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अपनी महिला नेताओं से असहज होती भाजपा?

By हरीश गुप्ता | Updated: October 3, 2024 05:16 IST

BJP Kangana Ranaut: दावा किया कि 2020 में किसानों का विरोध प्रदर्शन भारत में ‘बांग्लादेश जैसी स्थिति’ पैदा करने की तैयारी थी और विरोध स्थलों से हत्या और बलात्कार की कई खबरें आईं.

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ठळक मुद्देहरियाणा भाजपा में इस पर काफी हंगामा हुआ जो पहले से ही बैकफुट पर है.अपना बयान वापस लेने का भी निर्देश दिया गया.किसी न किसी मुद्दे पर अपनी बात कहती रहती हैं.

BJP Kangana Ranaut: बॉलीवुड अभिनेत्री और पहली बार लोकसभा सांसद बनीं कंगना रणावत भाजपा की पहली ऐसी महिला नेता नहीं हैं जिन्होंने अपनी पार्टी को शर्मिंदा किया है. वह पहले भी कई मौकों पर ऐसा कर चुकी हैं क्योंकि वह बेबाकी से अपनी बात कहने के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने हाल ही में दावा किया कि 2020 में किसानों का विरोध प्रदर्शन भारत में ‘बांग्लादेश जैसी स्थिति’ पैदा करने की तैयारी थी और विरोध स्थलों से हत्या और बलात्कार की कई खबरें आईं. हरियाणा भाजपा में इस पर काफी हंगामा हुआ जो पहले से ही बैकफुट पर है और उसने रणावत की टिप्पणी से खुद को अलग कर लिया है. मानो इतना ही काफी नहीं था, उन्हें अपना बयान वापस लेने का भी निर्देश दिया गया.

भाजपा में शामिल होने से पहले ही वह विपक्षी नेताओं और पार्टियों के खिलाफ खराब टिप्पणी करने के लिए सुर्खियों में रही थीं. इन्हीं खूबियों की वजह से भाजपा नेतृत्व ने उन्हें लोकसभा का टिकट दिया और वह जीत गईं. लेकिन अब भाजपा को यह बेहद शर्मनाक लग रहा है क्योंकि वह किसी न किसी मुद्दे पर अपनी बात कहती रहती हैं.

लेकिन यह पहली बार है जब उन्हें अपनी टिप्पणी वापस लेने पर मजबूर होना पड़ा है. हालांकि कंगना पहली भाजपा महिला नेता नहीं हैं जिन्होंने भाजपा को शर्मिंदा किया है. दिवंगत सुषमा स्वराज को छोड़कर पार्टी में ऐसी महिला नेताओं की लंबी सूची है. तेजतर्रार हिंदू आइकन प्रज्ञा ठाकुर को मध्य प्रदेश से बड़े जोर-शोर से लोकसभा में लाया गया.

अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान वह किसी न किसी विवाद में फंसती रहीं. भाजपा की उमा भारती और कुछ हद तक स्मृति ईरानी के साथ भी असहजता रही. राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया का पार्टी आलाकमान से टकराव अभी भी जारी है. महाराष्ट्र की पंकजा मुंडे को लेकर भी भाजपा असहज रही थी, हालांकि अब सब ठीक है.

भाजपा के नए सितारे मनोज सिन्हा

जम्मू-कश्मीर में लगभग हिंसामुक्त चुनाव संपन्न होने के बाद मोदी सरकार उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से बेहद खुश है. अपने पूर्ववर्तियों की विफलता के बाद वे ही इस पद पर बने हुए हैं; चाहे वह सत्यपाल मलिक हों या जी.सी. मुर्मु, जो किसी न किसी विवाद में फंसे रहे. इससे पहले, मोदी सरकार ने 2014 से अगस्त 2018 तक एन.एन. वोहरा को राज्यपाल के रूप में बनाए रखा था.

जिन्हें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नियुक्त किया था. वोहरा ने 10 साल से ज्यादा समय तक राज्य की सेवा की. लेकिन यह मनोज सिन्हा ही थे जिन्होंने मोदी की इच्छा के मुताबिक काम किया. मलिक को गोवा और फिर मेघालय भेजे जाने के बाद मोदी से उनकी अनबन हो गई थी, जबकि जी.सी. मुर्मु को सीएजी के रूप में दिल्ली लाया गया था.

मनोज सिन्हा 2017 में मुख्यमंत्री पद की दौड़ से चूक गए थे और 2019 में लोकसभा चुनाव भी हार गए थे. मोदी ने उन्हें जम्मू-कश्मीर का उपराज्यपाल बनाया, जहां उन्होंने एक कुशल प्रशासक और चतुर राजनेता के रूप में अपनी योग्यता साबित की. अगर घाटी में भाजपा अलग-अलग समूहों और निर्दलीयों की मदद से सरकार बनाने में सफल हो जाती है तो सिन्हा का ग्राफ और ऊपर जाएगा.

ऐसी खबरें हैं कि राज्य में नई सरकार के स्थिर होने के बाद उन्हें पर्याप्त रूप से पुरस्कृत किया जाएगा. सिन्हा की आरएसएस में मजबूत जड़ें हैं और वे मोदी और अमित शाह के बेहद करीबी हैं. कई लोग कहते हैं कि वे भाजपा अध्यक्ष पद के लिए सबसे बेहतर उम्मीदवार हो सकते हैं. हालांकि यह एक लंबी दौड़ होगी.

सहयोगी दलों की राह पर कांग्रेस

ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के अन्य मुख्यमंत्रियों की राह पर चलने का फैसला किया है, जिन्होंने एजेंसियों द्वारा दर्ज किए गए भ्रष्टाचार के मामले या यहां तक कि अदालत के आदेश के आधार पर भी इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था. हालांकि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ईडी द्वारा हिरासत में लिए जाने के बाद इस्तीफा दे दिया था.

लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने रुख पर अड़े रहे और जेल में रहते हुए लगभग छह महीने तक पद पर बने रहे. यह देखते हुए कि विभिन्न उच्च न्यायालयों और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी एजेंसियों पर आरोपपत्र दाखिल किए बिना या मुकदमे में तेजी लाए बिना लोगों को गिरफ्तार करने और उन्हें जेल में रखने के लिए कड़ी फटकार लगाई, कांग्रेस ने भी उसी राह पर चलने का फैसला किया है.

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) घोटाले में हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील दायर नहीं की है और न ही इस्तीफा दिया है. ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने भाजपा से सीख ली है, यहां तक कि कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा सिद्धारमैया की याचिका को खारिज किए जाने के बाद भी, जिसमें उनकी पत्नी को भूमि के ‘अवैध’ आवंटन की जांच के लिए राज्यपाल की मंजूरी को चुनौती दी गई थी. हालांकि विपक्ष उनके इस्तीफे के लिए दबाव बना रहा है, लेकिन कांग्रेस आरोपपत्र दाखिल होने तक सिद्धारमैया के साथ खड़ी नजर आ रही है.

तीसरा बौद्धिक मंच उभरा

विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन (वीआईएफ) और इंडिया फाउंडेशन की जबरदस्त सफलता के बाद, लुटियंस दिल्ली में एक तीसरा ऐसा संगठन भी उभरकर सामने आ रहा है. वीआईएफ की स्थापना अजित डोभाल ने की थी, जो बाद में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बन गए. वीआईएफ से जुड़े सभी लोगों ने, 2009 में जिस उद्देश्य से इसे बनाया गया था.

उसमें बहुत बड़ा योगदान दिया है और इसके कई प्रमुख लोग मोदी सरकार में अहम भूमिका निभा रहे हैं. फिर राम माधव के नेतृत्व वाला इंडिया फाउंडेशन आया जो सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय मामलों से जुड़े कई क्षेत्रों में काम कर रहा है. राम माधव कभी मोदी के करीबी थे और बाद में उन्हें वापस आरएसएस में भेज दिया गया और अब वे मोदी के खास आदमी के तौर पर जम्मू-कश्मीर में फिर से सक्रिय हैं.

2024 आते-आते वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल फोरम (डब्ल्यूआईएफ) के नाम से एक नया फाउंडेशन सामने आया. इसके मुखिया आरएसएस के वरिष्ठ नेता राम लाल हैं जो कई वर्षों तक भाजपा के महासचिव (संगठन) रहे. उनकी जगह बीएल संतोष ने ले ली. डब्ल्यूआईएफ के पीछे राम लाल ही मुख्य व्यक्ति हैं. दुनिया भर से विचारक, बुद्धिजीवी और कार्यकर्ता चुपचाप इसकी प्रमुख बैठक में भाग लेने के लिए दिल्ली आए. राम लाल का आरएसएस और भाजपा में बहुत सम्मान है और वे कार्यकर्ताओं के बीच लोकप्रिय हैं.

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