अमित शाह का फरमान, सीमाई क्षेत्र में कोई अवैध धार्मिक इमारत ना बचे  

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 26, 2025 14:00 IST2025-10-26T13:59:25+5:302025-10-26T14:00:22+5:30

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सीमावर्ती जिला कलेक्टरों को निर्देश दिया है कि अंतर्राष्ट्रीय सीमा के 30 किलोमीटर के दायरे में सभी अवैध धार्मिक अतिक्रमणों को हटा दिया जाए।

Amit Shah's order no illegal religious building should remain border area All illegal religious encroachments 30 kilometres international border removed blog Vikram Upadhyay | अमित शाह का फरमान, सीमाई क्षेत्र में कोई अवैध धार्मिक इमारत ना बचे  

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Highlightsतेजी से अवैध धार्मिक ढाँचों का निर्माण पिछले 2 दशक में हुए हैं।कभी कश्मीर में सूफी इस्लाम के मानने वालों कि बहुतायत थी।उग्रवादी-कट्टरपंथी संगठनों ने घुसपैठ किया और वहाँ वहाबीवाद को बढ़ावा दिया।

विक्रम उपाध्याय

देश के सरहदी इलाकों को सुरक्षा की दृष्टि से चाक चौबंद करने का एक बड़ा अभियान गृह मंत्रालय से शुरू किया है। पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार से लगातार घुसपैठ को रोकने और अपनी सीमा में उन्हें किसी तरह की पनाह देने पर रोक के लिए तय किया गया है कि सभी सीमाई क्षेत्रों में बने मजहबी इमारतों की गहनता से जांच जी जाए, और अवैध इमारतों को तुरंत ध्वस्त किया जाए। ऑपरेशन सिंदूर 2 अभी भी जारी है और दुश्मन देश की कोशिश है कि भारत के भीतर अपने प्रशिक्षित लोगों को प्रत्यारोपित कर दिया जाए।

इसे देखते हुए हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सीमावर्ती जिला कलेक्टरों को निर्देश दिया है कि अंतर्राष्ट्रीय सीमा के 30 किलोमीटर के दायरे में सभी अवैध धार्मिक अतिक्रमणों को हटा दिया जाए।केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रदेशों को भेजे अपने निर्देश में कहा है कि अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगे अपने अपने क्षेत्रों में यह सुनिश्चित करें कि वहाँ कोई भी अवैध धार्मिक ढांचे का नया निर्माण हो और ना पहले से बने अवैध धार्मिक स्थलों का कोई वजूद बचे। यदि कोई भी अवैध निर्माण बाकी है तो उनको तुरंत ध्वस्त किया जाए।

मकसद साफ है कि कोई भी घुसपैठिया यहाँ आकर छुप ना पाए, और हमारी ही जमीन से आतंकवादी कारवाई कर सके। भारत की खुफिया एजेंसियों ने यह निशानदेही की है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से सटे भारत की सीमाओं में तेजी से अवैध धार्मिक ढाँचों का निर्माण पिछले 2 दशक में हुए हैं।

इन धार्मिक स्थलों का उपयोग नया सिर्फ घुसपैठ के लिए हो रहा है, बल्कि यहाँ कई बार देश के खिलाफ षड्यंत्र के मामले भी पकड़े गए हैं। जम्मू कश्मीर में यह कई बार देखा जा चुका है कि आतंकवादी कार्रवाइयों में संलिप्त लोगों को अवैध धार्मिक स्थलों ने सहायता पहुंचाई थी। यह सभी जानते हैं कि कभी कश्मीर में सूफी इस्लाम के मानने वालों कि बहुतायत थी,

लेकिन 1990 के दशक में बाहरी उग्रवादी-कट्टरपंथी संगठनों ने घुसपैठ किया और वहाँ वहाबीवाद को बढ़ावा दिया। एक समय के अंतराल में कश्मीर में सलाफी मस्जिदों की बाढ़ आ गई और फिर उसके जरिए जिहाद का दौर शुरू किया गया। आतंकवादी संगठन अपना विस्तार इन मस्जिदों के जरिए करने लगे। वे कट्टरपंथ का प्रचार मस्जिदों के जरिए करने लगे।

मस्जिदों से जिहाद करने वालों को जन्नत नसीब होने का पाठ पढ़ाया गया। कट्टरपंथी विचारधारा फैलाने के लिए इन मस्जिदों को विदेशों से भी खूब धन प्राप्त हुआ। हालांकि केंद्र में मोदी सरकार के आने के तुरंत बाद ही कट्टरपंथ और वैचारिक कट्टरता में संलिप्त मदरसों, स्कूलों और धार्मिक संस्थानों पर निगरानी बढ़ा दी गई थी, लेकिन अब उनको जड़ से मीटने का अभियान शुरू किया गया है।

अंतर्राष्ट्रीय सीमा से 30 किलोमीटर के भीतर सभी अवैध संस्थानों और धार्मिक इमारतों को ध्वस्त करने का फैसला किया गया है। गृह मंत्रालय ने जिन राज्यों को अवैध धार्मिक इमारतों के धवस्तिकरण का निर्देश दिया है, उनमें गुजरात, राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख शामिल है।

इन राज्य की सरकारों को इस आदेश पर तत्काल कार्रवाई करने के लिए कहा गया है। गृह मंत्रालय का मानना है कि सीमावर्ती क्षेत्रों को अतिक्रमण और अवैध निर्माण से बचाए बिना, समग्र सुरक्षा रणनीति पर पूर्णता से पालन नहीं किया जा सकता है, क्योंकि घुसपैठ के कारण सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय संतुलन तेजी से बदल रहा है और देश की सीमा को खतरा उत्पन्न हो रहा है।

गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि सीमा पर बाहरी लोगों को अवैध तरीके से बसाना एक सामान्य राजनीतिक और भौगोलिक कारण नहीं है, बल्कि यह एक आतंरराष्ट्रीय षड्यंत्र का हिस्सा है। भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से अपने संबोधन में, प्रधानमंत्री मोदी ने भी यह चेतावनी देते हुए कहा भी था कि देश की जनसांख्यिकी को एक पूर्व-नियोजित साजिश के तहत जानबूझकर बदला जा रहा है।

केवल कश्मीर में ही नहीं नेपाल की सीमा से लगे बिहार और उत्तरप्रदेश के सीमाई इलाकों में भी में बड़े पैमाने पर अवैध मस्जिदों और मदरसों का निर्माण कराया गया है। 2024 में एक विशेष जाँच दल (SIT) ने अपनी रिपोर्ट में यह दावा किया है कि नेपाल से सटे सीमावर्ती क्षेत्रों में लगभग 13,000 ऐसे गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे चल रहे थे, जो अवैध तरीके से विदेशी धन प्राप्त कर रहे थे।

इन पर आतंकवाद और अन्य भारत विरोधी गतिविधियों में  सम्मिलित होने का भी संदेह था। इसी तरह बिहार के भी अनियमित मदरसों में खाड़ी देशों से हवाला जरिए धन आ रहा था। इन मदरसों में बांग्लादेशी बच्चे भी पाए गए थे। असम में भी ऐसी ही शिकायतें मिल रही थीं, जिसके बाद असम सरकार ने मदरसों को सामान्य स्कूलों में बदलने का फैसला किया।

आतंकवादी संबंधों की जाँच के लिए निजी मदरसों का ऑडिट भी किया। गृह मंत्रालय ने यह भी तसदीक किया कि कुछ मदरसों में अल-कायदा से जुड़े आतंकी मॉड्यूल का प्रभाव था और वहाँ से भड़काने वाली सामग्री भी प्राप्त किया गया। गृह मंत्रालय ने एक विस्फोट मामले की जाँच के दौरान पाया कि अवैध बांग्लादेशियों के नियंत्रण वाले कुछ मदरसे धार्मिक चरमपंथ का प्रचार कर रहे हैं। 

गृह मंत्रालय ने अपनी जांच में यह भी पाया है कि जिन सीमावर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ लगातार होते रहे हैं, उन क्षेत्रों के मूल निवासी पलायन के लिए मजबूर कर दिए गए, क्योंकि बाहरी लोगों ने अपनी संख्या के बल पर स्थानीय लोगों का उत्पीड़न शुरू कर दिया था। उनकी जमीनों पर कब्जा कर लिया था और उनकी बहु बेटियों के साथ अभद्रता शुरू कर दी थी।  

गृह मंत्री स्वयं इन कई क्षेत्रों का दौरा किया और स्थानीय निवासियों को प्रश्रय देने और उनका संरक्षण करने के लिए जीवंत गाँव कार्यक्रम की शुरुआत की। जिसका सफल क्रियान्वयन अरुणाचल प्रदेश में किया गया। अब केंद्र सरकार 6,839 करोड़ खर्च कर जीवंत ग्राम कार्यक्रम असम, बिहार, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के चुनिंदा रणनीतिक गाँवों में भी चलाने जा रही है।

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