अनिल जैन का ब्लॉग: बार-बार भूकंप, पृथ्वी मनुष्य से खुश नहीं है!

By अनिल जैन | Published: June 17, 2020 09:08 AM2020-06-17T09:08:23+5:302021-02-26T15:37:01+5:30

भूकंप को लेकर वैज्ञानिक निष्कर्ष जो भी हों, यह तो तय है कि भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं हमें यह याद दिलाने नहीं आती हैं कि हम अब तक प्रकृति पर पूरी तरह विजय नहीं पा सके हैं.

Anil Jain's Blog: Frequent Earthquakes, Earth Is Not Happy with Man! | अनिल जैन का ब्लॉग: बार-बार भूकंप, पृथ्वी मनुष्य से खुश नहीं है!

भूकंप का सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो)

पिछले करीब दो महीने से भूकंप के झटकों ने देश के कई हिस्सों को भयाक्रांत कर रखा है. दरअसल, भूकंप ऐसी प्राकृतिक आपदा है जिसे न तो रोक पाना मुमकिन है, न ही उसका अचूक पूर्वानुमान लगाया जा सकता है.

भू-गर्भशास्त्रियों के मुताबिक, धरती की गहराइयों में स्थित प्लेटों के आपस में टकराने से धरती में कंपन पैदा होता है. इस कंपन या कुदरती हलचल का सिलसिला लगातार चलता रहता है. वैज्ञानिकों ने भूकंप नापने के आधुनिक उपकरणों के जरिए यह भी पता लगा लिया है कि हर साल लगभग पांच लाख भूकंप आते हैं यानी करीब हर एक मिनट में एक भूकंप.

इन पांच लाख भूकंपों में से लगभग एक लाख ऐसे होते हैं, जो धरती के अलग-अलग भागों में महसूस किए जाते हैं. राहत की बात यही है कि ज्यादातर भूकंप हानिरहित होते हैं. पृथ्वी पर जीवन रहे या नहीं रहे पर भूकंप आते रहेंगे और धरती हिलती-डुलती रहेगी.

मुमकिन है कि किसी बड़े भूकंप से पृथ्वी छिन्न-भिन्न हो जाए या उसका निजाम उलट-पुलट जाए और आज जहां पहाड़ सीना ताने खड़े हैं, कल वहां महासागर लहराने लगे. हकीकत तो यह है कि पृथ्वी आज भी हमसे खुश नहीं है.

पिछले कुछ दशकों से मनुष्य के प्रति पृथ्वी के मिजाज में बदलाव आ रहा है जिसे समूची दुनिया महसूस कर रही है. जिस पृथ्वी को बनने-संवरने में करोड़ों वर्ष लग गए, उसे हमने कुछ ही दशकों में बहुत क्षति पहुंचाई है. सच तो यह भी है कि हम पृथ्वी को समझने में नाकाम रहे हैं और कभी इसकी संजीदा कोशिश भी नहीं की है. हमारी इस लापरवाही ने ही भूकंप की आमद बढ़ाई है.    

विज्ञान की इतनी उन्नति के बाद भी मनुष्य इसी निष्कर्ष पर पहुंचने को बाध्य है कि उसका जीवन पानी के बुलबुले के समान है. भूकंप जैसी कुदरती आपदा के सामने हम बिल्कुल असहाय हैं. लेकिन मानव मस्तिष्क इतना जरूर कर सकता है कि जब भी इस तरह का कोई कहर टूटे तो हमें कम से कम नुकसान हो. इस सिलसिले में हम जापान जैसे देशों से सीख ले सकते हैं जिनके यहां भूकंप बार-बार अप्रिय अतिथि की तरह आ धमकता है.  

भूकंप को लेकर वैज्ञानिक निष्कर्ष जो भी हों, यह तो तय है कि भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं हमें यह याद दिलाने नहीं आती हैं कि हम अब तक प्रकृति पर पूरी तरह विजय नहीं पा सके हैं. वैसे भी, प्रकृति को इतनी फुर्सत कहां कि वह हमारे ज्ञान और भौतिक क्षमता की थाह लेती रहे.

प्रकृति दरअसल चाहती क्या है, यह एक ऐसा रहस्य है जिसका भेद शायद कभी नहीं खुलेगा और खुल भी गया तो मनुष्य के लिए करने को ज्यादा कुछ नहीं रहेगा. क्योंकि हम प्रकृति के नियमों को जानकर उनका आनंद ही उठा सकते हैं, प्रकृति के निजाम में कोई बड़ा दखल नहीं दे सकते.
 

Web Title: Anil Jain's Blog: Frequent Earthquakes, Earth Is Not Happy with Man!

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