ब्लॉग: आखिर क्यों न हो नक्सलियों से बातचीत?
By पंकज चतुर्वेदी | Updated: April 16, 2024 10:21 IST2024-04-16T10:16:50+5:302024-04-16T10:21:04+5:30
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर नक्सलियों के गढ़ दंतेवाड़ा में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने नक्सलियों से हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने की अपील करते हुए आश्वासन दिया था कि उनकी सरकार उनके साथ बातचीत के लिए तैयार है और वह हर जायज मांग को मानेगी।

फाइल फोटो
गर्मी और चुनाव की तपन शुरू हुई और नक्सलियों ने धुंआधार हमले शुरू कर दिए, हालांकि सरकार की कार्रवाई में बीते दो महीनों में 31 नक्सली मारे गए और कई बड़े नाम आत्मसमर्पण कर चुके हैं। छत्तीसगढ़ में नई सरकार बनते ही उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने दो बार मंशा जाहिर की कि सरकार बातचीत के जरिये नक्सली समस्या का निदान चाहती है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर नक्सलियों के गढ़ दंतेवाड़ा में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने नक्सलियों से हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने की अपील करते हुए आश्वासन दिया था कि उनकी सरकार उनके साथ बातचीत के लिए तैयार है और वह हर जायज मांग को मानेगी।
इसके बाद 21 मार्च को दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता विकल्प ने पत्र जारी कर कहा कि हम सरकार से बातचीत को तैयार हैं लेकिन सरकार पहले हमारी शर्तों को माने। शर्तों में सुरक्षा बलों के हमले बंद करने, गरीब आदिवासियों को झूठे मामलों में फंसाने से रोकने जैसी बातें हैं।
समझना होगा कि नक्सली कई कारणों से दबाव में हैं। सरकार की स्थानीय आदिवासियों को फोर्स में भर्ती करने की योजना भी कारगर रही है। एक तो स्थानीय लोगों को रोजगार मिला, दूसरा, स्थनीय जंगल के जानकार जब सुरक्षा बलों से जुड़े तो अबुझमाड़ का रास्ता इतना अबूझ नहीं रहा। तीसरा, जब स्थानीय जवान नक्सली के हाथों मारा गया और उसकी लाश गांव-टोले में पहुंची तो ग्रामीणें का रोष नक्सलियों पर बढ़ा।
एक बात जान लें कि दंडकारण्य में नक्सलवाद महज फैंटेसी, गुंडागर्दी या फैशन नहीं है। वहां खनिज और विकास के लिए जंगल उजाड़ने व पारंपरिक जनजाति संस्कारों पर खतरे तो हैं और नक्सली अनपढ़- गरीब आदिवासियों में यह भरोसा भरने में समर्थ रहे हैं कि उनके अस्तित्व को बचाने की लड़ाई के लिए ही उन्होंने हथियार उठाए हैं।
बस्तर में लाल-आतंक का इतिहास महज चालीस साल पुराना है। बीते बीस सालों में यहां लगभग 15 हजार लोग मारे गए जिनमें 3500 से अधिक सुरक्षा बल के लोग हैं। बस्तर से सटे महाराष्ट्र, तेलंगाना, ओडिशा, झारखंड और मध्यप्रदेश में इनका सशक्त नेटवर्क है।
नक्सली कमजोर तो हुए हैं लेकिन अपनी हिंसा से बाज नहीं आ रहे। कई बार वे अपने अशक्त होते हालात पर पर्दा डालने के लिए कुछ न कुछ ऐसा करते हैं जिससे उनका आतंक कायम रहे। याद करें 21 अक्तूबर 2016 को न्यायमूर्ति मदन लोकुर और ए.के. गोयल की पीठ ने फर्जी मुठभेड़ के मामले में राज्य सरकार के वकील को सख्त आदेश दिया था कि पुलिस कार्रवाई तात्कालिक राहत तो है लेकिन स्थाई समाधान के लिए राज्य सरकार को नगालैंड व मिजोरम में आतंकवादियों से बातचीत की ही तरह बस्तर में भी बातचीत कर हिंसा का स्थाई हल निकालना चाहिए।