. दावे के लिए समृद्धि महामार्ग जैसी पिछली सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाएं पूरी होने जा रही हैं. मुंबई की भी कुछ अधूरी परियोजनाओं को गति मिल चुकी है. पुणे और मुंबई मेट्रो का काम गति पकड़ चुका है.

बावजूद इसके किसान से लेकर अलग-अलग समाज के आरक्षण के लिए आंदोलन कहीं न कहीं समाज में असंतोष की ओर इशारा कर रहे हैं. वर्ना इतनी बड़ी संख्या में देर-सबेर होते आंदोलनों में भीड़ नहीं जुटती. यदि रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं तो समाज का बड़ा वर्ग सड़कों पर नहीं उतरता है.

दुर्भाग्य से समाज के अनेक बड़े तबके अपनी मांगों के लिए सड़क पर हैं. जिनका सीधा संबंध शिक्षा और रोजगार से है. ‘थ्री ट्रिलियन’ अर्थव्यवस्था का सपना देख रहा राज्य हमेशा ही निवेश की उर्वरक भूमि के रूप में पहचाना गया है. निजी क्षेत्र की अच्छी उपस्थिति के कारण अनेक औद्योगिक क्षेत्रों के आस-पास रहने वालों को उनकी क्षमता के अनुसार रोजगार मिले हैं.

या फिर उद्योगों के सहारे अपना कारोबार चलाने के लिए बल मिला है. किंतु बीते कई सालों से स्वरोजगार की मुश्किलों के चलते रोजगार के अवसरों की तलाश जोरों पर चल रही है. युवा वर्ग बेरोजगारी के संकट से बाहर आना चाहता है. उसे मौके नहीं मिल पा रहे हैं. जिसका कारण औद्योगिक क्षेत्र का समुचित विस्तार नहीं हो पाना है.

राज्य के अनेक भागों में औद्योगिक क्षेत्र के लिए जमीनों का अधिग्रहण किया गया है. किंतु उनमें उद्योग नहीं आ रहे हैं. कृषि क्षेत्र के लिए पूरक उद्योग स्थापित नहीं हो रहे हैं. खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के नाम पर अनेक स्थानों पर जमीनें आवंटित की गई हैं, लेकिन वहां कोई बड़ा उद्योग स्थापित नहीं हो रहा है.

छत्रपति संभाजीनगर, जालना, नांदेड़, धाराशिव, अकोला, अमरावती, चंद्रपुर, धुलिया, जलगांव, सोलापुर जैसे अनेक इलाके हैं, जहां अभी-भी एक बड़ी औद्योगिक परियोजना का इंतजार है. मुंबई, पुणे के क्षेत्र भरने के बावजूद अन्य इलाकों की ओर उद्यमियों के रुचि नहीं दिखाने के कारण और उसका समाधान नहीं ढूंढ़ा जा रहा है.

कृषि क्षेत्र में आसमानी संकट से अधिक उपज का सही दाम नहीं मिलने का है. आयात-निर्यात की के झंझटों के बीच किसान को उसकी नियमित आय के लिए ठोस उपाय नहीं मिल पा रहा है. अनेक इलाकों में विकास के नाम पर अधिग्रहीत की जा रही कृषि भूमि से प्रभावित किसानों को मुआवजा तो मिल रहा है, लेकिन उनके भविष्य को नई दिशा देने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं.

साफ है कि लगातार बढ़ती अपेक्षाओं के आगे सरकार बौनी साबित हो रही है. दरअसल राजनीति के लिए अनेक पैंतरों को अपनाने की जरूरत सामान्य होती है. जिससे कुछ समय के लिए समाज का एक वर्ग संतुष्ट हो भी जाता है. मगर जब बात रोजी-रोटी के संघर्ष की आती है तो जमीन पर समस्याओं का निराकरण करना आवश्यक हो जाता है.

महाराष्ट्र ने बीते दो दशक में राजनीतिक उठापटक काफी देखी है, लेकिन उसके अपेक्षित परिणाम सरकारें नहीं दे पा रही हैं. सत्ता की बागडोर को संभालने के बाद ठोस परिवर्तन दिखना आवश्यक होता है.
मगर अनेक दावों के बावजूद सरकार बदलाव को प्रत्यक्ष रूप में सिद्ध नहीं कर पा रही है.

समुद्र तट पर छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा, डॉ बाबासाहब आंबेडकर का स्मारक, छत्रपति संभाजीनगर, धाराशिव जैसे शहरों के नाम जनभावनाओं का सम्मान तो हो सकते हैं, लेकिन उनसे जनआकांक्षाओं और जनसमस्याओं को किनारे नहीं किया जा सकता है. ऐसे में चौंकाने वाले चेहरों के नाम पर चर्चाएं तो बहुत हो सकती हैं, किंतु उनसे अपेक्षाएं पूरी होने की गारंटी भी मिलनी चाहिए.

जैसी चुनाव के पहले देने का चलन आरंभ हुआ है. वर्तमान में महाराष्ट्र में अनेक समस्याएं और चिंताएं मुंह खोल कर खड़ी हैं. उनका समाधान आम जनता चाहती है. आंदोलन और विरोध जन आक्रोश के प्रतीक हैं. उनसे स्पष्ट संदेश लेने की आवश्यकता है. नए चेहरे के बाद नए लक्ष्यों को हासिल करने की भी आवश्यकता है. तभी नई पहचान सरकार के कामों की पहचान बन सकती है.

Web Title: bjp pm narendra modi jp nadda amit shah assembly elections 3 states, BJP followed its shocking tradition of announcing names of CMs, even in Maharashtra 

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे