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धारा 370 को लेकर जब भीमराव आंबेडकर ने शेख अब्दुल्लाह को दिखाया था आईना

By विकास कुमार | Updated: March 4, 2019 16:35 IST

यूनियन ऑफ़ इंडिया बनाने के लिए धारा 370 उस समय की जरूरत थी तो फिर आज की स्थिति क्या है? जब आर्टिकल 3 के तहत कश्मीर को भारत का इंटीग्रल पार्ट मान लिया गया था तो फिर कश्मीर का संविधान बनाने वाले संविधान सभा को इस पर कुछ बोलना चाहिए था लेकिन उनलोगों ने जानबूझकर चुप्पी साध ली थी.

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गोपाल स्वामी अयंगर जब धारा 370 का मसौदा लेकर भीमराव आंबेडकर के पास गए थे तो बाबासाहेब ने इसे सिरे से खारिज कर दिया था और उस सत्र का भी वहिष्कार किया था जिसमें धारा 370 को संविधान के तहत मान्यता दी गई. उन्होंने इसको देश के साथ द्रोह की संज्ञा दी थी. जबकि वो ड्राफ्टिंग समिति के चेयरमैन थे. शेख अब्दुल्लाह के नाम लिखी गई चिट्ठी में उन्होंने कहा था कि आप ये चाहते हैं कि कश्मीर में भारत सरकार सड़क निर्माण करे, अनाज भी उपलब्ध कराये और कश्मीर को बराबरी का दर्जा भी दिया जाए लेकिन कश्मीर को लेकर भारत सरकार के पास सीमित अधिकार हो, यह प्रस्ताव भारत के हितों के खिलाफ है और कानून मंत्री रहते मैं इसे कभी स्वीकार नहीं करूंगा. 

गोपाल स्वामी अयंगर मद्रास प्रेसीडेंसी के प्रतिनिधि थे और उनके मुताबिक धारा 370  अंतरिम सरकार के लागू होने तक एक टेम्पररी प्रबंधन था जो स्थायी सरकार के आने के बाद स्वतः खत्म हो जाना चाहिए था. 

धारा 370 को संविधान के चैप्टर 21 में रखा गया था. अक्सर ये तर्क दिया जाता है कि धारा 370 को हटाने के लिए राज्य सरकार की सहमती लेनी होगी, दरअसल सहमती उस सरकार से लेनी थी जो अंतरिम सरकार संविधान सभा के बनने से पहले कश्मीर में थी. लेकिन पिछले कई दशकों से कश्मीर में स्थायी सरकार है. इसलिए इस तरह का कोई भी कानूनी प्रावधान नहीं है. कश्मीर में अंतरिम सरकार के प्रमुख शेख अब्दुल्लाह थे.

पंडित नेहरू ने संसद को किया बाईपास 

संविधान सभा के भंग होने के साथ ही यह कानून स्वतः खत्म हो जानी चाहिए थी. इसको बाद में प्रेसिडेंसियल आर्डर से चलाया गया. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू पर यह आरोप लगते हैं कि उन्होंने संसद को बाईपास करने के बाद राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश लाकर इस कानून को जारी रखा क्योंकि नेहरू कश्मीर से इस कानून को खत्म नहीं करना चाहते थे. देश के संविधान में धारा 1 में जम्मू कश्मीर भारत का इंटीग्रल पार्ट है और जम्मू और कश्मीर के संविधान के धारा 3 के मुताबिक कश्मीर देश का अभिन्न हिस्सा है. 

धारा 370 ने कश्मीर का कभी भी भारत में मानसिक रूप से विलय नहीं होने दिया. और आज धारा 370 और अनुच्छेद 35 a से अलगाववाद पैदा हो रहा है और फिर यहां से आतंकवाद और कट्टर इस्लाम का प्रोजेक्ट कश्मीर वैली में लांच करने की तैयारी की जा रही है.

धारा 370 है अलगाववाद की जड़ 

धारा 370 ही वो जड़ है जो कश्मीर के लोगों को भारत से दूर करती है. सुप्रीम कोर्ट का आदेश जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होता और संसद कश्मीर को लेकर कानून बना नहीं सकती है. (रक्षा, विदेश और संचार को छोड़कर) जब जम्मू कश्मीर का संविधान बनाने के लिए संविधान सभा बनायी गई तो ऐसा माना गया गया था कि वो धारा 370 पर अपनी राय देगी. 1956 में कश्मीर में संविधान लागू हो गई लेकिन वहां की संविधान सभा ने आर्टिकल 370 को खत्म करने के लिए कोई रिकमेन्डेशन नहीं दिया इसलिए ये संविधान में चलता रहा क्योंकि किसी और को कोई अधिकार नहीं था.

बाद में जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट द्वारा इस पर एक फैसला आया कि अब ये इतने समय से चला आ रहा है इसलिए यह स्थायी हो गया है. बाद में सुप्रीम कोर्ट के तरफ से भी इसी तरह का ऑब्जरवेशन आया. लेकिन कोई भी चीज समय बीतने के साथ गैर कानूनी से कानूनी नहीं हो जाती और संवैधानिक नहीं हो जाएगी.  इस पर प्रोग्रेसिव व्याख्या की जरूरत है. यूनियन ऑफ़ इंडिया बनाने के लिए धारा 370 उस समय की जरूरत थी तो फिर आज की स्थिति क्या है? जब आर्टिकल 3 के तहत कश्मीर को भारत का इंटीग्रल पार्ट मान लिया गया था तो फिर कश्मीर का संविधान बनाने वाले संविधान सभा को इस पर कुछ बोलना चाहिए था लेकिन उनलोगों ने जानबूझकर चुप्पी साध ली थी.

इसके हटने से अलगाव की मानसिकता खत्म होगी. हम भारत में एक विशेष दर्जा पाए लोग हैं और ऐसा इसलिए है कि क्योंकि हम भारतीय नहीं है. यह मानसिकता ही कश्मीर समस्या का जड़ है. अलगाववाद से धार्मिक जिहाद को जोड़ दिया गया है जिसका फायदा पाकिस्तान उठा रहा है.

संसद और संविधान से मुक्ति 

धारा 370 संसद के हांथ बांधता है कश्मीर के मुद्दे को लेकर. प्रिवेंशन ऑफ़ मिसयूज ऑफ़ प्लेसेज ऑफ़ वरशिप एक्ट, जिसके तहत धार्मिक स्थलों से राजनीतिक आह्वान और शस्त्र संचय नहीं किया जा सकता. 1988 में भारत सरकार द्वारा लाया गया यह कानून कश्मीर में लागू नहीं हुआ क्योंकि स्पेशल अधिकारों के कारण कश्मीर को इसमें छूट मिल गई.  बाद के वर्षों में कश्मीर के मस्जिदों से सेना और कश्मीरी पंडितों के खिलाफ जहर उगला गया.

'कश्मीरी पंडितों अपने औरतों को पीछे छोड़कर कश्मीर से दफा हो जाओ'. इस तरह के नारे कश्मीर में उन दिनों आम हो चले थे. और यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है. जुमे की नमाज के बाद एक हांथ में पाकिस्तान का झंडा और दूसरे हांथ में आईएसआईएस का झंडा लेकर सड़कों पर निकलने वाले कश्मीरी नौजवान घाटी में हिजबुल मुजाहिद्दीन और जैश-ए-मोहम्मद के प्रोजेक्ट 'गजवा-ए-हिन्द' को पूरा करने का प्रयास आज भी कर रहे हैं.  

धारा 370 के कारण कश्मीर के लोगों को भारतीय संसद से मुक्ति मिली और बाद में आर्टिकल 35 a के तहत उन्हें संविधान से भी छूट मिल गयी. भारत के नागरिक होने का आभास ऐसे किसी भी भी व्यक्ति को कैसे हो सकता है जो संसद और संविधान के दायरे में आता ही नहीं हो. जम्मू कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा बनाने के लिए धारा 370 और आर्टिकल 35a पर गंभीरता से विचार होना जरूरी है और ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का रूख आने वाले दिनों में महत्त्वपूर्ण साबित होने वाला है. 

टॅग्स :आर्टिकल 35A (अनुच्छेद 35A)बी आर अंबेडकरकश्मीरी पंडितजवाहरलाल नेहरू
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