अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: मौत का कुआं क्यों बनते जा रहे हैं बोरवेल

By अभिषेक कुमार सिंह | Published: November 7, 2019 11:37 AM2019-11-07T11:37:50+5:302019-11-07T11:37:50+5:30

पूछा जा सकता है कि जो देश चांद और उसके आगे मंगल ग्रह तक अपनी पहुंच की कामयाबी का जश्न मनाता है, वह इसी पृथ्वी पर कुछ सौ फुट की गहराई वाले बोरवेलों से बच्चों को जिंदा निकालने में नाकाम क्यों रहता है.

Abhishek Kumar Singh blog: Why are borewells becoming Death well | अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: मौत का कुआं क्यों बनते जा रहे हैं बोरवेल

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

तमिलनाडु के त्रिची शहर के नाडुकाटुपत्ती गांव में बोरवेल में गिरे 2 साल के सुजीत विल्सन को चार दिन की तमाम कोशिशों के बावजूद जीवित नहीं बचाया जा सका. पुलिस, अग्निशमन विभाग से लेकर स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (एसडीआरएफ) और राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) की टीमों ने सुजीत को बचाने की हर मुमकिन कोशिश की, लेकिन 30 अक्तूबर 2019 को सुजीत का शव आखिरकार तब निकाला जा सका, जब उससे दुर्गंध आने लगी थी.

इसी साल जून में पंजाब के संगरूर स्थित गांव भगवानपुरा में 150 फुट गहरे बोरवेल में गिरे 3 साल के फतेहवीर सिंह को भी बचाया नहीं जा सका था. पूछा जा सकता है कि जो देश चांद और उसके आगे मंगल ग्रह तक अपनी पहुंच की कामयाबी का जश्न मनाता है, वह इसी पृथ्वी पर कुछ सौ फुट की गहराई वाले बोरवेलों से बच्चों को जिंदा निकालने में नाकाम क्यों रहता है. यही नहीं, ये बोरवेल आखिर खुले क्यों रहते हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट तक ऐसे बोरवेल बंद करने और उनकी पर्याप्त देखरेख के हुक्म दे चुका है.

हरियाणा में कुरुक्षेत्र के हल्दाहेडी गांव में 21 जुलाई 2006 को पांच वर्षीय प्रिंस के 50 फुट गहरे बोरवेल में गिरने के बाद उस दौरान देश में सक्रि य हुए न्यूज टीवी चैनलों ने रेस्क्यू ऑपरेशन के दृश्य लाइव दिखाए थे, जिससे पूरी दुनिया का ध्यान ऐसे हादसों की ओर गया था. उसी दौरान यह उम्मीद भी जताई गई थी कि भविष्य में फिर कभी देश में ऐसे हादसे सामने नहीं आएंगे. लेकिन नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2014 में देश में जहां बोरवेल में गिरने वाले बच्चों की संख्या 48 थी, वहींं 2015 में यह तादाद बढ़कर 71 हो गई. तमिलनाडु के बारे में तो 2014 में एक तथ्यान्वेषी (फैक्ट फाइंडिंग) टीम ने गृह मंत्रालय को सूचित किया था कि इस राज्य में 2010 से 2012 के बीच 561 बच्चे बोरवेल में गिरे थे.

हादसों को देखते हुए 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश में बोरवेल के रखरखाव संबंधी दिशानिर्देश जारी किए थे. इन निर्देशों में कहा गया था कि खुले बोरवेल के चारों तरफ तार अथवा किसी अन्य जरिये से एक बाड़ अवश्य बनाई जाए, वहां चेतावनी के संकेत चस्पां किए जाएं, इस्तेमाल में नहीं आ रहे बोरवेल पर लोहे के ढक्कन लगाए जाएं और उन्हें मिट्टी भरकर बंद किया जाए. अदालत ने ये निर्देश सभी राज्य सरकारों के पास पहुंचाने और उनका पालन सुनिश्चित करने को भी कहा था.

अदालत ने कहा था अगर किसी वजह से किसी बोरवेल का इस्तेमाल बंद किया जाता है, तो जिलाधिकारी अथवा खंड विकास अधिकारी से उसे बंद करने का सर्टिफिकेट लिया जाए. पर लगातार हो रहे हादसे बताते हैं कि इन दिशानिर्देशों की अवहेलना हो रही है.

Web Title: Abhishek Kumar Singh blog: Why are borewells becoming Death well

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