निरंकार सिंह का ब्लॉग: आयुर्वेद की प्रतिष्ठा के लिए अभी बहुत कुछ करना है बाकी

By निरंकार सिंह | Published: November 2, 2021 10:56 AM2021-11-02T10:56:12+5:302021-11-02T11:25:20+5:30

आयुर्वेद दुनिया की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति है और इसका प्रादुर्भाव भारत में ही हुआ था. पर यह आज बहुत पिछड़ा हुआ है. हम अपने प्राचीन ज्ञान से ही संतुष्ट हैं और उसकी डींगें हांकते रहते हैं लेकिन उसमें कोई नया अनुसंधान और विकास नहीं करते हैं.

national ayurveda divas dhanvantari jayanti ayush ministry | निरंकार सिंह का ब्लॉग: आयुर्वेद की प्रतिष्ठा के लिए अभी बहुत कुछ करना है बाकी

निरंकार सिंह का ब्लॉग: आयुर्वेद की प्रतिष्ठा के लिए अभी बहुत कुछ करना है बाकी

Highlightsराष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाने की शुरुआत आयुष मंत्रालय द्वारा साल 2016 में की गई थी.इसे हर साल धन्वंतरि जयंती या धनतेरस के दिन मनाया जाता है.आयुर्वेद क्षेत्र से जुड़े हितधारकों और उद्यमियों को नए अवसरों के प्रति जागरूक करना उद्देश्य.

राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस हर साल धन्वंतरि जयंती या धनतेरस के दिन मनाया जाता है. इसकी शुरुआत आयुष मंत्रालय द्वारा साल 2016 में की गई थी. तब से हर साल धन्वंतरि जयंती के दिन आयुर्वेद दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य आयुर्वेद क्षेत्र से जुड़े हितधारकों और उद्यमियों को कारोबार के नए अवसरों के प्रति जागरूक करना है. 

आयुर्वेद दुनिया की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति है और इसका प्रादुर्भाव भारत में ही हुआ था. पर यह आज बहुत पिछड़ा हुआ है. हम अपने प्राचीन ज्ञान से ही संतुष्ट हैं और उसकी डींगें हांकते रहते हैं लेकिन उसमें कोई नया अनुसंधान और विकास नहीं करते हैं. 

मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद आयुर्वेद और अन्य वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के लिए एक अलग ‘आयुष मंत्रालय’ बनाकर एक नई शुरुआत जरूर की है लेकिन अभी इस दिशा में बहुत कुछ होना है.

आयुर्वेद संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है-आयु यानी जीवन और वेद यानी विज्ञान. शुरुआती दौर में आयुर्वेद का ज्ञान केवल मौखिक रूप में मौजूद था. 

आयुर्वेद के पहले लिखित साक्ष्य वेदों में मिलते हैं. अथर्ववेद में 114 श्लोकों और मंत्रों में आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति का जिक्र है. 

तकरीबन दो हजार वर्ष पहले लिखी गई चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदयम नामक तीन प्राचीन किताबों को आयुर्वेद का प्रमुख ग्रंथ माना जाता है. 
आयुर्वेदिक चिकित्सा औषधीय पौधों, जड़ी-बूटियों और अन्य प्राकृतिक तत्वों पर आधारित है. इसलिए इसका शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है. यह सिर्फ बीमारी के लक्षण को दूर नहीं करती, बल्कि बीमारी की जड़ पर वार करती है. 

एलोपैथी के मुकाबले आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति सस्ती है क्योंकि यह हानिकारक रसायनों से मुक्त है. अधिकतर दवाओं को घर में ही तैयार किया जा सकता है. 

योग भी आयुर्वेद का एक बड़ा भाग है. यह पद्धति सिर्फ शरीर पर नहीं बल्कि मन पर भी काम करती है. लोग अपनी जीवन शैली में मामूली बदलाव करके आयुर्वेदिक चिकित्सा से खुद को ठीक कर सकते हैं.

ईसा से लगभग दो सौ वर्ष पूर्व भारत में महान रसायन शास्त्री और चिकित्सक आचार्य नागाजरुन हुए थे, जिनके बारे में भारत में शायद ही कोई पुस्तक उपलब्ध हो. लेकिन नागाजरुन के नेत्र चिकित्सक होने का यश उनके जीवन काल में ही चीन तक पहुंच गया था. 

चीनी भाषा में उनका एक ग्रंथ नेत्र रोग पर ‘येन-लुन’मिलता है. एक अन्य ग्रंथ-‘लुंग-षू-पु-स-यओ-फेन’ भी है, जिसका अर्थ है नागाजरुन बोधिसत्व के प्रयोग. 
ईसा की आठवीं शताब्दी में भारत आए अलबरुनी और ईसा की सातवीं शताब्दी के यात्री ह्वेनसांग के लेखों में नागाजरुन का रस विद्या निपुण एवं रसायन विद्या से लोहे से सोना बना देने वाले के रूप में उल्लेख मिलता है. 

यह प्रदर्शित करता है कि नागाजरुन ने पारद (पारा) के विभिन्न धातुओं के औषधि संबंधी प्रयोगों पर वैज्ञानिक क्षेत्र में आश्चर्यजनक अनुसंधान कार्य किए थे. लेकिन आज हम आधुनिक चकाचौंध में इतने अधिक डूब गए हैं कि अपनी कला, साहित्य, संस्कृति तथा आयुर्वेद एवं औषधि विज्ञान को लगभग भूल ही गए हैं. 

ये सभी हमें धरोहर के रूप में उस काल में प्राप्त हुए हैं जब भारत का स्वर्ण युग था. इसमें संदेह नहीं कि भारतीय आयुर्वेद दुनिया की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है.

भारत में इसका यथोचित विकास नहीं हो पाया लेकिन चीन आयुर्वेद को अपना परंपरागत औषधि विज्ञान बताकर उसका विकास व संवर्धन कर रहा है.

पिछले कुछ वर्षो के दौरान दुनियाभर के चिकित्सा वैज्ञानिकों की आयुर्वेद में रुचि बढ़ी है. भारत सरकार ने भी आयुष नाम से एक अलग मंत्रालय बनाकर आयुर्वेद और अन्य भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में शोध और विकास को बढ़ावा दिया है. 

देश के पहले अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आयुर्वेद के पुनरुद्धार के लिए पांच सुझाव दिए थे. 

प्रधानमंत्री के अनुसार- ‘देश के आयुर्वेद विशेषज्ञ एलोपैथी जैसी दवाएं तैयार करें जिससे तुरंत राहत मिले और कोई दुष्प्रभाव न हो. कॉरपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी फंड का उपयोग आयुर्वेद के क्षेत्र में करें. आयुर्वेद के मौजूदा पाठ्यक्रम का पुनर्निर्धारण हो ताकि मानक स्तर कायम हो. आयुर्वेद शिक्षा का प्रत्येक स्तर पूर्ण करने पर सर्टिफिकेट दिया जाए. आयुष व कृषि मंत्रलय किसानों को औषधीय फसलें लगाकर आय बढ़ाने की सलाह दें.’

इसमें कोई संदेह नहीं कि इन सभी पांचों सुझाव पर अमल किया जाए तो आयुर्वेद का कायाकल्प हो सकता है.

Web Title: national ayurveda divas dhanvantari jayanti ayush ministry

स्वास्थ्य से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे