भरत झुनझुनवाला का ब्लाॉगः पाकिस्तान के साथ हुए सिंधु जल समझौते को रद्द करना ही बेहतर
By भरत झुनझुनवाला | Published: June 9, 2019 05:14 AM2019-06-09T05:14:53+5:302019-06-09T05:14:53+5:30
हमारी आर्थिक मोर्चेबंदी सफल नहीं हुई है. ऐसे में जयशंकर के सामने पाकिस्तान को घेरने के उपाय सीमित हैं.
नए विदेश मंत्नी एस. जयशंकर के सामने प्रमुख चुनौती पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारने की है. हमने पाकिस्तान को आर्थिक दृष्टि से घेरने का प्रयास किया था. बीती एनडीए सरकार ने पाकिस्तान से आने वाले माल पर आयात कर में वृद्धि की थी. लेकिन यह पाकिस्तान को भारी नहीं पड़ रहा है चूंकि पाकिस्तान के कुल निर्यातों में केवल 1.4 प्रतिशत भारत को जाते हैं. पाकिस्तान ने सऊदी अरब और चीन से मदद लेने में सफलता हासिल की है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी उसे मदद दी है. अत: हमारी आर्थिक मोर्चेबंदी सफल नहीं हुई है. ऐसे में जयशंकर के सामने पाकिस्तान को घेरने के उपाय सीमित हैं.
इस दुरूह परिस्थिति में हमें सिंधु जल समझौते पर पुन: विचार करना चाहिए. स्वतंत्नता के शीघ्र बाद प्रधानमंत्नी जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच समझौता हुआ था कि सिंधु घाटी की 6 नदियों में से 3 नदियों के जल पर भारत का अधिकार होगा और 3 नदियों पर पाकिस्तान का अधिकार होगा. पाकिस्तान के कोटे में सिंधु, चिनाब और ङोलम नदियां डाली गई थीं. इनके द्वारा पाकिस्तान को हर वर्ष 8 करोड़ एकड़ फुट जल पहुंचाया जाता है. एक एकड़ भूमि पर यदि एक फुट पानी रखा जाए तो उस पानी को एक एकड़ फुट कहा जाता है.
इसके विपरीत भारत को ब्यास, रावी और सतलुज नदी आवंटित की गई. लेकिन भारत इन नदियों के संपूर्ण जल का उपयोग करने में सफल नहीं हुआ है. आज भी इन नदियों का 3.3 करोड़ एकड़ फुट पानी पाकिस्तान को बह रहा है. इस प्रकार पाकिस्तान को वर्तमान में 11.3 करोड़ एकड़ फुट पानी भारत की भूमि से बहकर मिल रहा है. पाकिस्तान में कुल पानी की उपलब्धता 14.5 करोड़ एकड़ फुट है. यानी पाकिस्तान को उपलब्ध पानी में से लगभग 80 प्रतिशत पानी भरत से मिल रहा है. आश्चर्य की बात है कि भारत पर इतना परावलंबी होने के बावजूद पाक हमारे विरुद्ध आतंकियों को पोषित कर रहा है.
इस परिस्थिति में हमें सिंधु जल समझौते को रद्द करने पर विचार करना चाहिए. यदि हम इस समझौते को रद्द कर दें और सिंधु, चिनाब और ङोलम के पानी को भी रोक लें तो पाकिस्तान बहुत शीघ्र ही घुटने टेक देगा. समस्या यह है कि सिंधु जल समझौते में व्यवस्था दी गई है कि उस समझौते में कोई भी परिवर्तन आपसी सहमति से ही किया जाएगा और मतभेद होने पर विश्व बैंक की मध्यस्थता की पहल की जाएगी. इस प्रावधान के अनुसार हम एकतरफा कार्रवाई से समझौते को रद्द नहीं कर सकते हैं. लेकिन कानून का एक मूल सिद्धांत है कि कानून की विवेचना उसकी प्रस्तावना के मद्देनजर की जाती है. जिस उद्देश्य से कानून बनाया गया है उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही कानून की विवेचना की जानी चाहिए. सिंधु जल समझौते की प्रस्तावना में लिखा गया है कि आपसी सौहार्द्र और मित्नता की भावना से पाकिस्तान और भारत इस समझौते में प्रवेश कर रहे हैं. हमने जो सिंधु, चिनाब और ङोलम नदियों का पानी पाकिस्तान को देना स्वीकार किया, उसका उद्देश्य था कि पाकिस्तान और भारत के बीच सौहाद्र्र और मित्नता बनी रहेगी.
यदि पाकिस्तान ने यह सौहाद्र्र और मित्नता ही नहीं बनाया है और हमारे विरुद्ध आतंकवाद को पोषित कर रहा है तो इस बदली हुई परिस्थिति में समझौते का औचित्य ही नहीं रह जाता है. अत: हम इस समझौते को पूरी तरह रद्द कर सकते हैं. ध्यान दें कि जब हम समझौते के अंतर्गत कुछ सुधार करना चाहें यानी समझौते को स्वीकार करते हुए उसमें परिवर्तन करना चाहें तो आपसी सहमति जरूरी है. लेकिन यदि हम समझौते को ही रद्द करते हैं तो उसके साथ वह धारा भी रद्द हो जाती है जिसमें आपसी सहमति की बात की गई है. इसलिए समझौते को रद्द करने में आपसी सहमति की धारा बीच में नहीं आती है.