अमिताभ श्रीवास्तव का ब्लॉग: कोरोना काल में चिकित्सा सुविधाओं की परीक्षा देता मराठवाड़ा
By अमिताभ श्रीवास्तव | Published: September 17, 2020 02:57 PM2020-09-17T14:57:33+5:302020-09-17T14:57:33+5:30
राजनीतिक दलों के कुछ नेताओं और कुछ लोग क्षमता-संसाधनों के दम पर मुंबई-पुणे तक गए तथा स्वस्थ होकर लौटे किंतु मराठवाड़ा की चिकित्सा क्षमता की कमी-कमजोरी पर कोई सवाल नहीं उठाया गया.
विश्वव्यापी महामारी कोरोना के बीच 72 साल पहले निजाम की रियासत से स्वतंत्र हुआ मराठवाड़ा आज अपनी आजादी की सालगिरह मना रहा है. महाराष्ट्र में पिछड़े इलाके के रूप में पहचान रखने वाला यह क्षेत्र आने वाले कुछ ही दिनों में कोरोना संक्रमण में कुल मरीज संख्या का आंकड़ा एक लाख को छूने के लिए अग्रसर है.
इस सब के बावजूद कोरोना की मृत्यु दर तीन फीसदी से नीचे है और ठीक होने की दर सत्तर फीसदी से अस्सी फीसदी के बीच चल रही है. यह साबित करता है कि संसाधनों और आर्थिक दृष्टि से पिछड़ेपन के बावजूद वैैश्विक संकट से निपटने में मराठवाड़ा ने सफलता पाई है.
यूं देखा जाए तो मराठवाड़ा में चार सरकारी चिकित्सा महाविद्यालय हैं. इसके अलावा निजी और आयुव्रेदिक और होमियोपैथी जैसी अन्य चिकित्सा विधाओं के महाविद्यालय हैं. बावजूद इसके सरकारी तंत्र अपनी पूर्ण क्षमता ही नहीं, जीवटता का परिचय देते हुए मराठवाड़ा की जनता को मुंबई और पुणे की राह पर भटकने के लिए मजबूर नहीं कर रहा है.
हालांकि राजनीतिक दलों के कुछ नेताओं और कुछ लोग क्षमता-संसाधनों के दम पर मुंबई-पुणे तक गए तथा स्वस्थ होकर लौटे किंतु मराठवाड़ा की चिकित्सा क्षमता की कमी-कमजोरी पर कोई सवाल नहीं उठाया गया.
केंद्रीय दल से लेकर राज्य स्तरीय दल भी आए, मगर वे भी खामोशी के साथ लौटे ही नहीं बल्कि कुछ सीख यहां से भी लेकर गए. साफ है कि यह पिछड़ा क्षेत्र चिकित्सा जगत की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हो चुका है. यह केवल अपने आठ जिले ही नहीं, बल्कि खान्देश, विदर्भ और उत्तर महाराष्ट्र के कुछ जिलों की आवश्यकता को पूरा करने में सक्षम हो चुका है. यह बात कालांतर में भी साबित हो चुकी है, अभी तो सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर की परीक्षा हो रही है.
शायद कभी इसी आत्मविश्वास के चलते मराठवाड़ा की राजधानी औरंगाबाद को चिकित्सा पर्यटन का केंद्र बनाने की संकल्पना पर भी विचार हो रहा था. संभव है कि ताजा परीक्षा की सफलता के बाद आने वाले समय में शायद उसे मान्यता भी मिले.
दरअसल मराठवाड़ा की इस उपलब्धि का जिक्र मराठवाड़ा मुक्ति संग्राम दिवस पर इसलिए भी जरूरी हो जाता है कि क्योंकि क्षेत्र के पिछड़ेपन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है. करीब सवा दो सौ साल निजाम के क्षेत्र और उससे पहले मुगल शासकों के अधीन रहने वाले इस मराठी क्षेत्र ने हमेशा ही दूजा भाव का सामना किया है.
अतीत में भी औद्योगिक, आर्थिक तथा आवागमन के संसाधनों के विकास से इस क्षेत्र को दूर रखा गया. लिहाजा आय का प्रमुख स्नेत कृषि ही रही, जिसकी मूल जरूरत पानी थी. वह भी शुष्क और पठारी क्षेत्र होने के कारण काफी कम मात्र में था. इसलिए विकास की उम्मीद पहले निजाम से स्वतंत्र होने के बाद और फिर महाराष्ट्र के गठन के साथ जागी.
किंतु सही उम्मीदों को पूरा होने में बीस साल का समय लगा और अस्सी के दशक से सही विस्तार हुआ, जिसमें उद्योग भी आए और शिक्षा क्षेत्र भी बढ़ा. चिकित्सा के लिए भी नई सोच तैयार हुई और आवागमन के संसाधनों के सुधार पर भी विचार हुआ. उस शुरुआत के चालीस साल बीत जाने के बाद आज जब पूरा समाज संकट में है तो उसमें चिकित्सा क्षेत्र को मिल रही सफलता मराठवाड़ा की एक सुखद कहानी लिख रही है.
हालांकि जनसंख्या के अनुपात में संसाधनों के मामलों में अभी काफी गुंजाइश नजर आती है. एक गैर सरकारी संगठन की रिपोर्ट कहती है कि मराठवाड़ा में अभी 2130 स्वास्थ्य केंद्र हैं, जबकि आवश्यकता 2773 की है. इसी दृष्टि में बीड़ और उस्मानाबाद स्वास्थ्य केंद्रों की तुलना में राज्य में सबसे अधिक पिछड़े हुए हैं.
मगर वहां अब केवल 25 फीसदी की कमी नजर आती है. इस लिहाज से मराठवाड़ा के पिछड़े जिले भी स्वास्थ्य की दृष्टि से मजबूत होने की दिशा में हैं और उन्हें सहयोग करने के लिए नांदेड़, लातूर और औरंगाबाद हैं.
आज जब पांच फीसदी से कम आर्थिक खर्च के आधार पर मराठवाड़ा जैसे इलाके ने दुनिया की सबसे बड़ी बीमारी को संभाल लिया है, तो यदि उस पर और अधिक खर्च किया जाए तो शायद वह राज्य में चिकित्सा पर्यटन का न केवल बड़ा केंद्र बन सकता है, बल्कि उसकी राजधानी औरंगाबाद को पर्यटन राजधानी की बजाय चिकित्सा की राजधानी के रूप में पहचान अवश्य ही दिलाई जा सकती है.
पर्यटन राजधानी अवश्य ही किसी पुरातन पृष्ठभूमि के आधार पर निर्धारित की जा सकती है, लेकिन चिकित्सा राजधानी का दर्जा तो अनुभव के आधार पर मिल ही सकता है. वर्तमान अनुभव बहुत कुछ कहता है. मराठवाड़ा मुक्ति संग्राम दिवस पर यह सोचना लाजिमी है और उद्योगों के अलावा चिकित्सा और आगे शिक्षा को बढ़ावा देना जरूरी है. तभी यह क्षेत्र राज्य ही नहीं बल्कि देश का महत्वपूर्ण केंद्र बनकर उभर सकता है और अपने दामन पर लगे सभी पुराने दाग मिटा सकता है.