भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: रोजगार पर ध्यान देने से सुधरेगी अर्थव्यवस्था

By भरत झुनझुनवाला | Updated: October 20, 2019 12:12 IST2019-10-20T12:12:52+5:302019-10-20T12:12:52+5:30

पिछले दो वर्षो में रिजर्व बैंक ने कई बार ब्याज दरों में कटौती की है लेकिन अर्थव्यवस्था की विकास दर लगातार गिरती जा रही है. यह इसका प्रमाण है कि ब्याज दर को न्यून करके हम आर्थिक विकास हासिल नहीं कर सकते हैं.

Bharat Jhunjhunwala's blog: Focus on employment will improve economy | भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: रोजगार पर ध्यान देने से सुधरेगी अर्थव्यवस्था

भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: रोजगार पर ध्यान देने से सुधरेगी अर्थव्यवस्था

सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन का बनाने का लक्ष्य रखा है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार की रणनीति है कि ब्याज दर में कटौती की जाए जिससे उपभोक्ता के लिए ऋण लेकर खपत करना आसान हो जाए. जैसे ऋण लेकर कार खरीदने को वह उद्यत हो, अथवा न्यून ब्याज दर से प्रेरित होकर उद्यमी ऋ ण लेकर फैक्ट्री लगाएं जिससे कि रोजगार भी उत्पन्न हो और उत्पादन भी बढ़े और हमारे आर्थिक विकास को गति मिले. लेकिन उद्यमी के लिए ब्याज दर का विषय बाद में आता है.

उद्यमी के लिए पहला विषय होता है कि बाजार में माल की मांग है या नहीं. यदि बाजार में माल की मांग होती है तो वह येन केन प्रकारेण पूंजी की व्यवस्था कर फैक्ट्री लगाता ही है. इसके विपरीत यदि बाजार में मांग नहीं है तो वह ब्याज दर कम होने पर भी ऋ ण नहीं लेता है क्योंकि फैक्ट्री लगाकर प्रॉफिट तभी हासिल किया जाता है जब उत्पादित माल को बेचा जा सके. यदि ब्याज दर कम हो और आप उसके लालच में फैक्ट्री लगा लें लेकिन माल बिके नहीं तो वह  न्यून ब्याज दर निर्थक हो जाती है.

हम देख रहे हैं कि पिछले दो वर्षो में रिजर्व बैंक ने कई बार ब्याज दरों में कटौती की है लेकिन अर्थव्यवस्था की विकास दर लगातार गिरती जा रही है. यह इसका प्रमाण है कि ब्याज दर को न्यून करके हम आर्थिक विकास हासिल नहीं कर सकते हैं. इसके विपरीत यदि बाजार में मांग हो और उद्यमी फैक्ट्री लगाने को उद्यत हों तो न्यून ब्याज दर उसे अवश्य ही प्रेरित करती है कि वह छोटे के स्थान पर बड़ी फैक्ट्री लगाए और 10 के स्थान पर 20 कर्मियों को रोजगार दे. अत: मुख्य बात बाजार में मांग का होना है.

प्रश्न है कि इस समय बाजार में मांग क्यों नहीं उत्पन्न हो रही है. मांग उत्पन्न होने के लिए आम आदमी के पास क्रय शक्ति होनी चाहिए. किसान अथवा मध्यम वर्गीय कर्मियों के पास आय होनी चाहिए जिससे कि वे बाजार में जाकर टेलीविजन अथवा बाइक खरीदें. बाजार में मांग न होना इस बात की तरफ संकेत करता है कि आम आदमी के पास क्र य शक्ति नहीं है. प्रश्न है कि यह क्रय शक्ति गई कहां? मेरा मानना है कि नोटबंदी और जीएसटी ने आम आदमी की जीविका पर भारी चोट की है.

नोटबंदी के कारण तमाम छोटे उद्यमियों का धंधा चौपट हो गया है. सरकार की सोच है कि विकसित देशों की तरह हम भी आधुनिक बड़े-बड़े कारखाने लगाएं. इस नीति को लागू करने के लिए नोटबंदी और जीएसटी को लागू किया गया है. इस कारण छोटे उद्यमी दबाव में आ गए हैं, लोगों को रोजगार कम मिल रहा है, आम आदमी की क्र य शक्ति कम हो गई है, बाजार में मांग नहीं है और बड़े उद्यामी भी निवेश करने को उद्यत नहीं हैं.

सरकार की सोच यह भी है कि छोटे उद्यमियों को मात्न 10 वर्ष तक छूट दी जाए जिसमें ब्याजदर कम होती है अथवा कुछ कानूनों से मुक्ति मिलती है. सरकार का कहना है कि जिस प्रकार एक पौधा सदा छोटा नहीं रहता बल्कि समय अनुसार उसे बड़े पौधे में बढ़ना चाहिए उसी प्रकार छोटे उद्यम को सदा छोटा नहीं रहना चाहिए. यदि वह बड़ा नहीं होता तो उसका छोटे उद्यम का दर्जा दस वर्ष बाद समाप्त कर देना चाहिए.

मेरा मानना है कि पौधे से तुलना करना उचित नहीं है. सही तुलना है धावक से. हर व्यक्ति की दौड़ करने की क्षमता अलग-अलग होती है. जो व्यक्ति कम तेजी से दौड़ता है उसे दौड़ से सदा के लिए बाहर नहीं करना चाहिए. वह रिक्शा चला सकता है यद्यपि वह उतना तेज नहीं चला सकेगा जितना दूसरा रिक्शाचालक चलाता है. तमाम ऐसे उद्यमी हैं जिनकी क्षमता छोटे उद्यम को चलाने तक सीमित है. हम यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि हर छोटा उद्यम समय क्र म में बड़ा हो ही जाएगा. लेकिन सरकार की सोच है कि इस प्रकार के छोटे उद्यम को समाप्त कर दिया जाए. सरकार की इस सोच के कारण देश में रोजगार कम हो रहा है और बाजार में मांग कम हो रही है और निवेश भी कम हो रहा है.

सरकार की यह सोच भी है कि चीन द्वारा 80 और 90 के दशक में अपनाई गई नीति को हम अपनाएं. लेकिन आज की परिस्थितियों में मौलिक अंतर है. उस समय विकसित देशों में नए-नए तकनीकी अविष्कार हो रहे थे जैसे विंडोज का सॉफ्टवेयर, लैपटॉप अथवा इंटरनेट. इन नए तकनीकी अविष्कारों के बल पर विकसित देशों की आय बढ़ रही थी और वे चीन से सस्ता माल खरीद रहे थे. आज विकसित देशों के पास इंटरनेट जैसे आविष्कार कम ही उपलब्ध हैं. उनकी विकास दर भी दबाव में है, इसलिए उनकी मांग कम बन रही है.

दूसरी बात यह कि रोबोट और ऑटोमेटिक मशीनों के अविष्कारों से आज विकसित देशों में माल का उत्पादन भी लाभप्रद हो गया है. जैसे पूर्व में फुटबॉल बनाने के लिए कर्मियों की भारी संख्या में जरूरत पड़ती थी इसलिए फुटबॉल का उत्पादन चीन में होता था. आज यदि रोबोट के द्वारा फुटबॉल बनाई जाने लगे तो उसका उत्पादन विकसित देशों में हो सकता है. इस कारण आज विकसित देशों द्वारा भारत जैसे देशों से माल का आयात कम ही किया जा रहा है. आज हम चीन द्वारा पूर्व में अपनाई गई नीति को अपनाकर आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं.

सरकार को चाहिए कि अपनी नीतियों में मौलिक परिवर्तन करे अन्यथा स्थिति बिगड़ती जाएगी. मूल बात यह है कि छोटे कर्मियों, छोटे किसानों और छोटे बिल्डरों सबको संरक्षण दिया जाए. इनके द्वारा रोजगार अधिक बनते हैं और इन रोजगारों से ही अर्थव्यवस्था में मांग बनती है. विकसित देशों के बड़े-बड़े उद्यमियों और बिल्डरों की चकाचौंध से सरकार को भटकना नहीं चाहिए. जब तक सरकार आम आदमी के रोजगार की ओर ध्यान नहीं देगी, तब तक देश की अर्थव्यवस्था में सुधार होने की संभावना कम ही है.

Web Title: Bharat Jhunjhunwala's blog: Focus on employment will improve economy

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