Mpox outbreak: दुनिया के 116 देश चपेट में, 500 से ज्यादा की मौत, थोड़ी सी लापरवाही हो सकती है प्राणघातक!
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: August 20, 2024 05:25 IST2024-08-20T05:21:39+5:302024-08-20T05:25:35+5:30
Mpox outbreak: मंकीपॉक्स पहले चूहों, बंदर या अन्य प्राणियों से मनुष्य में संक्रमित होता था लेकिन अब यह इंसानों से इंसान में संक्रमित हो रहा है.

Mpox outbreak: दुनिया के 116 देश चपेट में, 500 से ज्यादा की मौत, थोड़ी सी लापरवाही हो सकती है प्राणघातक!
Mpox outbreak: कोरोना के बाद एक और बीमारी मंकीपॉक्स या एमपॉक्स ने दुनिया के 116 देशों को अपनी चपेट में ले लिया है. यह बीमारी लापरवाही बरतने पर प्राणघातक हो सकती है. अफ्रीकी देशों खासकर कांगो में एमपॉक्स से 500 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. कई यूरोपीय तथा दक्षिण अमेरिकी देशों ने एमपॉक्स के मद्देनजर चिकित्सकीय आपातकाल घोषित कर दिया है. हमारे पड़ोसी पाकिस्तान में यह संक्रामक बीमारी दस्तक दे चुकी है और इससे भारत का चिंतित होना स्वाभाविक है. मंकीपॉक्स पहले चूहों, बंदर या अन्य प्राणियों से मनुष्य में संक्रमित होता था लेकिन अब यह इंसानों से इंसान में संक्रमित हो रहा है. चेचक जैसी दिखने वाली इस बीमारी से निपटने के लिए भारत सरकार ने एहतियाती कदम उठाने शुरू कर दिए हैं.
भारत में मंकीपॉक्स को लेकर फिलहाल चिंता करने की जरूरत नहीं है. मार्च में केरल में इस बीमारी के लक्षणों वाले एक-दो मामले सामने आए थे लेकिन जांच के बाद पता चला कि संबंधित मरीजों को मंकीपॉक्स नहीं हुआ था. भारत इस वर्ष डेंगू तथा चिकुनगुनिया जैसी बीमारियों से जूझ रहा है. ऐसे में पाकिस्तान में मंकीपॉक्स की दस्तक ने हमारी सरकार को सतर्क कर दिया है.
भारत में आबादी का घनत्व बहुत ज्यादा है. इसीलिए इस बीमारी को लेकर ज्यादा सतर्कता तथा जागरूकता आवश्यक है. बीमारी भले ही कोरोना जैसी जानलेवा न हो लेकिन वह कोरोना की तरह ही तेजी से फैलती है. अगर आबादी का बड़ा हिस्सा मंकीपॉक्स की चपेट में आ जाए तो स्वास्थ्य सेवा और अर्थव्यवस्था पर भी उसका बुरा असर पड़ सकता है.
भारत ने कोरोना की विभीषिका को झेला है. उस दौर को याद कर अब भी सिहरन पैदा हो जाती है. इस महामारी के दुष्परिणाम आज भी भारतीय नागरिकों का बड़ा वर्ग झेल रहा है. वह अभी भी खुद को शारीरिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ महसूस नहीं कर रहा है. मंकीपॉक्स से मरीज एक से दो हफ्ते में ठीक तो हो जाता है लेकिन उसके दुष्परिणाम लंबे समय तक बने रहते हैं.
इस वक्त डेंगू और चिकुनगुनिया के साथ-साथ महाराष्ट्र तथा केरल जैसे राज्यों में जीका वायरस ने दस्तक दी है. जीका पर काबू पाने में सफलता मिल गई है लेकिन मंकीपॉक्स ने खतरे की घंटी बजानी शुरू कर दी है. मंकीपॉक्स को लेकर हमारी भी जिम्मेदारियां महत्वपूर्ण हैं. मंकीपॉक्स के लक्षण किसी व्यक्ति में दिखाई देने पर स्वास्थ्य विभाग को सूचना तो देनी ही चाहिए, साथ ही उसे फैलने से रोकने के लिए निर्धारित दिशा-निर्देशों का भी कड़ाई से पालन करना चाहिए. संक्रामक बीमारी के फैलने में हवा से ज्यादा हमारी उदासीनता जिम्मेदार होती है.
हमें यह समझना होगा कि साधारण बुखार भी किसी गंभीर संक्रामक बीमारी का लक्षण हो सकता है और उस हालत में अगर हम खुद को लोगों से दूर नहीं रखेंगे तो संक्रमण को बड़े पैमाने पर फैलाने के दोषी हो सकते हैं. मंकीपॉक्स एक ऐसी संक्रामक बीमारी है, जिसके बारे में हमारे देश में लोगों को बहुत कम जानकारी है.
भले ही मंकीपॉक्स से भारत अभी बचा हुआ हो, लेकिन उसके खतरे की आहट तो स्पष्ट सुनाई दे रही है. सरकार जिस तरह मलेरिया, डेंगू, चिकुनगुनिया, टीबी, टायफाइड, कैंसर, गैस्ट्रो तथा अन्य गंभीर बीमारियों के प्रति व्यापक जनजागृति व चिकित्सा अभियान चला रही है, उसी तरह मंकीपॉक्स के बारे में लोगों खासकर छोटे शहरों, कस्बों तथा गांवों के लोगों को जागरूक करना होगा.
यह संक्रामक बीमारी लाइलाज नहीं है. सरकार को इस बात का ध्यान रखना होगा कि महानगरों के अस्पतालों से लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक में मंकीपॉक्स की दवा उपलब्ध रहे. सतर्कता मंकीपॉक्स से निपटने का सबसे प्रभावी उपाय है.