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हिमालय की बर्फ तेजी से पिघल रही है, आखिर क्या है वजह?, तापमान औसतन 4 डिग्री सेल्सियस बढ़ा

By निशांत | Updated: June 2, 2025 05:14 IST

सूरज की गर्मी सीधे बर्फ में समा जाती है और वो तेजी से पिघलने लगती है. रिपोर्ट में नासा के 23 साल के सैटेलाइट डाटा (2000-2023) का विश्लेषण किया गया है.

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ठळक मुद्देपता चला कि 2000 से 2019 तक ब्लैक कार्बन की मात्रा में तेजी से इजाफा हुआ. हिमालय की बर्फ लगातार सिकुड़ती गई. 2019 के बाद इसकी रफ्तार थोड़ी थमी जरूर है.ब्लैक कार्बन ज्यादा जमा होता है, वहां बर्फ की मोटाई सबसे तेज घट रही है.

हिमालय की बर्फ तेजी से पिघल रही है. वजह? हमारे चूल्हों से उठता धुआं, खेतों में जलाई जा रही पराली और गाड़ियों से निकलता धुआं- यानी ‘ब्लैक कार्बन’. दिल्ली की एक रिसर्च संस्था क्लाइमेट ट्रेंड्स की नई रिपोर्ट बताती है कि पिछले 20 सालों में हिमालयी इलाकों में बर्फ की सतह का तापमान औसतन 4 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है. और ये बदलाव अचानक नहीं आया- इसकी एक बड़ी वजह है हवा में घुलता काला जहर. ये ‘ब्लैक कार्बन’ दिखता तो धुएं जैसा है, लेकिन असर किसी धीमे जहर की तरह करता है. ये बर्फ पर जमकर उसकी चमक यानी रिफ्लेक्टिव ताकत को कम कर देता है, जिससे सूरज की गर्मी सीधे बर्फ में समा जाती है और वो तेजी से पिघलने लगती है. रिपोर्ट में नासा के 23 साल के सैटेलाइट डाटा (2000-2023) का विश्लेषण किया गया है.

पता चला कि 2000 से 2019 तक ब्लैक कार्बन की मात्रा में तेजी से इजाफा हुआ, जिससे हिमालय की बर्फ लगातार सिकुड़ती गई. 2019 के बाद इसकी रफ्तार थोड़ी थमी जरूर है, लेकिन नुकसान हो चुका है. विशेषज्ञों का कहना है कि जहां ब्लैक कार्बन ज्यादा जमा होता है, वहां बर्फ की मोटाई सबसे तेज घट रही है.

इससे नदियों के जलस्तर पर असर पड़ेगा और करीब दो अरब लोगों की पानी की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है-खासतौर पर भारत, नेपाल, भूटान और बांग्लादेश जैसे देशों में. रिपोर्ट की मुख्य लेखिका डॉ. पलक बलियान कहती हैं, “पूर्वी हिमालय में ब्लैक कार्बन सबसे ज्यादा पाया गया है, क्योंकि वो इलाका ज्यादा घना बसा है और वहां बायोमास जलाने की घटनाएं आम हैं.”

अच्छी बात ये है कि ब्लैक कार्बन ज्यादा समय तक वातावरण में नहीं टिकता. अगर अभी इसकी मात्रा को कम किया जाए- जैसे कि चूल्हों को साफ ईंधन में बदला जाए, पराली जलाने पर रोक लगे, और ट्रांसपोर्ट सेक्टर साफ किया जाए- तो कुछ ही सालों में असर दिख सकता है.

क्लाइमेट ट्रेंड्स की डायरेक्टर आरती खोसला कहती हैं, “ये ऐसा मुद्दा है जहां हम जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण- दोनों को एक साथ टारगेट कर सकते हैं. और इसमें जीत जल्दी मिल सकती है.” निचोड़ ये है कि हिमालय की बर्फ अब उतनी ठंडी नहीं रही. अगर हम वक्त रहते नहीं जागे तो आने वाले सालों में पानी का संकट और तेज होगा. और इसका असर सिर्फ पहाड़ों तक सीमित नहीं रहेगा- मैदानी जिंदगी भी इसकी चपेट में आएगी.

टॅग्स :हिमालयGlobal Investors Conference
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