युद्ध को व्यापार बनाते हथियार निर्माता?, 2020-25 के बीच भारत ने 350 अरब डॉलर किए खर्च

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 23, 2025 05:33 IST2025-05-23T05:32:41+5:302025-05-23T05:33:09+5:30

ड्रोन के जवाब में ड्रोन और मिसाइल के जवाब में मिसाइल के जरिये यह युद्ध शांति की उम्मीद में नहीं, अगले युद्ध की तैयारी में जीता है.

Arms manufacturers turning war business India spent $350 billion on defence between 2020-25 blog Prabhu Chawla | युद्ध को व्यापार बनाते हथियार निर्माता?, 2020-25 के बीच भारत ने 350 अरब डॉलर किए खर्च

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Highlightsयुद्ध की लॉन्चिंग हैशटैग में होती है और इसमें हासिल लाभ को प्रतिशत में गिना जाता है.हमले के जवाब में शुरू हुए ऑपरेशन सिंदूर से साबित होता है कि युद्ध कभी खत्म नहीं होता.भारत ने रक्षा क्षेत्र में 75 अरब डॉलर आवंटित किया, जो उसके कुल बजट का 13.45 फीसदी है.

प्रभु चावला

सदियों से प्राचीन साम्राज्य युद्ध में जीत का औचित्य ठहराते आए थे. लेकिन बीसवीं सदी में युद्ध व्यापार बन गए. औद्योगिक संभ्रांत इसे युद्धभूमि से हटाकर बोर्डरूम तक ले आए. आधुनिक डीप स्टेट दरअसल युद्ध करने वाले प्राचीन साम्राज्यों के ही उत्तराधिकारी हैं. इनके युद्धक्षेत्र ही इनकी अर्थव्यवस्था हैं. शीतयुद्ध में जन्मा और आतंक के खिलाफ जंग में परिपक्व हुआ युद्ध अब डिजिटल दौर में फल-फूल रहा है. ड्रोन के जवाब में ड्रोन और मिसाइल के जवाब में मिसाइल के जरिये यह युद्ध शांति की उम्मीद में नहीं, अगले युद्ध की तैयारी में जीता है.

युद्ध की लॉन्चिंग हैशटैग में होती है और इसमें हासिल लाभ को प्रतिशत में गिना जाता है. इन सबके बीच भारत ऐतिहासिक दोराहे पर खड़ा है. यह आर्थिक रूप से निरंतर आगे बढ़ रहा है, इसके वैश्विक असर से भी इन्कार नहीं किया जा सकता और इसका समाज शांति और समृद्धि का इच्छुक है. लेकिन पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में शुरू हुए ऑपरेशन सिंदूर से साबित होता है कि युद्ध कभी खत्म नहीं होता.

आगे बढ़ता, गर्वोन्नत और अपनी सुरक्षा खुद करने में सक्षम भारत फिलहाल युद्धतंत्र में फंसा हुआ है.  ध्यान रखें कि भारत के लिए युद्ध कभी विकल्प नहीं रहा. इसके बजाय विफल पड़ोसी द्वारा हर बार इस पर युद्ध थोप दिया जाता रहा है, जिसका वह मुंहतोड़ जवाब देता है. इस साल भारत ने रक्षा क्षेत्र में 75 अरब डॉलर आवंटित किया, जो उसके कुल बजट का 13.45 फीसदी है.

कुछ लोगों का यह तर्क स्वाभाविक है कि जब सीमापार आतंकवाद का खतरा बना हुआ है, तब रक्षा बजट में वृद्धि जरूरी है. पहलगाम हमले के जवाब में भारत ने जब सीमापार के आतंकी ठिकानों पर ड्रोन और मिसाइलों से सटीक हमले किए, तो बाजार ने तत्काल उसका संज्ञान लिया. तेरह मई को निफ्टी डिफेंस इंडेक्स में 4.32 प्रतिशत की वृद्धि हुई और ड्रोन निर्माता आइडियाफोर्ज के शेयर 20 फीसदी बढ़ गए.

शहीदों के खून सूखने से पहले ही निवेशकों के पोर्टफोलियो चमकने लगे थे. वर्ष 2020 से 2025 के बीच भारत ने रक्षा क्षेत्र में 350 अरब डॉलर खर्च किए, जिनमें से 15 अरब डॉलर मानवविहीन वायु रक्षा प्रणाली में खर्च किए  गए. नतीजतन भारत का राजकोषीय घाटा बढ़कर जीडीपी का 5.8 प्रतिशत हो गया. इस साल की शुरुआत में मुद्रास्फीति 6.2 प्रतिशत हो गई, जिसका असर देश के 40 करोड़ मध्यवर्ग पर पड़ा.

सीमा पर व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुआ. इस बदतर स्थिति में आने वाला भारत अकेला देश नहीं है. पाकिस्तान पहले से ही दिवालिया और विखंडित होने के कगार पर है. यूक्रेन-रूस युद्ध के लंबा खिंचने को भी डीप स्टेट के अपने हित के रूप में देखना चाहिए. वर्ष 2022 से लॉकहीड मार्टिन और रेथिअन जैसी अमेरिकी रक्षा कंपनियों को युद्ध के कारण मोटा मुनाफा हो रहा है.

डीप स्टेट युद्ध में ही फलता-फूलता है. आत्मविश्वास से भरे भारत को इसकी जरूरत नहीं है. सवाल यह नहीं है कि भारत युद्ध जीत सकता है या नहीं. मुद्दा यह है कि अपनी आत्मा को उन रक्षा कंपनियों के पास, जो भारत के दर्द से लाभ कमाते हैं, गिरवी रखे बगैर भारत शांति की दिशा में काम कर सकता है या नहीं.

डीप स्टेट की रक्षा कंपनियों का उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा कतई नहीं है. वे तो हर कीमत पर अपना और अपने निवेशकों का मुनाफा बढ़ते हुए देखना चाहती हैं. डीप स्टेट के छद्म रणनीतिकारों को इसकी परवाह नहीं कि कौन युद्ध जीतेगा. उनका लक्ष्य यह है कि युद्ध चलते रहना चाहिए.

पश्चिम एशिया में इसने सऊदी अरब और इजराइल को हथियार दिए. एशिया में ताइवान और एशिया-प्रशांत पर इनकी गिद्धदृष्टि है. भारत में भी उन्हें अवसर दिख रहा है, जहां एक ताकतवर लोकतंत्र अपने उद्दंड पड़ोसी का सामना कर रहा है. अगर कोई देश वाकई संप्रभुता का इच्छुक है, तो उसे युद्ध अर्थव्यवस्था से खुद को अलग कर लेना चाहिए.  

Web Title: Arms manufacturers turning war business India spent $350 billion on defence between 2020-25 blog Prabhu Chawla

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