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प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: एंटीबायोटिक दवाओं के 75 साल

By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Updated: October 24, 2018 18:48 IST

75 साल पहले इन दवाओं का उत्पादन शुरू हुआ था। प्लेग जैसी महामारी से इन्हीं दवाओं ने छुटकारा दिलाया। हकीकत यह भी है कि मलेरिया जैसी घातक और विश्वव्यापी बीमारी पर नियंत्रण इन्हीं एंटीबायोटिक दवाओं से है। 

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एंटीबायोटिक दवाओं को लेकर अर्से से जताई जा रही चिंता भले ही गंभीर रूप लेती जा रही हो, लेकिन हकीकत यह है कि तमाम बीमारियों का रामबाण इलाज आज भी इन्हीं दवाओं से संभव हो पा रहा है। 

75 साल पहले इन दवाओं का उत्पादन शुरू हुआ था। प्लेग जैसी महामारी से इन्हीं दवाओं ने छुटकारा दिलाया। हकीकत यह भी है कि मलेरिया जैसी घातक और विश्वव्यापी बीमारी पर नियंत्रण इन्हीं एंटीबायोटिक दवाओं से है। 

इसके बावजूद इन दवाओं को दुष्प्रचारित इसलिए किया जाता है, क्योंकि कभी-कभी ये शरीर में एलर्जी व अन्य नई बीमारियों को पैदा करने का सबब बन जाती हैं। इसी कारण यह आशंका उत्पन्न हो रही है कि ये दवाएं अपनी हीरक जयंती तो मना लेंगी, लेकिन शताब्दी समारोह मना पाएंगी अथवा नहीं?

दरअसल आसानी से उपलब्ध होने और नीम-हकीम द्वारा रोग की ठीक से पहचान नहीं किए जाने के बाबजूद ये दवाएं रोगी को जरूरत से ज्यादा खिलाई जा रही हैं। इस कारण ये दवा-दुकानों के अलावा गांव की परचून दुकानों पर भी मिल जाती हैं। लिहाजा शरीर में जो जीवाणु व विषाणु मौजूद हैं, वे इन दवाओं के विरुद्ध अपना प्रतिरोधी तंत्र विकसित करने में सफल हो रहे हैं। नतीजतन ये दवाएं रोग पर बेअसर भी साबित हो रही हैं। 

इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में एंटीबायोटिक दवाओं के विरुद्ध पैदा हो रही प्रतिरोधात्मक क्षमता को मानव स्वास्थ्य के लिए वैश्विक खतरे की संज्ञा दी है।

 इस रिपोर्ट से साफ हुआ है कि चिकित्सा विज्ञान के नए-नए आविष्कार और उपचार के अत्याधुनिक तरीके भी इंसान को खतरनाक बीमारियों से छुटकारा नहीं दिला पा रहे हैं।

 चिंता की बात यह है कि जिन महामारियों के दुनिया से समाप्त होने का दावा किया गया था, वे फिर आक्रामक हो रही हैं।  स्वाभाविक तौर पर जीवाणु धीरे-धीरे एंटीबायोटिक के विरुद्ध अपने अंदर प्रतिरक्षा क्षमता पैदा कर लेता है, लेकिन इन दवाओं के हो रहे अंधाधुंध प्रयोग से यह स्थिति अनुमान से कहीं ज्यादा तेजी से सामने आ रही है। 

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