वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: राम मंदिर, सफल होगी मध्यस्थता?
By वेद प्रताप वैदिक | Published: March 9, 2019 07:36 AM2019-03-09T07:36:32+5:302019-03-09T07:36:32+5:30
अदालत कोई फैसला उस समय देकर अपने गले में पत्थर नहीं बांधना चाहेगी। यानी यह मामला फिर टल गया। यहां मुङो सबसे ज्यादा हैरानी मोदी सरकार पर है। यदि चंद्रशेखर और नरसिंहराव की सरकारें इस मामले में जबर्दस्त पहल कर सकती थीं तो भाजपा क्यों नहीं?
राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद अदालत से नहीं, मध्यस्थता से हल हो, हमारे सर्वोच्च न्यायालय की इस पहल का मैंने हार्दिक स्वागत किया था क्योंकि 1990-92 में यह विवाद मध्यस्थता के चलते ही हल होने के कगार पर था। लेकिन आज यह सुनकर कि वे तीन मध्यस्थ खुद सर्वोच्च न्यायालय ने नियुक्त कर दिए हैं और उन्हें दो महीने की मोहलत दे दी है तो मैं थोड़ा परेशान हो गया। उनकी मध्यस्थता सफल होगी कि नहीं, यह सवाल भी खड़ा हो गया है।
पहला सवाल तो यह कि क्या अदालत ने याचिकाकर्ताओं से इन मध्यस्थों के बारे में सहमति लेकर इन्हें नियुक्त किया है? यदि नहीं तो वे इन्हें महत्व क्यों देंगे? यदि उनकी सहमति ले ली गई हो तो भी दूसरा सवाल यह है कि मंदिर और मस्जिद का विवाद क्या उस सिर्फ पौने तीन एकड़ जमीन की मिल्कियत का विवाद है? यदि वे तीनों किसी हल पर सहमत हो भी जाएं तो भी हिंदुओं और मुसलमानों के बड़े संगठन और नेता क्या उनकी बात मान लेंगे? तीनों मध्यस्थों को क्या किन्हीं बड़े हिंदू और मुस्लिम संगठनों का प्रतिनिधित्व प्राप्त है?
माना यह जा सकता है कि ये तीनों मध्यस्थ सर्वोच्च न्यायालय का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। यदि ऐसा है तो अदालत बताए (कम से कम इन मध्यस्थों को) कि उसके पास इस विवाद को हल करने के क्या-क्या विकल्प हैं? यह वह समय होगा, जब चुनावी माहौल चरम पर होगा। जाहिर है, अदालत कोई फैसला उस समय देकर अपने गले में पत्थर नहीं बांधना चाहेगी। यानी यह मामला फिर टल गया। यहां मुङो सबसे ज्यादा हैरानी मोदी सरकार पर है। यदि चंद्रशेखर और नरसिंहराव की सरकारें इस मामले में जबर्दस्त पहल कर सकती थीं तो भाजपा क्यों नहीं?