आलोक मेहता का ब्लॉग: तांगे, साइकिल रिक्शावालों की परेशानी को भी समझो

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 15, 2020 12:43 PM2020-07-15T12:43:04+5:302020-07-15T12:43:04+5:30

भारत देश में हजारों वर्षो से पशु-पक्षियों को धार्मिक मान्यताओं के आधार तथा निजी-सार्वजनिक जीवन में उपयोगिता के कारण बहुत सेवा-प्यार के साथ रखा जाता रहा है.

Alok Mehta's blog over Corona lockdown: Understand the problems of legs, bicycle rickshawmen | आलोक मेहता का ब्लॉग: तांगे, साइकिल रिक्शावालों की परेशानी को भी समझो

कोरोना संकट काल में ट्रक, टैम्पो, बस तक नहीं होने की स्थितियों में इनसे सामान्य लोगों को बहुत सहायता मिली.

आलोक मेहता

दिल्ली उच्च न्यायालय में पेटा इंडिया (पशु अधिकार संगठन) की एक याचिका विचाराधीन है, जिसमें कहा गया है कि दिल्ली के कुछ इलाकों में अब भी चल रही घोड़ा गाड़ियों पर रोक लगाने के लिए नगर निगमों को अदालती निर्देश दिए जाएं. याचिका के अनुसार 2010 में ही इस तरह का फैसला हो चुका, लेकिन अब भी कुछ घोड़ा गाड़ियां चल रही हैं और यह घोड़ों के साथ निर्दयता का व्यवहार है. मोटा अनुमान लगाया गया  है कि दिल्ली के विभिन्न इलाकों में करीब दो सौ घोड़ा गाड़ियां चल रही हैं. असल में ये घोड़ा गाड़ियां सब्जी, फल, छोटा-मोटा सामान और यदा-कदा गरीब लोगों को लाने ले जाने का काम कर रही हैं.

कोरोना संकट काल में ट्रक, टैम्पो, बस तक नहीं होने की स्थितियों में इनसे सामान्य लोगों को बहुत सहायता मिली. यही नहीं दिल्ली में अब भी पच्चीसों ऐसी ग्रामीण अथवा पिछड़ी बस्तियां हैं, जहां इनका लाभ सामान्य मजदूर-किसानों को मिल जाता है. सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह भी सामने आया है कि लगभग तीन महीने के लॉकडाउन वाले दिनों में केवल दिल्ली ही नहीं देश के अन्य भागों में भी घोड़ा गाड़ी-तांगेवाले, साइकिल रिक्शावाले या साइकिल से ही कामधंधा करने वालों को सरकारों से किस श्रेणी में सहायता मिले? वे न तो प्रवासी मजदूर हैं, न किसान और न उद्यमी.

भारत देश में हजारों वर्षो से पशु-पक्षियों को धार्मिक मान्यताओं के आधार तथा निजी-सार्वजनिक जीवन में उपयोगिता के कारण बहुत सेवा-प्यार के साथ रखा जाता रहा है. अब दिल्ली की पेटा का यह तर्क कितना अजीब है कि घोड़ागाड़ी चलने से घोड़ों को कड़ी सर्दी, धूप, बरसात में चलाना, सड़कों पर उनके मल-मूत्न से गंदगी होना बहुत गलत और निर्ममता है. इस एनजीओ को घोड़ों के अधिकारों की चिंता है, घोड़ा गाड़ी से परिवार का पेट पालने वालों की भूख-प्यास का कोई दर्द नहीं है.

पेट्रोल, डीजल के दाम बढ़ने पर इतना हाहाकार होता है, लेकिन प्रदूषण रोकने में सहायक घोड़ा गाड़ी, साइकिल रिक्शा वालों की मदद करने के बजाय उनके शोषण, रोजी-रोटी छीनने के प्रयास होते रहते हैं. उन्हें सड़कों पर दौड़ते कुत्ते काट लें तो दिल्ली के आम आदमी पार्टी के नेता कथित सिटी क्लिनिक में इंजेक्शन-दवाई नहीं उपलब्ध करा पाते हैं.

असल में सरकारों और अदालतों को गंभीरता से उस वर्ग पर ध्यान देकर उनके सामाजिक-आर्थिक हितों की रक्षा के लिए विचार करना चाहिए, जो आत्म सम्मान से जीना चाहते हैं और किसी सरकारी योजना में सहायता की श्रेणी में नहीं आते. पश्चिमी देशों की नकल पर संपन्न लोगों के पाखंड से सुख पाने की प्रवृत्ति के विरु द्ध भी स्वच्छ भारत की तरह अभियान चलना चाहिए. पहले समाज तो स्वच्छ और सशक्त शिक्षित हो, तभी बाहरी स्वच्छता और आत्म निर्भरता का लक्ष्य पूरा हो सकेगा.

Web Title: Alok Mehta's blog over Corona lockdown: Understand the problems of legs, bicycle rickshawmen

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे