भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: गहराती मंदी से निपटने के खोजने होंगे रास्ते

By भरत झुनझुनवाला | Published: August 25, 2019 07:08 AM2019-08-25T07:08:17+5:302019-08-25T07:08:17+5:30

भारत का वित्तीय घाटा नियंत्नण में रहेगा तो विदेशी निवेशकों को हमारी अर्थव्यवस्था पर भरोसा बनेगा, वे हमारे देश में उसी प्रकार निवेश करेंगे जिस प्रकार उन्होंने 80 और 90 के दशक में चीन में किया था, भारत में मैन्युफैक्चरिंग बढ़ेगी, रोजगार बढ़ेंगे, हमारे निर्यात बढ़ेंगे और हम उसी प्रकार आर्थिक विकास को हासिल कर सकेंगे जैसा चीन ने किया था.

Bharat Jhunjhunwala's blog: ways to find ways to deal with the deepening recession | भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: गहराती मंदी से निपटने के खोजने होंगे रास्ते

भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: गहराती मंदी से निपटने के खोजने होंगे रास्ते

 एनडीए सरकार ने राजमार्ग बनाने, बिजली की परिस्थिति सुधारने और सुशासन स्थापित करने में विशेष उपलब्धियां हासिल की हैं. लेकिन इसके बावजूद देश में मंदी गहराती जा रही है. मंदी के गहराने का पहला कारण यह है कि सरकार ने वित्तीय घाटे पर नियंत्नण करने की पूर्व की नीति को जारी रखा है.

इस नीति का मूल आधार यह है कि यदि भारत का वित्तीय घाटा नियंत्नण में रहेगा तो विदेशी निवेशकों को हमारी अर्थव्यवस्था पर भरोसा बनेगा, वे हमारे देश में उसी प्रकार निवेश करेंगे जिस प्रकार उन्होंने 80 और 90 के दशक में चीन में किया था, भारत में मैन्युफैक्चरिंग बढ़ेगी, रोजगार बढ़ेंगे, हमारे निर्यात बढ़ेंगे और हम उसी प्रकार आर्थिक विकास को हासिल कर सकेंगे जैसा चीन ने किया था.

इस मंत्न में समस्या यह है कि चीन ने 80 और 90 के दशक में जब इस मंत्न को लागू किया था उस समय वैश्विक अर्थव्यवस्था की परिस्थिति बिल्कुल भिन्न थी और आज बिल्कुल भिन्न है. विशेष अंतर यह आया है कि रोबोट के उपयोग से आज संभव हो गया है कि जिस फैक्टरी में पूर्व में 500 कर्मचारी काम करते रहे हों उसी फैक्टरी को आज आप 10 या 20 कर्मचारी से संचालित कर सकते हैं. मैन्युफैक्चरिंग का मूल कार्य जैसे कच्चे माल को मशीन में डालना, बने हुए माल को पैक करना इत्यादि रोबोट से किए जा सकते हैं. रोबोट से मैन्युफैक्चरिंग करने का सीधा प्रभाव यह पड़ा कि चीन और भारत के सस्ते श्रम का जो लाभ था वह छूमंतर हो गया. इसलिए बहुराष्ट्रीय कंपनियां आज भारत जैसे विकासशील देशों में फैक्टरी लगाने को उत्सुक नहीं हैं. अत: हमारे द्वारा वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने से विदेशी निवेश नहीं आ रहा है और यह रणनीति फेल हो रही है. 

मंदी तोड़ने के लिए सरकार को वित्तीय घाटे पर नियंत्नण की नीति पर पुनर्विचार करना होगा. वित्तीय घाटे को बढ़ने देना चाहिए लेकिन लिए गए ऋण का उपयोग निवेश के लिए करना चाहिए न कि सरकारी खपत को पोषित करने के लिए. सरकार यदि निवेश करेगी तो सीमेंट और स्टील की मांग उत्पन्न होगी, घरेलू निवेशक सीमेंट और स्टील की फैक्टरी लगाने में निवेश करेंगे और बिना विदेशी निवेश के हम आर्थिक विकास को हासिल कर सकेंगे. 

वर्तमान मंदी को तोड़ने का दूसरा उपाय सेवा क्षेत्न पर ध्यान देने का है.   सेवाओं का निर्यात बढ़ रहा है और आगे भी बढ़ सकता है. जैसे छात्नों को ऑनलाइन शिक्षा देना, एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद करना अथवा हमारे शिक्षकों का निर्यात करके अफ्रीका के कॉलेजों में उनकी नियुक्ति कराना. इस प्रकार के कार्यो में निरंतर वृद्धि होने की संभावना है. यहां समस्या यह है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में सुधार नहीं किया जा रहा है. सरकार ने सुशासन स्थापित करने का प्रयास जरूर किया है लेकिन सरकारी यूनिवर्सिटियों और शोध संस्थाओं में नौकरशाही का आज भी बोलबाला है.

Web Title: Bharat Jhunjhunwala's blog: ways to find ways to deal with the deepening recession

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