कठपुतलियों का असली संसार और संगीत के सहारे जीवन
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 19, 2025 07:17 IST2025-08-19T07:15:51+5:302025-08-19T07:17:55+5:30
अमेरिका के ‘रेड इंडियन’ से संबंध जोड़ना जिन ब्रिटिश अभिनेता जॉनी डेप के लिए चौतरफा आलोचना लाया, भले ही उनकी वंशावली वहां तक न जाती हो, पर वे अमेरिकी जिप्सी संगीतकारों के प्रशंसक और मददगार रहे हैं.

कठपुतलियों का असली संसार और संगीत के सहारे जीवन
सुनील सोनी
मशहूर अपराध कथा ‘पीकी ब्लाइंडर’ में थॉमस शैलबी का किरदार निभा रहे आयरियाई अभिनेता सिलियन मर्फी जब खुद को ‘जिप्सी’ कहते हैं, तो अचानक 32 साल पहले बनी टोनी गैटलीफ की ‘लैचो ड्रोम’ का अक्स याद पर छा जाता है. कोई संवाद नहीं, सिर्फ संगीत. भारत से पूरे यूरोप को जोड़नेवाला. गैटलीफ शायद खुद की वंशावली ढूंढ़ रहे थे. लिहाजा थार मरुस्थल के संपेरा समुदाय ‘कालबेलिया’ के लोकसंगीत से शुरू होकर यह मधुर फिल्मी सफर मिस्र, तुर्की, रोमानिया, हंगरी, स्लोवाकिया, फ्रांस से होते हुए स्पेन पर खत्म होता है और उस व्यथा को कहता है, जिसे ये ‘रोमा’ खानाबदोश संगीत के सहारे जीते आए हैं.
यूरोप में एक करोड़ से अधिक रोमा बंजारे रहते हैं. भारत से 15 सदी पहले पलायन कर वे जब यूरोप में फैले, तब से अब तक उनके साथ बरताव में कोई अंतर आया हो, लगता नहीं है. सामाजिक भेदभाव और बहिष्कार के बावजूद यूरोप में वे भाषा और संस्कृृति को बनाए रखने में सफल रहे हैं, जिसमें उनके भारतीय से यूरोपीय होते चले गए पूर्वजों के बीज दिखते हैं.
एक किंवदंती भी है कि ईसा मसीह को छिपाने की कोशिश के लिए इन समुदायों को जब मिस्र से निकाला गया, तो वे सौ से अधिक समूहों में स्पेन की ओर चले. यूरोपीय संघ मौलिक अधिकार संस्था के तथ्यात्मक आंकड़े कोई अलग कहानी नहीं कहते. हिटलर के नाजी शासन में कम से कम पांच लाख रोमा का नरसंहार किया गया. लोक संगीत व नृत्य की अनोखी परंपरा के धनी इन बंजारों की कला को यूनेस्को ने भले ही सांस्कतिक धरोहर का दर्जा दे दिया हो, लेकिन ‘द पोरिमोस’ यानी रोमा होलोकॉस्ट को नए दौर में भी फ्रांस में निकोलस सरकोजी और इटली में सिल्वियो बर्लुस्कोनी की बेदखली ने जैसे स्थायी रूप दे दिया है.
भारत में अंग्रेजों ने 1871 में अपराधी जनजातियां कानून लाकर 196 बंजारा समुदायों को समाज से बेदखल कर दिया था, जिनमें महाराष्ट्र के बहेलिया समुदाय ‘पारधी’ भी शामिल थे. स्पेन के इंस्टीट्यूट ऑफ इवोल्यूशनरी बायोलॉजी के डेविड कोमास का आनुवंशिक विश्लेषण कहता है, ‘‘यूरोप के 13 जिप्सी समूह के पूर्वज उत्तरी भारत से छठी सदी में यूरोप पहुंचे होंगे और उनकी भाषा में भारत के सुराग मिलते हैं.
इसी मूल की कैटरीना लिलक्विस्ट ने सन 2001 से 2003 के बीच कठपुतली एनीमेशन धारावाहिक बनाया. प्राचीन रोमा बंजारों की लोककथाओं पर आधारित धारावाहिक का नाम था : ‘मेरे बाला काले हिन. अंग्रेजी में उसका नाम पड़ा : ‘टेल्स फ्रॉम एंडलेस रोड.’ लेकिन रोमा नाम ही भारतीय शिनाख्त के लिए काफी है और राजस्थानी कठपुतलियों की याद दिलाते हैं. अमेरिका के ‘रेड इंडियन’ से संबंध जोड़ना जिन ब्रिटिश अभिनेता जॉनी डेप के लिए चौतरफा आलोचना लाया, भले ही उनकी वंशावली वहां तक न जाती हो, पर वे अमेरिकी जिप्सी संगीतकारों के प्रशंसक और मददगार रहे हैं.
इसी भारत में 31 अगस्त खास तारीख है, जो ‘विमुक्ति दिवस’ के रूप में ख्यात है. सन 1871 में अंग्रेजों के बनाए ‘अपराधी जनजातियां कानून’ को आजाद भारत की पहली सरकार ने रद्द कर दिया था और उन्हें आदिवासियों का दर्जा दिया. हालांकि, अब भी वे 196 जाति समुदाय मुक्ति की तलाश में हैं. ‘मुर्दों का टीला’ से भी अधिक समतावादी संघर्ष की रांगेय राघव की कहानी ‘कब तक पुकारूं’ का नायक सुखराम ऐसी ही ‘जरायम पेशा’ माने जानेवाले बंजारा समुदाय ‘करनट’ से ताल्लुक रखता है.
बुंदेलखंड के अद्भुत नृत्य ‘राई’ के बजाय बेड़िनों को अब भी गलत कारणों से जाना जाना शोकांतिका है. नागपुर के एक समूह ने दो दशक पहले महाराष्ट्र सरकार को प्रस्ताव दिया था कि वे ‘महुए’ की पारदर्शी शराब बनाने में महारत रखनेवाले बहेलिये ‘पारधियों’ को वन विभाग में पक्षी विशेषज्ञ के रूप में तैनात कर दें और उनकी देसी शराब को राज्य के ब्रांड के तौर पर प्रचारित करें.
यह रहस्य है कि वह प्रस्ताव सरकार तक पहुंचा या नहीं, पर मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने इसे हकीकत में बदल दिया. महुए की वह शराब मध्यप्रदेश का विशेषज्ञतापूर्ण ब्रांड है, जैसे कि गोवा की ‘उरण’ या ‘फेनी’ है. हाशिये में दबे आदिवासी समुदायों के उत्थान पर शहरी सोच की संरचना दुनियाभर में एक जैसी ही है. ‘चमन लाल’ की ‘जिप्सी : भारत की भुला दी गई संतान’ इस पर ऐतिहासिक भारतीय दस्तावेज है.