प्रमोद भार्गव का नजरियाः डीएनए कानून से खुलेंगे जिंदगी के राज
By प्रमोद भार्गव | Updated: July 12, 2019 09:38 IST2019-07-12T09:38:43+5:302019-07-12T09:38:43+5:30
केंद्र सरकार ने विपक्ष के कड़े विरोध के बावजूद डीएनए प्रोफाइलिंग बिल यानी, ‘मानव डीएनए संरचना विधेयक’ एक बार फिर लोकसभा से पारित करा लिया.

प्रमोद भार्गव का नजरियाः डीएनए कानून से खुलेंगे जिंदगी के राज
केंद्र सरकार ने विपक्ष के कड़े विरोध के बावजूद डीएनए प्रोफाइलिंग बिल यानी, ‘मानव डीएनए संरचना विधेयक’ एक बार फिर लोकसभा से पारित करा लिया. पिछले सत्र में भी इस विधेयक को लोकसभा से मंजूरी मिल गई थी, लेकिन राज्यसभा से पारित नहीं हो पाने के कारण इसकी वैधता समाप्त हो गई थी.
विधेयक के सामने आए प्रारूप के पक्ष-विपक्ष संबंधी पहलुओं को जानने से पहले जीन कुंडली की आंतरिक रूपरेखा जान लें. मानव-शरीर में डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड यानी डीएनए नामक सर्पिल संरचना अणु कोशिकाओं और गुण-सूत्रों का निर्माण करती है. जब गुण-सूत्र परस्पर समायोजन करते हैं तो एक पूरी संख्या 46 बनती है, जो एक संपूर्ण कोशिका का निर्माण करती है. इनमें 22 गुण-सूत्र एक जैसे होते हैं, किंतु एक भिन्न होता है. गुण-सूत्र की यही विषमता स्त्री अथवा पुरुष के लिंग का निर्धारण करती है.
डीएनए नामक यह जो मौलिक महारसायन है, इसी के माध्यम से बच्चे में माता-पिता के अनुवांशिक गुण-अवगुण स्थानांतरित होते हैं. वंशानुक्रम की यही वह बुनियादी भौतिक रासायनिक, जैविक तथा क्रियात्मक इकाई है, जो एक जीन बनाती है. 25000 जीनों की संख्या मिलकर एक मानव जीनोम रचती है, जिसे इस विषय के विशेषज्ञ पढ़कर व्यक्ति के अनुवांशिकी रहस्यों को किसी पहचान-पत्र की तरह पढ़ सकते हैं. अर्थात यदि मानव-जीवन का खाका रिकॉर्ड करने का कानून वजूद में आ जाता है तो व्यक्ति की निजता के अधिकार के कोई मायने ही नहीं रह जाएंगे?
बिल लाने के पक्ष में तर्क दिए जा रहे हैं कि डीएनए विश्लेषण से अपराध नियंत्रित होंगे. खोए, चुराए और अवैध संबंधों से पैदा संतान के माता-पिता का पता चल जाएगा. लावारिस लाशों की पहचान होगी. अभी ज्यादातर दवाएं अनुमान के आधार पर रोगी को दी जाती हैं. जीन के सूक्ष्म परीक्षण से बीमारी की सार्थक दवा देने की उम्मीद बढ़ गई है. लिहाजा इससे चिकित्सा और जीव-विज्ञान के अनेक राज तो खुलेंगे ही, दवा उद्योग भी फले-फूलेगा. लेकिन इसके नकारात्मक परिणाम भी देखने में आ सकते हैं.
गंभीर बीमारी की शंका वाले व्यक्तिका बीमा कंपनियां बीमा नहीं करेंगी और खासकर निजी कंपनियां नौकरी पाने से भी वंचित कर देंगी. जाहिर है, निजता का यह उल्लंघन भविष्य में मानवाधिकारों के हनन का प्रमुख सबब बन सकता है.