Assembly elections 2022: देश में अनैतिक प्रकृति की राजनीति के प्रतीक हैं दिल्ली के सीएम केजरीवाल

By कपील सिब्बल | Published: March 2, 2022 03:01 PM2022-03-02T15:01:34+5:302022-03-02T15:03:13+5:30

Assembly elections 2022: पंजाब के लोगों को एक ईमानदार सरकार की पेशकश करते हुए दावा करते हैं कि वे सत्ता के भूखे नहीं हैं और उन्होंने राज्य में भ्रष्टाचार को खत्म करने की शपथ ली है.

Assembly elections 2022 congress kapil sibal attack Delhi CM arvind Kejriwal symbol politics immoral nature country | Assembly elections 2022: देश में अनैतिक प्रकृति की राजनीति के प्रतीक हैं दिल्ली के सीएम केजरीवाल

दिल्ली विधानसभा द्वारा पारित लोकपाल विधेयक जन लोकपाल विधेयक के अनुरूप नहीं था, जिसका उन्होंने कभी समर्थन किया था.

Highlightsअमरिंदर ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया तो भाजपा ने अमरिंदर के इस कदम का स्वागत किया.पंजाब में महत्वपूर्ण उपस्थिति के साथ, अनुसूचित जाति के वोटों को हासिल करने की उम्मीद कर रहे हैं.दिसंबर 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा और मुख्यमंत्नी बने.

Assembly elections 2022: पंजाब चुनाव के दौरान हमने राजनीति के अलग-अलग रूप देखे हैं. एक पूर्व मुख्यमंत्नी ने, अपने दूसरे कार्यकाल के अंत से ठीक पहले, कांग्रेस के साथ अपने लंबे समय के जुड़ाव को छोड़ दिया और भाजपा के साथ हाथ मिला लिया- एक बदलाव जिसे उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व द्वारा सम्मान नहीं मिलने और अपमान के आधार पर उचित ठहराया.

अमरिंदर सिंह का ऐसा करना उचित था या नहीं, इस विश्लेषण में हम न पड़ें, तब भी वह लचीलापन चकित कर देने वाला है जिससे राजनीतिक निष्ठा को बदला जा सकता है और वैचारिकता को कूड़ेदान में फेंका जा सकता है. यह दिखाता है कि आज की राजनीति एक ऐसा उद्यम बन चुकी है जिसमें विचारधारा की कोई भूमिका नहीं है.

कांग्रेस ने मुख्यमंत्नी के रूप में चरणजीत सिंह चन्नी को चुनकर अमरिंदर को जवाब दिया, शायद जाति को ध्यान में रखते हुए, इस उम्मीद में कि एक स्थापित नेता के छोड़ने के झटके से पार्टी को उबारा जा सकेगा. जब अमरिंदर ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया तो भाजपा ने अमरिंदर के इस कदम का स्वागत किया.

स्पष्ट था कि भाजपा अमरिंदर के साथ गठबंधन की और पंजाब में बड़ी संख्या में सीटों पर चुनाव लड़ी, एक ऐसा समझौता, जो अकालियों के साथ गठबंधन में बने रहने पर वह कभी भी नहीं कर पाती. दूसरी ओर अकाली, बसपा के साथ गठबंधन कर पंजाब में महत्वपूर्ण उपस्थिति के साथ, अनुसूचित जाति के वोटों को हासिल करने की उम्मीद कर रहे हैं.

उधर, अरविंद केजरीवाल की आप को बिना किसी जवाबदेही के, चुनावी मैदान में एक नया खिलाड़ी होने का फायदा है. बिना विचारधारा के गठबंधनों का यह बदलाव भारतीय राजनीति का अभिशाप है. हमने इस खेल को देश के अन्य हिस्सों में भी खेले जाते देखा है. भारत में राजनीति की अनैतिक प्रकृति अरविंद केजरीवाल के कृत्यों में सबसे अच्छी तरह से परिलक्षित होती है.

वे पंजाब के लोगों को एक ईमानदार सरकार की पेशकश करते हुए दावा करते हैं कि वे सत्ता के भूखे नहीं हैं और उन्होंने राज्य में भ्रष्टाचार को खत्म करने की शपथ ली है. यही केजरीवाल अगस्त 2011 से अगस्त 2012 तक ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन मूवमेंट’ में अन्ना हजारे के सहारे राजनीतिक आधार बनाने में सबसे आगे थे.

उन्होंने घोषणा की थी कि उनका आंदोलन राजनीति से भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए है, जिसे उन्होंने ‘जनता की राजनीति’ कहा. उस समय केजरीवाल ने कहा था, ‘‘मैं अपने जीवन में कभी चुनाव नहीं लड़ूंगा और मैं अपने जीवन में कोई पद नहीं लेना चाहता. मेरी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है.’’

फिर भी 3 अगस्त 2012 को, लोकप्रिय समर्थन पर सवार होकर, उन्होंने एक राजनीतिक दल के गठन की घोषणा की. नवंबर 2012 में, उन्होंने आप का गठन किया, दिसंबर 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा और मुख्यमंत्नी बने. यह उनकी और उनकी राजनीति की प्रकृति को दर्शाता है.  

उन्होंने एक और डींग हांकी जब कहा, ‘‘अगर अन्ना हमारे राजनीतिक दल के साथ संबंध तोड़ देंगे, तो मैं भी ऐसा ही करूंगा.’’ अन्ना हजारे ने तो नाता तोड़ लिया और केजरीवाल से 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान अपने नाम या तस्वीर का इस्तेमाल नहीं करने को कहा, लेकिन केजरीवाल ने अपने वचन का पालन नहीं किया.

जहां तक भ्रष्टाचार की बात है, दिल्ली विधानसभा द्वारा पारित लोकपाल विधेयक जन लोकपाल विधेयक के अनुरूप नहीं था, जिसका उन्होंने कभी समर्थन किया था. दरअसल, उनके लिए भ्रष्टाचार का मुद्दा अब ठंडे बस्ते में है. ऐसा होना ही था क्योंकि वे जानते हैं कि आप के 62 विधायकों में से 38 पर गंभीर आपराधिक आरोप हैं, यहां तक कि भाजपा से भी ज्यादा, और उनमें से 73 प्रतिशत विधायक करोड़पति हैं.

उन्होंने राजनीतिक दलों के सदस्यों के खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाए और फिर संभावित अभियोजन के डर से माफी मांगी. दिसंबर 2013 में, दिल्ली पुलिस को लिखे एक पत्न में केजरीवाल ने कहा था, ‘‘मुङो किसी सुरक्षा की,  एस्कॉर्ट की आवश्यकता नहीं है. ..भगवान मेरी सबसे बड़ी सुरक्षा है.’’

मुख्यमंत्नी बनने के बाद, उन्होंने भगवान में विश्वास खो दिया और 2018 में, दिल्ली विधानसभा में ‘एक निर्वाचित मुख्यमंत्नी की सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफलता’ के लिए केंद्र को लक्षित करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया. फरवरी 2021 में, आप के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने केंद्र पर केजरीवाल की सुरक्षा को कम करने का आरोप लगाया.

यह दोहरा बर्ताव कई राजनीतिक नेताओं का ट्रेडमार्क है. हमारे राजनेता दोहरी बातें करने में उस्ताद हैं. वे जो कहते हैं उसका शायद ही वह मतलब होता है. गठबंधनों में बदलाव, विचारधारा का अभाव, अवसरवादिता और जाति की राजनीति आज हावी है, जो आम आदमी की चिंताओं से बहुत दूर है.

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