अवधेश कुमार का ब्लाग: लोगों का नि:स्वार्थ सहायता का आचरण उम्मीद पैदा करता है
By अवधेश कुमार | Published: May 7, 2021 06:26 PM2021-05-07T18:26:02+5:302021-05-07T18:26:02+5:30
गाजियाबाद से एक समाचार ने पूरे देश का ध्यान खींचा जहां एक गुरुद्वारे ने घोषणा की कि कोई भी मरीज अगर ऑक्सीजन के बिना छटापटा रहा है तो ले आइए, हम तब तक ऑक्सीजन देते रहेंगे जब तक या तो किसी अस्पताल में उनको जगह नहीं मिल जाती या वे इस स्थिति में नहीं आ जाते कि घर में आइसोलेट होकर चिकित्सा करा सकें
कोरोना महाआपदा में चरमराती स्वास्थ्य सेवाओं और उनसे उत्पन्न डर और हताशा के बीच ऐसे समाचार और दृश्य सामने आ रहे हैं जो फिर उम्मीद पैदा करते हैं कि विकट परिस्थिति में देश का बड़ा समूह भारी जोखिम उठाकर भी समर्पण और संकल्प के साथ सेवा भाव से काम करने को तत्पर है. वास्तव में कोई भी आपदा अकेले केवल सरकारों के लिए चुनौतियां खड़ी नहीं करती, समाज के लिए भी करती है.
समाज का बड़ा समूह इसे समझता है तो वह अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार खड़ा होता है, आगे आता है और उन चुनौतियों को दूर करने या कम करने की यथासंभव कोशिश करता है. एक संवेदनशील सतर्क और सक्रिय समाज का यही लक्षण है. तमाम हाहाकार और कोहराम के बीच हमारे सामने ऐसी खबरें लगातार आ रही हैं। जिनमें धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, सेवा संगठन-समूह या निजी स्तर पर भी लोग अपने-अपने तरीकों से पीड़ित व प्रभावित लोगों की सहायता कर रहे हैं.
ऐसे कुछ और समाचारों पर नजर डालेंगे तो इनके विस्तार और प्रभाव का अहसास हो जाएगा. जोधपुर से खबर आई कि वहां के कुछ व्यापारियों ने मिलकर आॅक्सीजन बैंक शुरू किया है. ब्लड बैंक की तर्ज पर चलने वाला यह ऑक्सीजन बैंक केवल कोरोना में ही नहीं हर विकट परिस्थिति में स्थायी रुप से अस्पतालों को, व्यक्तियों को आॅक्सीजन मुहैया कराएगा. शायद हममें से किसी को आश्चर्य हो कि दो-तीन दिनों के अंदर ही करोड़ों रुपए इसके लिए इकट्ठे हो गए और ऑक्सीजन बैंक चालू होने की स्थिति में है. हम उन औद्योगिक घरानों की चर्चा नहीं करेंगे जो भारी मात्रा में ऑक्सीजन के साथ अन्य सहायता के साथ आगे आए हैं.
हालांकि आने वाले कुछ दिनों में ऑक्सीजन की आपूर्ति मांग के अनुरूप हो जाएगी लेकिन विकट परिस्थिति में जब चारों ओर हाहाकार हो तब इस ढंग की संस्थाएं उम्मीद जगाती हैं. ये दो तो केवल उदाहरण हैं. देशभर में अलग-अलग न जाने कितनी संस्थाओं, गुरुद्वारों, मंदिरों, व्यापारिक समूहों, राजनीतिक दलों तथा निजी लोगों ने अपनी ओर से ऑक्सीजन मुहैया कराना शुरू किया और जितना संभव है करा रहे हैं.
हमारे देश के बुद्धिजीवियों में धार्मिक संस्थाओं की आलोचना करने का फैशन है. वे भी आगे आकर काम कर रहे हैं. धार्मिक संस्थाओं की ओर से देश भर में कोविड केयर सेंटर बनाए गए हैं और बनाए जा रहे हैं. निरंकारी मिशन, राधास्स्वामी सत्संग, सावन कृपाल रूहानी मिशन, चिन्मय मिशन, स्वामीनारायण मंदिर, रामकृष्ण मिशन आदि तो वो नाम हैं जिनके कोविड केयर केंद्रों के समाचार और तस्वीरें राष्ट्रीय मीडिया में स्थान पा रही हैं. क्षेत्रीय स्थानीय मीडिया में छोटी - बड़ी धार्मिक संस्थाओं की कोरोना मरीजों के उपचार, उनकी देखभाल तथा अन्य गतिविधियों के समाचार प्रतिदिन आ रहे हैं.
सच यह है कि जिस धार्मिक संस्था की भी थोड़ी क्षमता है वो किसी न किसी रुप में सेवा कर रहा है. यहां तक कि मंदिर, मठ, गुरुद्वारे और मस्जिदों ने भी कोविड केयर के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं. आरंभ में मुंबई के एक जैन मंदिर को चिकित्सा की सभी व्यवस्था के साथ कोविड केयर सेंटर में तब्दील करने की खबर आई. उसके बाद देशभर से ऐसी खबरें आने लगीं. इसी तरह पहले वडोदरा की जहांगीरपुरा मस्जिद द्वारा कोरोना मरीजों के लिए अपने परिसर में बेड का इंतजाम करने की खबर आई. उसके बाद कई जगहों से मस्जिद परिसर में कोरोना मरीजों के इलाज के इंतजाम किए जाने की सूचना आ रही है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने व्यवस्थित तरीके से सेवा अभियान चलाने के लिए सभी राज्यों के प्रभारियों की नियुक्ति कर दी. उससे जुड़े संगठन अपनी क्षमता के अनुसार कई तरीकों से काम कर रहे हैं. जगह-जगह पूरे देश में इनका कार्यक्रम चल रहा है. कुछ संगठन से जुड़ कर कर रहे हैं तो निजी स्तर पर भी, सेवा भारती, वनवासी कल्याण केंद्र, विश्व हिंदू परिषद, मजदूर संघ, विद्यार्थी परिषद आदि के कार्यकर्ता अपने-अपने स्थानों पर छोटे-बड़े समूह बनाकर कई तरीकों से सहायता कर रहे हैं. कोई टीकाकरण अभियान में सहयोग कर रहा है, छोटे-बड़े कोविड केयर या आइसोलेशन सेंटर बनाए गए हैं, एंबुलेंस की व्यवस्था कर रहे हैं, दवाइयां और आॅक्सीजन की उपलब्धता में भी लगे हैं.