भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: ऊर्जा का मूल्य बढ़ाइए, सेवा क्षेत्र का विस्तार कीजिए
By भरत झुनझुनवाला | Published: March 24, 2022 02:41 PM2022-03-24T14:41:45+5:302022-03-24T14:45:08+5:30
सरकार को तेल और बिजली दोनों पर भारी ‘ऊर्जा सुरक्षा’ टैक्स आरोपित करना चाहिए. इनके दाम में भारी वृद्धि करनी चाहिए. ऊर्जा सुरक्षा स्थापित करने का दूसरे उपाय पर भी गौर करना चाहिए.
यूक्रेन के युद्ध ने ईंधन तेल की समस्या को सामने ला खड़ा किया है. कुछ माह पूर्व विश्व बाजार में कच्चे तेल का दाम 80 रुपए प्रति बैरल था जो बढ़कर वर्तमान में 110 रुपए के आसपास हो गया है. आगे इसके 150 डॉलर तक चढ़ने की संभावना बन रही है. ऐसी परिस्थिति में वर्तमान में पेट्रोल का दाम 100 रु पए प्रति लीटर से बढ़कर 130 रुपए प्रति लीटर तक होने की संभावना है.
हमारे लिए यह संकट है क्योंकि हम अपनी खपत का लगभग 80 प्रतिशत तेल आयात करते हैं. यूक्रेन युद्ध अथवा ऐसे ही अन्य संकट के कारण यदि तेल की सप्लाई कम हो गई और इसके दाम बढ़ गए तो हमारी पूरी अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी. हमारे पास ऊर्जा के दूसरे स्रोत भी नहीं हैं. तेल यूं ही कम है.
कोयला हमारे पास लगभग आने वाले 150 वर्ष की सामान्य जरूरत के लिए है परंतु जैसे-जैसे हम कोयले का खनन करते हैं वैसे-वैसे उसकी गुणवत्ता कम होती जाती है और इसलिए हम वर्तमान में ही कोयले का भारी मात्रा में आयात कर रहे हैं. यूरेनियम भी अपने देश में कम है जिसके कारण हम परमाणु ऊर्जा नहीं बना सकते हैं.
हमारे पास केवल दो स्रोत बचते हैं- सोलर एवं हाइड्रोपावर. सोलर के विस्तार के लिए सरकार ने प्रभावी कदम उठाए हैं और इसमें तेजी से वृद्धि भी हुई है परंतु आकलनों के अनुसार इस तीव्र वृद्धि के बावजूद 2050 में सोलर ऊर्जा से हम केवल अपनी 14 प्रतिशत जरूरतों की पूर्ति कर सकेंगे. इसलिए सौर ऊर्जा हमारी ऊर्जा सुरक्षा का स्तंभ नहीं बन सकती है.
हाइड्रोपावर की भी सीमा है क्योंकि तमाम नदियों के ऊपर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पहले ही लग चुके हैं. बची हुई नदियों के ऊपर हम हाइड्रोपावर लगा भी दें तो भी इनके पर्यावरणीय दुष्प्रभाव भारी हैं. जैसे पाया गया है कि हाइड्रोपावर के बड़े तालाबों में मच्छर पैदा होते हैं और उन क्षेत्रों में मलेरिया का प्रकोप अधिक होता है. पानी की गुणवत्ता का ह्रास होता है. नदी का सौंदर्य जाता रहता है. मछलियां मरती हैं और जैव विविधता समाप्त होती है.
अत: जब हम हाइड्रोपावर बनाते हैं तो हमारे जीवन स्तर पर एक साथ दो विपरीत प्रभाव पड़ते हैं. एक तरफ हमें बिजली उपलब्ध होती है जिससे जीवन स्तर में सुधार होता है तो दूसरी तरफ स्वास्थ्य, पानी और सौंदर्य का ह्रास होता है जिससे हमारे जीवन स्तर में गिरावट आती है.
एक और घरेलू स्रोत बायोडीजल अथवा इथेनॉल का है. यहां संकट खाद्य सुरक्षा का है. जब हम खेती की जमीन पर बायोडीजल बनाने के लिए गन्ने का उत्पादन बढ़ाते हैं तो उसी अनुपात में गेहूं, चावल और अन्य फल, सब्जी का उत्पादन घटता है जिससे हमारी खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है. पानी का भी संकट बनता है क्योंकि गन्ने के उत्पादन में गेहूं की तुलना में लगभग 10 गुना पानी अधिक प्रयोग होता है. लगभग संपूर्ण देश में भूमिगत जल का स्तर तेजी से नीचे गिर रहा है जिसके कारण हम बायोडीजल का उत्पादन भी नहीं बढ़ा सकेंगे.
परमाणु ऊर्जा की भी समस्या है क्योंकि यूरेनियम अपने देश में है ही नहीं. इसका एक विकल्प थोरियम है. लेकिन थोरियम से यूरेनियम बनाने में हम फिलहाल बहुत पीछे हैं.
इस परिस्थिति में हम ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाकर किसी भी तरह से अपनी ऊर्जा सुरक्षा स्थापित नहीं कर सकते हैं. हमारे पास केवल एक उपाय है कि हम अपनी खपत को कम करें.
नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक लेख में बताया गया कि विश्व के ऊपरी 10 प्रतिशत लोगों द्वारा 50 प्रतिशत ऊर्जा की खपत होती है. अत: यदि हम ऊर्जा के दाम में भारी वृद्धि करें तो इसका अधिक प्रभाव ऊपरी वर्ग पर पड़ेगा; और यदि इस पर लगाए गए टैक्स का उपयोग हम आम आदमी के हक में करें तो आम आदमी के जीवन स्तर पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ेगा. जितना अधिक खर्च उसके द्वारा महंगी ऊर्जा की खरीद में किया जाएगा उससे ज्यादा लाभ उसे सार्वजनिक सुविधाओं जैसे बस की उपलब्धता से हो सकता है.
इसलिए सरकार को तेल और बिजली दोनों पर भारी ‘ऊर्जा सुरक्षा’ टैक्स आरोपित करना चाहिए. इनके दाम में भारी वृद्धि करनी चाहिए. ऊर्जा सुरक्षा स्थापित करने का दूसरा उपाय है कि हम मैन्युफैक्चरिंग के आधार ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ाने के स्थान पर सेवा क्षेत्र के आधार पर ‘सव्र्ड फ्रॉम इंडिया’ के विस्तार पर ध्यान दें. बताते चलें कि 100 रुपए की आय बनाने में जितनी ऊर्जा मैन्युफैक्चरिंग में लगती है उसका केवल दसवां हिस्सा सेवा क्षेत्र में लगता है.
सेवा क्षेत्र में सॉफ्टवेयर, संगीत, ट्रांसलेशन, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि आते हैं जहां पर कम ऊर्जा में अधिक उत्पादन किया जाता है. यदि हम अपनी आय को सेवा क्षेत्र से हासिल करें तो कम ऊर्जा में अधिक आय हासिल कर सकते हैं.