अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: आम जनता क्या करेगी इस वृद्धि दर का?

By अभय कुमार दुबे | Published: December 8, 2021 08:32 AM2021-12-08T08:32:06+5:302021-12-08T10:57:15+5:30

अमेरिकी लोकतंत्र के शीर्ष नेतृत्व की इन बेबाक प्राथमिकताओं के मुकाबले अगर हम भारत में चल रही आर्थिक बहस पर नजर डालें तो पता चलता है कि हमारे नेतृत्व की प्राथमिकताएं कुछ अलग तरह की हैं.

Abhay Kumar Dubey blog: What will general public do with growth rate? | अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: आम जनता क्या करेगी इस वृद्धि दर का?

अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: आम जनता क्या करेगी इस वृद्धि दर का?

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन उन नेताओं की श्रेणी में नहीं आते जिन्हें गरीबों का रहनुमा माना जाता है या जो स्वयं को इस प्रकार का दिखाना चाहते हैं. लेकिन बिना इस चक्कर में पड़े वे तीन आर्थिक लक्ष्यों को भेदना चाहते हैं—दाम घटें, बाजार में जरूरत की चीजों की सप्लाई कम न हो और बेरोजगारी में कमी आए. 

अमेरिकी लोकतंत्र के शीर्ष नेतृत्व की इन बेबाक प्राथमिकताओं के मुकाबले अगर हम भारत में चल रही आर्थिक बहस पर नजर डालें तो पता चलता है कि हमारे नेतृत्व की प्राथमिकताएं कुछ अलग तरह की हैं. मसलन, हमारे यहां चर्चा इस बात की ज्यादा है कि 2020-21 की दूसरी तिमाही में हमारी वृद्धि दर 8.4 फीसदी हो गई है. 

कहना न होगा कि यह आंकड़ा आकर्षक है और उम्मीद जताता है. यहां साफ कर देना जरूरी है कि अगर भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड से पहले के स्तर तक पहुंचती है तो यह निश्चित रूप से सराहनीय है और इस पर तालियां बजनी ही चाहिए. लेकिन, क्या ऐसा करते हुए इस 8.4 प्रतिशत ग्रोथ की क्वालिटी पर गौर नहीं करना चाहिए? क्या यह नहीं देखना चाहिए कि महंगाई, बेरोजगारी और जरूरत की चीजों की उपलब्धता के मामले में हम कहां खड़े हैं? इन तीनों का आपस में संबंध है. आइए, एक-एक करके इन मानकों पर गौर करें.

पहला मानक है महंगाई का. अक्तूबर 2021 में उपभोक्ता दाम सूचकांक साढ़े चार फीसदी था. सरकार के प्रवक्ता इसका हवाला देते हुए यह मानने के लिए ही तैयार नहीं थे कि महंगाई के सवाल पर उन्हें ज्यादा चिंता करनी चाहिए. और तो और, एक प्रवक्ता महोदय का तो यह भी कहना था कि पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाना सरकार की ‘इन्फॉम्र्ड च्वाइस’ है. 

एक तरह से सरकार तेल के दामों में टैक्स के जरिये की जाने वाली बढ़ोत्तरी से बढ़ने वाली महंगाई के प्रति चिंतित न होने का दावा कर रही थी. जाहिर है कि साढ़े चार फीसदी का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आंकड़ों के फर्जीवाड़े का प्रतीक था. एक ऐसे समय में जब सरकार मान रही हो कि थोक मूल्य सूचकांक साढ़े बारह प्रतिशत है, उस समय कौन यकीन करेगा कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक इतना कम हो सकता है. यानी, आठ फीसदी की ग्रोथ किसी भी तरह से आम जनता को राहत पहुंचाने वाली नहीं हो सकती.

दूसरा मानक है बेरोजगारी का. स्वयं सरकार ने शहरी रोजगार के जो आंकड़े जारी किए हैं, वे चिंताजनक हैं. जनवरी से मार्च, 2020 और जनवरी-मार्च, 2021 के बीच रोजगार की स्थिति बताती है कि वेतनभोगी नौकरियों का अनुपात 50.5 से सिकुड़ कर 48.1 प्रतिशत हो गया है. दूसरी तरफ अनियमित रोजगार और मामूली किस्म के स्वरोजगार (जैसे, रेहड़ी-पटरी वगैरह) का प्रतिशत बढ़ा है. यानी, नियमित से अनियमित रोजगार की तरफ रुझान बढ़ा है, और रोजगार का बाजार औपचारिकता से अनौपचारिकता की ओर झुक रहा है. 

ध्यान रहे कि ये आंकड़े आठ महीने पहले जमा किये गए थे. तब से अब के बीच प्राप्त संकेतों से पता चलता है कि भारत की श्रमशक्ति अभी तक कोविड के दुष्प्रभावों से उबर नहीं  पाई है. निजी उपभोग का स्तर अभी भी महामारी से पहले के स्तर से नीचे है.

तीसरा मानक है बाजार में जरूरत की चीजों की प्रचुर सप्लाई का. देखने की बात यह है कि क्या जब महंगाई आसमान की तरफ जा रही हो, और बेरोजगारी भी साथ में बढ़ रही हो, तब बाजार में निचले स्तर पर खरीदारों की इफरात हो सकती है? यह सर्दी का मौसम है.  इस मौसम में आम तौर पर सब्जियों के दाम गिर जाते थे. इसके उलट हालत यह है कि दाम बढ़ रहे हैं. ऐसे मौसम में सब्जियों की यह महंगाई एकदम नई बात है.

आम जनता के  पक्ष में आर्थिक चिंतन करने वाले प्रोफेसर अरुण कुमार ने 8.4 फीसदी के इस ग्रोथ रेट की आलोचनात्मक समीक्षा की है. उन्होंने दिखाया है कि अगर इस तिमाही के आंकड़ों की तुलना 2019-20 के आंकड़ों से की जाए तो यह ग्रोथ केवल 0.1 प्रतिशत की साबित होती है. देखा जाए तो 2019 के मुकाबले इस तिमाही में केवल सत्रह हजार करोड़ की ही बढ़ोत्तरी हुई है. 2019 के मुकाबले निजी उपभोग आज भी कम है, और सरकारी खर्च भी 4.34 लाख करोड़ की तुलना में 3.61 लाख करोड़ है. 

कैपिटल फॉर्मेशन बिल्कुल नहीं बढ़ा है और 2019 के स्तर पर ही है. जो बढ़त हमें दिख रही है वह सोना, चांदी, हीरे-जवाहरात जैसी चीजों के जरिये आई है. जाहिर है कि यह बढ़त उत्पादन बढ़ने का नतीजा
नहीं है.

Web Title: Abhay Kumar Dubey blog: What will general public do with growth rate?

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