आज तक मलेरिया के जो भी टीके दुनिया में उपलब्ध हैं, वे सभी पश्चिमी देशों की कंपनियों द्वारा बनाए गए हैं. भारत जैसे देश, जहां मलेरिया सबसे बड़ी समस्या है, वहां के वैज्ञानिक केवल उपभोक्ता की भूमिका में रहे हैं, निर्माता की नहीं. लेकिन अब यह स्थिति बदल गई है. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद और भुवनेश्वर के क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने मिलकर जो एडफाल्सीवैक्स नाम का टीका तैयार किया है, वह न सिर्फ भारत की वैज्ञानिक क्षमता का प्रमाण है, बल्कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है.
मलेरिया के जो टीके अभी तक उपलब्ध हैं, उनकी प्रभावशीलता केवल 33 से 67 प्रतिशत तक है. यानी 100 में से औसतन आधे लोगों को ही पूरी सुरक्षा मिल पाती है. दूसरी बात कि इनकी कीमत (लगभग आठ सौ रु. प्रति खुराक) भी काफी अधिक है. भारतीय टीके की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह दोहरे स्तर पर काम करता है.
एक तो यह व्यक्ति को संक्रमण से बचाता है, दूसरे यह संक्रमण के प्रसार को भी रोकता है. यानी यदि कोई व्यक्ति टीका लगवाने के बावजूद भी संक्रमित हो जाए तो भी वह दूसरों में संक्रमण नहीं फैला सकता. यह गुण अन्य टीकों में नहीं है, इसीलिए सामुदायिक स्तर पर मलेरिया उन्मूलन में यह बेहद प्रभावी हो सकता है. वर्ष 2023 में दुनियाभर में मलेरिया के 26 करोड़ मामले दर्ज हुए.
इनमें से लगभग आधे केवल दक्षिण-पूर्व एशिया में थे और इनमें भी अधिकांश भारत में. यह आंकड़ा पिछले वर्ष से एक करोड़ अधिक है, जो दिखाता है कि समस्या बढ़ती ही जा रही है. ऐसे में भारत का यह टीका न केवल राष्ट्रीय बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है. इस टीके के निर्माण में जो तकनीक अपनाई गई है, वह भी दिलचस्प है.
लैक्टोकोकस लैक्टिस नामक जीवाणु का उपयोग किया गया है, जो सामान्यतः छाछ और पनीर बनाने में प्रयोग होता है. यह दृष्टिकोण न केवल नवाचारपूर्ण है बल्कि सुरक्षा की दृष्टि से भी बेहतर है क्योंकि यह जीवाणु मानव शरीर के लिए हानिकारक नहीं है. बहरहाल, इस टीके का पूर्व-नैदानिक सत्यापन पूरा हो चुका है और परिणाम अत्यंत उत्साहजनक हैं.
राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान और राष्ट्रीय प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान के साथ मिलकर किए गए अध्ययनों में पाया गया है कि यह टीका मजबूत प्रतिरक्षी तत्वों का निर्माण करता है जो संक्रमण को प्रभावी रूप से रोकते हैं. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद अब इस टीके के व्यावसायीकरण के लिए निजी कंपनियों के साथ समझौते की प्रक्रिया शुरू कर चुका है.
पहले हम केवल विदेशी तकनीक का उपयोग करने वाले देश थे, लेकिन अब हम खुद तकनीक का निर्माण कर रहे हैं. भविष्य की दृष्टि से देखें तो यह टीका भारत की मलेरिया उन्मूलन योजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष 2030 तक भारत को मलेरियामुक्त बनाया जाए. इस स्वदेशी टीके से इस लक्ष्य को हासिल करना काफी आसान हो जाएगा.