अवधेश कुमार का ब्लॉग: राजनीतिक आचरण में बदलाव के लिए आगे आएं

By अवधेश कुमार | Published: January 1, 2020 06:03 AM2020-01-01T06:03:56+5:302020-01-01T06:03:56+5:30

राजनीतिक नेतृत्व लोकतंत्न की मूल भावना के अनुरूप काम नहीं करे तो फिर देश का स्वस्थ, संतुलित और समुचित विकास प्रभावित होगा. राजनीतिक दल यदि आपस के वैचारिक मतभेदों के रहते हुए भी समय के अनुसार देश के हित में एकजुट नहीं हो सकते तो फिर देश के भविष्य को लेकर चिंता स्वाभाविक होनी चाहिए. जरा नजर उठाइए, क्या हमारी राजनीति इस दुरावस्था का शिकार हो चुकी है या नहीं? उत्तर आप स्वयं जानते हैं.

Avadhesh Kumar blog: come forward for a change in political conduct | अवधेश कुमार का ब्लॉग: राजनीतिक आचरण में बदलाव के लिए आगे आएं

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

अब जबकि हम वर्ष 2019 से 2020 में प्रवेश कर चुके हैं, भारतीय राजनीति को लेकर नि:संदेह गंभीर विमर्श की आवश्यकता महसूस होती है. संसदीय लोकतंत्न का मूल आधार राजनीतिक दल हैं. भारत की नियति इन राजनीतिक दलों के चरित्न पर ही निर्भर करती है. आखिर सरकार चलाने के लिए लोग राजनीतिक दलों के नेताओं का ही निर्वाचन करते हैं. देश के नीति निर्धारण का महत्वपूर्ण दायित्व भी राजनीतिक नेतृत्व का ही है.

राजनीतिक नेतृत्व लोकतंत्न की मूल भावना के अनुरूप काम नहीं करे तो फिर देश का स्वस्थ, संतुलित और समुचित विकास प्रभावित होगा. राजनीतिक दल यदि आपस के वैचारिक मतभेदों के रहते हुए भी समय के अनुसार देश के हित में एकजुट नहीं हो सकते तो फिर देश के भविष्य को लेकर चिंता स्वाभाविक होनी चाहिए. जरा नजर उठाइए, क्या हमारी राजनीति इस दुरावस्था का शिकार हो चुकी है या नहीं? उत्तर आप स्वयं जानते हैं.

चुनाव में आमना-सामना होना, एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाना, एक दूसरे को पराजित करने की कोशिश करना आदि किसी भी लोकतंत्न की स्वाभाविक स्थिति है. अगर कोई सत्ता में है तो विपक्ष के द्वारा उसकी आलोचना, उसका विरोध, उसको घेरने की कोशिश करना यह सब स्वाभाविक राजनीतिक गतिविधियां हैं. इनसे किसी को कोई आपत्ति होनी नहीं चाहिए. लेकिन अगर हम थोड़ी भी गहराई से देखें तो भारत की राजनीति धीरे-धीरे पक्ष और विपक्ष की सामान्य प्रतिस्पर्धा से बाहर निकल कर दुश्मनी एवं एक-दूसरे से घृणा और अंतिम सीमा तक असहयोग की स्थिति में परिणत हो रही है. यह स्थिति डरावनी है.

कोई भी राजनीतिक दल हो, उसको समझना होगा कि अंतत: उसे देश के लिए काम करना है. राजनीतिक दलों की कल्पना जनसेवा-देशसेवा के संदर्भ में ही की गई थी. इस नाते संसदीय लोकतंत्न में राजनीति एक श्रेष्ठ कर्म है. जाहिर है इसकी श्रेष्ठता तभी कायम रहेगी जब नेताओं की भूमिका उसके अनुकूल हो. नेताओं के व्यवहार और राजनीतिक दलों की सामूहिक भूमिका में पतन के कारण राजनीति को लेकर जनता के मन में अच्छी सोच नहीं है. 2019 इस मायने में भी दुर्भाग्यशाली कहा जाएगा कि राजनीतिक दलों के बीच दूरियां घटने के बजाय और बढ़ीं.

जब 2019 में हमारी राजनीति ने अपनी सोच, अपने वक्तव्यों और व्यवहारों में इस तरह के सकारात्मक परिवर्तन का संकेत नहीं दिया तो हम 2020 के लिए आश्वस्त कैसे हो सकते हैं. बावजूद इसके हर एक भारतवासी का दायित्व है कि वह इसके लिए कोशिश करे. राजनीति को स्वाभाविक धरातल पर लाने के लिए जितना भी संभव हो काम किया जाए. इस संकल्प के साथ हमें 2020 में आगे बढ़ना चाहिए.
 

Web Title: Avadhesh Kumar blog: come forward for a change in political conduct

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