बाबासाहब ने मंत्री पद छोड़ते ही तुरंत खाली किया था बंगला
By विवेक शुक्ला | Updated: December 6, 2025 12:28 IST2025-12-06T12:26:39+5:302025-12-06T12:28:31+5:30
जब उनके इस्तीफे की खबर ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित हुई तो राजधानी के अलग-अलग इलाकों, खासकर करोल बाग से उनके समर्थक बड़ी संख्या में उनके घर पहुंचने लगे.

बाबासाहब ने मंत्री पद छोड़ते ही तुरंत खाली किया था बंगला
आप जब राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट से पृथ्वीराज रोड पर आते हैं तो आपको सड़क के दायीं तरफ तुर्की के राजदूत का बंगला नजर आता है. यह है 22 पृथ्वीराज रोड. इसका बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर से गहरा रिश्ता रहा है. वे 1946 से लेकर 31 अक्तूबर 1951 तक यहीं रहे. यहीं पर 15 अप्रैल 1948 को उन्होंने डॉ. सविता आंबेडकर से सादगी से विवाह किया था.
बाबासाहब ने 31 अक्तूबर 1951 को हिंदू कोड बिल को लेकर पं. नेहरू से अपनी गंभीर असहमतियों के चलते कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. और फिर उन्होंने जो किया, वह उन सभी लोगों के लिए एक सीख है, जो किसी भी बहाने से लुटियंस बंगलो में रहने की जिद करते हैं. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि बाबासाहब ने 1 नवंबर 1951, यानी इस्तीफा देने के अगले ही दिन, अपने सरकारी आवास 22 पृथ्वीराज रोड को पूरी तरह से खाली कर दिया और राजधानी के 26 शामनाथ मार्ग (जो पहले अलीपुर रोड के नाम से जाना जाता था) में शिफ्ट हो गए? यह स्थान सिविल लाइन्स मेट्रो स्टेशन और दिल्ली विधानसभा के ठीक सामने है.
दरअसल बाबासाहब को कैबिनेट को छोड़ने के बाद एक दिन के लिए भी 22 पृथ्वीराज रोड में रहना मंजूर नहीं था. डॉ. रविंदर कुमार, जो कि पूर्व रेलवे बोर्ड के सदस्य रहे हैं और जिनके पिता होती लाल पिपल डॉ. आंबेडकर के घर के केयरटेकर थे, कहते हैं, ‘‘डॉ. आंबेडकर ने पं. नेहरू को इस्तीफा सौंपने के बाद घर लौटकर मेरे पिता ( होती लाल) और उनके साथी नानक चंद रत्तू से कहा कि वे अगले ही दिन 22 पृथ्वीराज रोड को छोड़ देंगे.’’
बेशक, बाबासाहब के लिए एक ही दिन में नया घर तलाश करना आसान नहीं था, क्योंकि उनके घर में रोज बहुत सारे लोग आते थे. इसलिए जाहिर है कि उनके लिए बड़ा सा घर तलाश करना था. जब उनके इस्तीफे की खबर ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित हुई तो राजधानी के अलग-अलग इलाकों, खासकर करोल बाग से उनके समर्थक बड़ी संख्या में उनके घर पहुंचने लगे. कुछ लोग उनसे करोल बाग में शिफ्ट होने की बात भी कर रहे थे. इस सारे क्षेत्र में उनके बहुत समर्थक थे.
बाबासाहब की पहली प्रतिमा करोल बाग के पास रानी झांसी रोड पर स्थित आंबेडकर भवन में ही स्थापित की गई थी. इसकी स्थापना 14 अप्रैल 1957 को की गई थी. उन्होंने ही 16 अप्रैल 1950 को इस भवन की नींव रखी थी. यानी बाबासाहब की 6 दिसंबर 1956 को मृत्यु के बाद उनका जो पहला जन्मदिन आया, उस दिन उनकी दिल्ली में पहली प्रतिमा लगाई गई.
इसी बीच, सिरोही के पूर्व राजा डॉ. आंबेडकर के पास आए और उन्हें अपने शामनाथ मार्ग स्थित घर में रहने का प्रस्ताव दिया. डॉ. आंबेडकर और उनकी पत्नी डॉ. सविता आंबेडकर ने इस प्रस्ताव पर विचार किया और आखिरकार शामनाथ मार्ग जाने का निर्णय लिया. हालांकि डॉ. आंबेडकर ने राजा से कहा कि वे तभी वहां शिफ्ट होंगे, जब राजा उनसे किराया लेंगे. राजा थोड़ी देर के लिए उलझन में पड़े, लेकिन अंत में उन्होंने किराये के रूप में एक छोटा सा भुगतान स्वीकार कर लिया.
अगले दिन डॉ. आंबेडकर अपने परिवार और स्टाफ के साथ 22 पृथ्वीराज रोड को पूरी तरह से खाली कर शामनाथ मार्ग शिफ्ट हो गए. क्या आज के राजनेता बाबासाहब से कुछ सीख लेंगे?