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600 lawyers write to CJI: न्यायपालिका को हर तरह के दबाव से रखना होगा मुक्त

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: March 30, 2024 11:37 IST

600 lawyers write to CJI: समूह ‘बेकार के तर्कों और घिसे-पिटे राजनीतिक एजेंडा’ के आधार पर न्यायपालिका पर दबाव डाल रहा है.

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ठळक मुद्देअदालतों को कथित हमलों से बचाने के लिए कदम उठाने का अनुरोध किया है.न्यायपालिका पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं तो इसे सामान्य घटना नहीं माना जा सकता. इस बात पर विश्वास करने का कोई कारण नहीं है कि न्यायपालिका इस तरह के दबावों में आ सकती है.

600 lawyers write to CJI: वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और ‘बार काउंसिल ऑफ इंडिया’ के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा समेत करीब 600 वकीलों द्वारा प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर यह आरोप लगाना कि न्यायपालिका पर दबाव डालने का प्रयास किया जा रहा है, निश्चय ही बेहद चिंताजनक है. पत्र में कहा गया है कि  निहित स्वार्थ वाला समूह अदालतों को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है और यह समूह ‘बेकार के तर्कों और घिसे-पिटे राजनीतिक एजेंडा’ के आधार पर न्यायपालिका पर दबाव डाल रहा है.

वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट से मजबूत बने रहने और अदालतों को कथित हमलों से बचाने के लिए कदम उठाने का अनुरोध किया है. देखा जाए तो राजनीति में ये चीजें आम बात हैं, उसमें हर तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं लेकिन अगर कुछ लोग या समूह न्यायपालिका पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं तो इसे सामान्य घटना नहीं माना जा सकता.

हालांकि इस बात पर विश्वास करने का कोई कारण नहीं है कि न्यायपालिका इस तरह के दबावों में आ सकती है. राजनीति से जुड़े लोगों पर जनभावनाओं का ख्याल रखने का दबाव होता है, क्योंकि मतदाताओं के वोट पर ही उनका राजनीतिक भविष्य निर्भर होता है, इसलिए मीडिया, सोशल मीडिया या अन्य माध्यमों द्वारा बनाए गए ‘माहौल’ के दबाव में आकर वे जनता के नाराज होने के डर से कई काम करने के लिए मजबूर होते हैं. लेकिन न्यायपालिका इस तरह के दबावों से मुक्त होती है.

यही कारण है कि अदालतों ने एक नहीं अनेक बार और कई मामलों में जनमानस की धारणा के विपरीत फैसले सुनाने का साहस दिखाया है, क्योंकि जनधारणाएं अक्सर भावनाओं पर आधारित होती हैं, जबकि न्यायपालिका को तथ्यों को मद्देनजर रखते हुए, तर्कों के आधार पर फैसला सुनाना होता है. यही वजह है कि कई बार अदालतों ने देश में सत्ता के खिलाफ भी फैसला सुनाया है.

इसलिए अदालतें किसी तरह के दबाव के आगे झुक जाएंगी, यह मुमकिन तो नहीं लगता, लेकिन आरोप अगर न्यायपालिका से जुड़े लोगों द्वारा ही लगाए जा रहे हों तो मामला थोड़ा गंभीर अवश्य हो जाता है. तर्क करने की कला कई बार दोधारी तलवार की तरह होती है. इसलिए तर्क-वितर्क में माहिर वकीलों को देशहित को तो निश्चित रूप से सर्वोपरि रखना चाहिए.

ध्यान रखना चाहिए कि उनकी कला का गलत तत्व फायदा न उठा ले जाएं. लेकिन बाहरी आदेशों के बल पर शायद ही इस तरह की प्रवृत्ति पर रोक लगाई जा सके, क्योंकि इसके बहाने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के भी कुचले जाने का डर बना रहेगा. इसलिए सीजेआई को पत्र लिखने वाले वकीलों की चिंता जायज होते हुए भी इसका हल स्व-अनुशासन के जरिये ही निकालना उचित दिखाई देता है.

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