गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: स्वास्थ्य पर समग्रता से ध्यान देकर सुधारनी होगी जीवनशैली

By गिरीश्वर मिश्र | Published: December 22, 2022 02:05 PM2022-12-22T14:05:54+5:302022-12-22T14:07:23+5:30

भारत की स्वदेशी चिकित्सा प्रणाली (जैसे-आयुर्वेद, योग, सिद्ध) तथा तिब्बती, चीनी और अफ्रीकी परंपराओं में ध्यान और पारंपरिक चिकित्सा की विभिन्न प्रथाओं का उद्देश्य स्पष्ट रूप से रोग की रोकथाम, स्वास्थ्य संवर्धन, मनोदैहिक और पुरानी रोग-स्थितियों का प्रबंधन और समग्र रूप से प्रतिरक्षा कार्यप्रणाली (इम्यून व्यवस्था) को अधिकाधिक समर्थ बनाने का है।

Lifestyle will have to be improved by paying holistic attention to health | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: स्वास्थ्य पर समग्रता से ध्यान देकर सुधारनी होगी जीवनशैली

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlightsज्यादातर मामलों में स्वास्थ्य संबंधी प्रक्रियाओं को हर कोई आसानी से समझ सकता था।कहना न होगा कि उपचार की प्रक्रियाओं में रोगी के जीवन के व्यक्तिगत, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक सभी पहलू शामिल रहते हैं।इस पृष्ठभूमि में भारत में प्रचलित दृष्टिकोण और संबंधित प्रथाएं स्वास्थ्य और स्वास्थ्य देखभाल की घटना को एक समग्रता में ग्रहण करती हैं।

स्वस्थ रहते हुए ही मनुष्य निजी और सार्वजनिक हर तरह के कार्य कर पाता है, यह सबको मालूम है परंतु इसका महत्व तभी समझ में आता है जब जीवन में व्यवधान का सामना करना पड़ता है। तब हम स्वास्थ्य को लेकर सचेत हो जाते हैं। कोविड महामारी के दौर में यह बात सबने अनुभव की थी। स्वास्थ्य और अस्वास्थ्य की उलझन नई नहीं है और स्वास्थ्य रक्षा के उपायों को लेकर प्रत्येक समाज उपचार या चिकित्सा के समाधान ढूंढ़ता रहा है। 

इस तथ्य के बावजूद कि ऐतिहासिक रूप से विभिन्न ज्ञान परंपराओं और भिन्न-भिन्न सांस्कृतिक संदर्भों में पनपने वाली विभिन्न उपचार प्रणालियों का सुदीर्घ काल से समानांतर अस्तित्व रहा है, आज वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाने वाली जैव चिकित्सा (बायोमेडिसिन) या एलोपैथी का उपयोग प्रमुखता से स्वीकृत हो चुका है। यह स्थिति चिकित्सकीय ज्ञान की वास्तविकता को खंडित रूप से देखती व प्रस्तुत करती है।

आधुनिक चिकित्सा पद्धति रोगी और स्वास्थ्य-सेवा मुहैया करने वाले एजेंटों के बीच की दूरी के कारण एक गंभीर किस्म के आंतरिक तनाव को दर्शाती है। इसमें व्यक्ति का स्वास्थ्य तो व्यक्तिगत रहता है परंतु स्वास्थ्य की देखभाल करना एक पेशेवर या व्यावसायिक मामला बन गया है। स्वास्थ्य को समझने के लिए पश्चिमी परंपरा में स्वीकृत मूल्य जैसे अहंकार पर बल, मन और शरीर का द्वैत और सारी प्रक्रिया में संस्कृति की भूमिका को नजरअंदाज करना स्वास्थ्य के बारे में एक खास किस्म का नजरिया है। यह अत्यधिक विशेषज्ञता (सुपर स्पेशलिटी) पर जोर देता है। 

इसके विपरीत समग्रता पर विचार करने की प्रवृत्ति स्थानीय पर्यावरण-सांस्कृतिक संदर्भों में स्थित होती है और उन तक आम आदमी की पहुंच आसान थी। ज्यादातर मामलों में स्वास्थ्य संबंधी प्रक्रियाओं को हर कोई आसानी से समझ सकता था। कहना न होगा कि उपचार की प्रक्रियाओं में रोगी के जीवन के व्यक्तिगत, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक सभी पहलू शामिल रहते हैं। इस पृष्ठभूमि में भारत में प्रचलित दृष्टिकोण और संबंधित प्रथाएं स्वास्थ्य और स्वास्थ्य देखभाल की घटना को एक समग्रता में ग्रहण करती हैं। 

भारत की स्वदेशी चिकित्सा प्रणाली (जैसे-आयुर्वेद, योग, सिद्ध) तथा तिब्बती, चीनी और अफ्रीकी परंपराओं में ध्यान और पारंपरिक चिकित्सा की विभिन्न प्रथाओं का उद्देश्य स्पष्ट रूप से रोग की रोकथाम, स्वास्थ्य संवर्धन, मनोदैहिक और पुरानी रोग-स्थितियों का प्रबंधन और समग्र रूप से प्रतिरक्षा कार्यप्रणाली (इम्यून व्यवस्था) को अधिकाधिक समर्थ बनाने का है। वास्तव में पारंपरिक दवाएं दिखा रही हैं कि व्यवस्था की सीमाएं धुंधली हैं और अब स्वदेशी हर्बल (जड़ी-बूटी) औषधि के रूप में नए अवतार में आ गया है।

Web Title: Lifestyle will have to be improved by paying holistic attention to health

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