अवधेश कुमार का ब्लॉगः मानव धर्म की तलाश में थे बाबासाहब
By अवधेश कुमार | Published: October 8, 2019 08:58 PM2019-10-08T20:58:33+5:302019-10-08T20:58:33+5:30
बाबासाहब के इस निर्णय के पक्ष और विपक्ष में अनेक मत प्रकट किए जाते हैं और इसमें कोई समस्या नहीं है
लाखों लोगों के साथ स्वेच्छा से और विधिपूर्वक किसी धर्म को अपनाने की इतिहास की यह पहली घटना मानी जाती है. बाबासाहब आंबेडकर ने यह कार्य किया तो उसके पीछे गहरे कारण थे.
हालांकि इस विषय पर हमेशा बहस होती रहती है कि बाबासाहब आंबेडकर ने बौद्ध धर्म ही क्यों अपनाया? ध्यान रखने की बात है कि बाबासाहब ने हिंदू धर्म का परित्याग करने की घोषणा 1936 में अपने भाषण एनिहिलेशन ऑफ कास्ट या जातिभेद के उच्छेद में की थी लेकिन उन्होंने धर्म परिवर्तन किया 1956 में.
इसलिए यह भी प्रश्न उठता है कि घोषणा के बावजूद इतना अधिक समय उन्होंने क्यों लिया? इसका उत्तर इस रूप में दिया जाता है कि इन दो दशकों में उन्होंने अलग-अलग धर्मो का गहराई से अध्ययन किया. उनकी तुलना की. दूसरे शब्दों में कहें तो अपने तथा अपने साथियों के लिए वे अपनी दृष्टि में श्रेष्ठ धर्म की खोज कर रहे थे. यह खोज अंतत: उन्हें बौद्ध धर्म तक ले आई. वे 1950 के दशक में बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षित हुए और
बौद्ध सम्मेलन में भाग लेने श्रीलंका भी गए.
बाबासाहब के इस निर्णय के पक्ष और विपक्ष में अनेक मत प्रकट किए जाते हैं और इसमें कोई समस्या नहीं है. हिंदू धर्म को लेकर उनकी टिप्पणियों और निष्कर्षो पर भी एक राय संभव नहीं है. एक बात साफ है कि हिंदू समाज की बुराइयों से उनके अंदर गुस्सा था, पर उन्होंने किसी आवेग या गुस्से में आकर बौद्ध धर्म में आने का निर्णय नहीं लिया था. धर्म को देखने का उनका दृष्टिकोण था. ‘बुद्ध एंड फ्यूचर ऑफ हिज रिलीजन’ शीर्षक अपने लेख में बाबासाहब सारे प्रश्नों का जवाब देते हैं. इसमें उन्होंने लिखा है कि धर्म को विज्ञान और तर्क की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए.
वे कहते हैं- ‘धर्म को यदि वास्तव में कार्य करना है तो उसे बुद्धि या तर्क पर आधारित होना चाहिए, जिसका दूसरा नाम विज्ञान है.’ हालांकि किसी धर्म के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है. धर्म की कुछ और विशेषताएं चाहिए. क्या हो सकती हैं वे विशेषताएं? इसका उत्तर वे इसी लेख में देते हैं. वे लिखते हैं कि ‘किसी धर्म के लिए इतना पर्याप्त नहीं है कि उसमें नैतिकता हो. उस नैतिकता को जीवन के मूलभूत सिद्धांतों- स्वतंत्नता, समानता और भ्रातृत्व को मानना चाहिए.’ तो यह है उनके धर्म को श्रेष्ठ मानने की कसौटी. उन्होंने इन्हीं विचारों को ध्यान में रखते हुए बौद्ध धर्म को स्वीकार किया.