अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: अंतरिक्ष की चुनौतियों का जवाब देने का आ गया है वक्त

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 28, 2019 08:08 PM2019-07-28T20:08:42+5:302019-07-28T20:08:42+5:30

भारत की पहली स्पेस वॉर एक्सरसाइज कहा जा रहा है जिसे दो दिन यानी 25 और 26 जुलाई को थलसेना, नौसेना और एयरफोर्स ने हमारे वैज्ञानिकों के साथ मिलकर अंजाम देने की योजना पर काम किया, पर इस साल इसकी एक ठोस रूपरेखा तब सामने आई थी, जब प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने अंतरिक्ष युद्ध में भारत द्वारा हासिल एक अहम उपलब्धि का ऐलान किया था.

Abhishek Kumar Singh's Blog: Time to Answer the Challenges of Space | अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: अंतरिक्ष की चुनौतियों का जवाब देने का आ गया है वक्त

अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: अंतरिक्ष की चुनौतियों का जवाब देने का आ गया है वक्त

ह मारे देश के लिए अंतरिक्ष तेजी से बदल रहा है. बदलाव स्पेस में भारत की बढ़ती ताकत के संबंध में है. हमारी स्पेस एजेंसी इसरो ने चंद्रयान-2 को पृथ्वी के निकटतम अंतरिक्षीय पड़ोसी चंद्रमा की नजदीकी खोजबीन के लिए 22 जुलाई, 2019 को कामयाबी के साथ प्रक्षेपित किया है. उम्मीद है कि 48 दिन के सफर के बाद यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतर जाएगा और वहां से पूरी दुनिया को झंकृत करने वाली नई सूचनाएं भेजेगा. पर इस बीच देश में अंतरिक्ष को लेकर एक नई तैयारी दिख रही है. यह तैयारी अंतरिक्ष में लड़ी जाने वाली जंग के संबंध में है.

यूं इसे भारत की पहली स्पेस वॉर एक्सरसाइज कहा जा रहा है जिसे दो दिन यानी 25 और 26 जुलाई को थलसेना, नौसेना और एयरफोर्स ने हमारे वैज्ञानिकों के साथ मिलकर अंजाम देने की योजना पर काम किया, पर इस साल इसकी एक ठोस रूपरेखा तब सामने आई थी, जब प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने अंतरिक्ष युद्ध में भारत द्वारा हासिल एक अहम उपलब्धि का ऐलान किया था. उन्होंने देश को दिए अपने संबोधन में बताया था कि किस तरह भारतीय वैज्ञानिकों ने 300 किमी दूर अंतरिक्ष में तैनात एक लाइव सैटेलाइट को देश में बनी मिसाइल ए-सैट से मार गिराया.

इसे मिशन शक्ति नाम दिया गया. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि यह परीक्षण किसी भी तरह के अंतर्राष्ट्रीय कानून या संधि-समझौते का उल्लंघन नहीं करता है. इससे भारत की गिनती अमेरिका, रूस और चीन के साथ चौथे ऐसे राष्ट्र के रूप में होने लगी जिनके पास अंतरिक्ष में सैटेलाइट मार गिराने की क्षमता है. पर अब सीधे-सीधे अंतरिक्ष युद्ध की एक्सरसाइज करने से इसका अहसास हो रहा है कि आने वाले वक्त में अंतरिक्ष में चुनौतियां कितनी बढ़ने वाली हैं और इसकी तैयारियों के मामले में हम कहां हैं.

यहां एक अहम सवाल यह है कि अंतरिक्ष युद्ध का खतरा कितना वास्तविक है क्योंकि ऊपरी तौर पर स्पेस वॉर का विचार काफी फिल्मी लगता है. अंतरिक्ष में जंग को सनसनी फैलाने वाला विषय मानकर काफी अरसे से टेलीविजन पर स्टार वॉर्स जैसे धारावाहिकों और हॉलीवुड की फिल्मों के जरिए दुनिया भर में दिखाया जाता रहा है. पर असल में यह मुद्दा एक बड़ी चुनौती है.

तीन देश अमेरिका, रूस और चीन इस मामले में काफी सक्रि यता से काम कर रहे हैं. दावा किया जाता है कि अमेरिका और रूस ने 1950 के दशक में ही एंटी-सैटेलाइट हथियार बनाने शुरू कर दिए थे. इसके कुछ उदाहरण वर्ष 2008 और 2007 में मिले थे. उस समय अमेरिका ने अंतरिक्ष से बेकाबू होकर गिर रहे अपने जासूसी उपग्रह को एक इंटरसेप्टर मिसाइल से मार गिराया था. तब रूस समेत दुनिया के कई मुल्कों ने कहा था कि वह सैटेलाइट को स्पेस में नष्ट करके अंतरिक्ष में आजमाए जाने वाले जंगी हथियारों (स्पेस वैपंस) का परीक्षण करना चाहता था. 

बहरहाल, जहां तक भावी युद्धों के लिए खुद को तैयार करने का सवाल है तो भारत इस मोर्चे पर काफी कुछ कर रहा है. इस सिलसिले में पिछले साल रक्षा मंत्नालय ने ‘टेक्नोलॉजी पर्सपेक्टिव एंड कैपेबिलिटी रोडमैप-2018’ नाम से एक रोडमैप पेश किया था, जिसमें कहा गया था कि भारतीय सेनाओं को हाई एनर्जी और ताकतवर माइक्रोवेव्स एनर्जी से लैस डायरेक्टेड एनर्जी वेपंस भी चाहिए जो सिर्फ जमीन पर मौजूद दुश्मन के ठिकानों को ही नष्ट न करें, बल्कि अंतरिक्ष में मौजूद दुश्मन सैटेलाइटों को भी तबाह कर सकें. कोई संदेह नहीं कि इसमें हमारे राजनीतिक नेतृत्व की सक्रियता दिख रही है और वैज्ञानिक समुदाय का भरपूर साथ मिल रहा है.

Web Title: Abhishek Kumar Singh's Blog: Time to Answer the Challenges of Space

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