राजेश बादल का ब्लॉगः ‘सेमीफाइनल’ के निकलते गंभीर संदेश

By राजेश बादल | Updated: December 12, 2018 18:47 IST2018-12-12T18:47:00+5:302018-12-12T18:47:00+5:30

तेलंगाना और मिजोरम में तो भाजपा किसी बड़े चमत्कारिक प्रदर्शन की उम्मीद नहीं कर रही थी. अलबत्ता मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से उसे बड़ी आस थी. राजस्थान का किला तो ढहना ही था. दो राज्यों में प्रचार के अंतिम दिनों में उसने पराजय का अंतर यकीनन कम किया मगर छत्तीसगढ़ की पराजय इतनी शर्मनाक है कि लंबे समय तक नहीं भुलाई जा सकेगी.

assembly election 2018: Serial message emerging from 'semi-final' for bjp | राजेश बादल का ब्लॉगः ‘सेमीफाइनल’ के निकलते गंभीर संदेश

राजेश बादल का ब्लॉगः ‘सेमीफाइनल’ के निकलते गंभीर संदेश

यह तो होना ही था. कांग्रेस का पुनर्जन्म और भारतीय जनता पार्टी के लिए खतरे की घंटी. उत्तर भारत के तीन खांटी हिंदी राज्यों में उसकी हार सिर्फ व्यवस्था के प्रति नकारात्मक वोटों का ही नतीजा नहीं है. यह प्रादेशिक और केंद्रीय नेतृत्व के लिए भी गंभीर संदेश है कि प्रचार की जिस शैली पर वह गर्व करता था, वह अब अजेय नहीं रही. साबित हो गया कि कांग्रेस उसी की शैली में मात भी दे सकती है. इसलिए आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए अपने अंदर आमूलचूल बदलाव करने होंगे.

तेलंगाना और मिजोरम में तो भाजपा किसी बड़े चमत्कारिक प्रदर्शन की उम्मीद नहीं कर रही थी. अलबत्ता मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से उसे बड़ी आस थी. राजस्थान का किला तो ढहना ही था. दो राज्यों में प्रचार के अंतिम दिनों में उसने पराजय का अंतर यकीनन कम किया मगर छत्तीसगढ़ की पराजय इतनी शर्मनाक है कि लंबे समय तक नहीं भुलाई जा सकेगी.

सवाल यह है कि गड़बड़ कहां हुई? दरअसल तीनों राज्यों में पार्टी का आधार बहुत मजबूत रहा है लेकिन चुनाव के दौरान केंद्र और प्रादेशिक इकाइयों में तालमेल की कमी रही. प्रदेश सरकारों और संगठन से असंतुष्ट पार्टी नेताओं ने केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा जीता और पार्टी साफ-साफ दो खेमों में बंटी रही. आलाकमान  ने उम्मीदवारों के चुनाव में अनावश्यक हस्तक्षेप किया. इसका परिणाम भी अच्छा नहीं रहा. 

इसके अलावा तीनों प्रदेशों में स्थानीय  मुद्दों पर राष्ट्रीय नीतियां हावी रहीं. परंपरा के मुताबिक विधानसभा चुनाव प्रादेशिक मसलों और चेहरों पर लड़े जाते रहे हैं. राष्ट्रीय मुद्दों को चुनाव का हिस्सा बनाने का नुकसान यह हुआ कि केंद्र सरकार की असफलताएं भी मतदाताओं के सामने रहीं. अब पार्टी नेतृत्व हार का ठीकरा प्रादेशिक क्षत्नपों पर नहीं फोड़ सकता. 

भाजपा ने जिस तरह चुनाव के ठीक पहले राम मंदिर निर्माण और अन्य धार्मिक प्रतीकों का सहारा लिया, वह भी महंगा पड़ा. आज के जवान होते हिंदुस्तान में बुनियादी समस्याओं के सामने मंदिर जैसे मुद्दे हाशिए पर जा चुके हैं. पार्टी को लोकसभा चुनाव के पहले अपने काम का ठोस नजराना पेश करना होगा. निजी निंदा और चिल्ला चिल्ला कर गाल बजाने से लोग अब चिढ़ने लगे हैं.

दूसरी ओर कांग्रेस के लिए छत्तीसगढ़ को छोड़कर दोनों  राज्यों में कलेजे की फांस की तरह नतीजे आए हैं. पंद्रह साल में पार्टी ने एक तरह से लड़ना छोड़ दिया था, संगठन बिखर गया था और इन परिणामों ने उसके लिए संजीवनी का काम किया है. राजस्थान और मध्य प्रदेश में शिखर नेताओं का आपसी घमासान अभी थमा नहीं है. 

अगर लोकसभा चुनाव से पहले अंदरूनी लड़ाई नहीं थमी तो गंभीर परिणाम हो सकते हैं. कांग्रेस में अगर किसी की जीत कहा जाए तो वह राहुल गांधी की है. पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद वे इस लिटमस टेस्ट में खरे उतरे हैं. उनकी यह सफलता लोकसभा चुनाव में बड़ी भूमिका निभाने में मददगार होगी. जो दल उन्हें प्रधानमंत्नी के लिए संभावित प्रत्याशी मानने से ङिाझक रहे थे, अब वे बगलें झांक रहे हैं. 

Web Title: assembly election 2018: Serial message emerging from 'semi-final' for bjp

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